Book Title: Nandisuttam
Author(s): Punyavijay, Dalsukh Malvania
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 18
________________ 610 नंदिसुत्ते परिसा-णाणविहाणाइ [सुत्तं 7. परिसा] 67. सेल-घण 1 कुडग 2 चालणि 3 परिपूणग 4 हंस 5 महिस 6 मेसे 7 य / / .. मसग 8 जलूग 9 बिराली 10 जाहग 11 गो 12 भेरि 13 आभीरी // 44 // . सा समासओ तिविहा पण्णता, तं जहा--जाणिया 1 अजाणिया 2 दुब्बियड्ढा 3 // . [सुत्ताई 8-9. णाणविहाणं] 68. गाणं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा-आभिणिबोहियणाणं 1 सुयणाणं 2 ओहिणाणं 3 मणपज्जवणाणं 4 केवलणाणं 5 / 69. तं समासओ दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-पञ्चक्खं च परोक्खं च / [सुत्ताई 10-12. पच्चक्षणाणविहाणं] 10. से किं तं पञ्चक्खं 1 पञ्चक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-इंदियपञ्चक्खं च णोइंदियपञ्चक्खं च। 1. आभीरे चू० // 2. यढिया खं० सं० डे० ल० // 3. एतत्सूत्रानन्तरं जे. डे० मो० शुसं० मु. प्रतिषु चूर्णि-वृत्तिकृद्रिव्याख्यातोऽधिकोऽयं सूत्राभासः प्रक्षिप्तः पाठ उपलभ्यते-- जाणिआ जहा खीरमिव जहा हंसा जे घुईति इह गुरुगुणसमिद्धा। दोसे य विवज्जती तं जाणसु जाणियं परिसं // भजाणिमा जहा जा होइ पगइमहुरा मियछावय-सीह-कुछुडगभूया / रयणमिव असंठविया अजाणिया सा भवे परिसा // . दुब्वियड्ढा जहा न य कत्था निम्माओ न य पुच्छइ परिभवस्स दोसेण। . वत्थि ब्व वायपुण्णो फुटइ गामेल्लयवियड्ढो // एतत्पाठविषये जे. प्रतावियं टिप्पणी केनापि विदषा टिप्पिता दृश्यते--"जाणियेत्यारभ्य एतद् गाथात्रयं वृत्तौ न व्याख्यातम्, मतोऽन्यकर्तृकं सम्भाव्यते।"

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