Book Title: Nandisuttam
Author(s): Punyavijay, Dalsukh Malvania
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 15
________________ [66 नंदिसुत्ते थेरावलिआ [सुत्तं 6. थेरावलिआ] 66. सुहम्मं अग्गिवेसाणं 'जंबूणामं च कासवं / पभवं कच्चायणं वंदे वच्छं सेज्जंभवं तहा // 23 // जसमदं तुंगियं वंदे संभूयं चेव माढरं / भद्दबाहुं च पाइण्णं थूलभदं च गोयमं // 24 // एलावँच्चसगोत्तं वदामि महागिरिं सुहत्थिं च / / तत्तो कोसियगोत्तं बहुलस्स सरिव्वयं वंदे // 25 // हारियँगोत्तं साइं च वंदिमो हारियं च सामजं / वंदे कोसियगोनं संडिल्लं अज्जजीर्यंधरं // 26 // तिसमुद्दांयकित्तिं दीव-समुद्देसु गहियपेयालं। . वंदे अज्जसमुदं अक्खुभियसमुद्दगंभीरं // 27 // भणगं करगं झरगं पभावगं णाण-दंसणगुणाणं / / वंदामि अज्जमगुं सुयसागरपारगं धीरं // 28 // " णाणम्मि दंसणम्मि य तव विणए णिच्चकालमुज्जुत्तं / , अज्जाणंदिलखमणं सिरसा वंदे पसण्णमणं // 29 // . 1. जंबुणाम सं०॥ 2. सिजंभवं ल० मो०॥ 3. पायनं डे० ल० // ४.वच्छस सं० डे० ल०। वत्सस शु० // 5. °गुत्तं शु० ल०॥ 6. कासवगो चु०॥ 7. यगुत्तं सायं च डे० शु० ल०॥ 8. जीवधरं चूपा० / “तेषां शाण्डिल्याचार्याणां आर्यजीतधर-आर्यसमुद्राख्यौ द्वौ शिष्यावभूताम् , आर्यसमुद्रस्याऽऽर्यमङ्गनामानः प्रभावकाः शिष्या जाताः” इति हिमवन्तस्थविरावल्याम् पत्र ९॥९.खाइकित्तिं ल०॥१०. अजमंगू ल०॥ 11. अष्टाविंशतितमगाथानन्तरं हरिभद्र-मलयगिरि-चूर्णिकारपादान् शु० प्रतिं च विहाय सर्वासु सूत्रप्रतिषु गाथायुगलमिदमधिकमुपलभ्यते वंदामि अजधम्म वंदे तत्तो य भगुत्तं च / तत्तो य अजवइरं तव-नियमगुणेहिं वयरसमं // वंदामि अजरक्खियखमणे रक्खियचरित्तसव्वस्से / रयणकरंडगभूओ अणुओगो रक्खिओ जेहिं // एतद्गाथायुगलविषये जे० प्रतावियं टिप्पणी-"वंदामि अजधम्मं० एतदपि गाथाद्वयं न वृत्तौ विवृतम् , आवलिकान्तरसम्बन्धित्वादिति सम्भाव्यते " // 12. अज्झानंदिल° खं० //

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