Book Title: Nandisutra ke Praneta tatha Churnikar Author(s): Punyavijay Publisher: Punyavijayji View full book textPage 8
________________ નન્દી સૂત્રક પ્રણેતા તથા ચૂર્ણિકાર [७४ थेरे य अजरोहण १जसभद्दे २ मेहगणी ३ य कामिड्ढी ४ । सुद्रिय ५ सुप्पडिबुद्धे ६ रक्खिय ७ तह रोहगुत्ते ८ य ॥१॥ इसिगुत्ते ९ सिरिगुत्ते १० गणी य बंभे ११ गणी य तह सोमे १२।.. दस दा य गणहरा खलु एए सीसा सुहत्थिस्स ॥२॥ स्थविर आर्यसुहस्ति श्री वज्रस्वामीसे पूर्ववर्ती होनेसे ये ऋषिगुप्त स्थविर दशकालिकचूर्णिप्रणेता श्री अगस्त्यसिंहके गुरु श्री ऋषिगुप्त क्षमाश्रमणसे भिन्न हैं, यह स्पष्ट है । आवश्यकचूर्णि, जिसके प्रणेताके नामका कोई पता नहीं है, उसमें तपसंयमके वर्णनप्रसंगमें आवश्यकचूर्णिकारने इस प्रकार दशवैकालिकचूर्णिका उल्लेख किया है तवो दुविहो- वज्झो अब्भतरो य । जधा दसवेतालिय चुण्णीए चाउलोदणंतं (? चालणेदाणतं) अलुद्रेणं णिज्जर₹ साधूसु पडिवायणीयं ८ । [ आवश्यक्त्वचूर्णि विभाग २ पत्र ११७ ] आवश्यकचूर्णिके इस उद्धरणमें दशवैकालिकचूर्णिका नाम नज़र आता है। दशवैकालिकसूत्रके ऊपर दो चूर्णियाँ आज प्राप्त हैं - एक स्थविर अगस्त्यसिंहप्रणीत और दूसरी जो आगमोद्धारक श्री सागरानन्दसूरि महाराजने रतलामकी श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजो जैन श्वेतांबर संस्थाकी ओरसे सम्पादित की है, जिसके कर्ताके नामका पता नहीं मिला है और जिसके अनेक उद्धरण याकिनीमहत्तरापुत्र आचार्य श्री हरिभद्रसूरिने अपनी दशवैकालिकसूत्रकी शिष्यहितावृत्तिमें स्थान स्थान पर वृद्धविवरणके नामसे दिये हैं। इन दो चूर्णियोंमेंसे आवश्यकचूर्णिकारको कौनसी चूर्णि अभिप्रेत है, यह एक कठिन-सी समस्या है। फिर भी आवश्यकचूर्णिके ऊपर उल्लिखित उद्धरणको गौरसे देखनेसे हम निर्णयके समीप पहुँच सकते हैं । इस उद्धरणमें "चाउलोदणतं" यह पाठ गलत हो गया है। वास्तवमें " चाउलोदणंत" के स्थानमें मूलपाठ " चालणेदाणतं" ऐसा होगा । परन्तु मूलस्थानको बिना देखे ऐसे पाठोंके मूल आशयका पता न चलने पर केवल शाब्दिक शुद्धि करके संख्याबन्ध पाठोंको विद्वानोंके गलत बनानेके संख्याबन्ध उदाहरण मेरे सामने हैं । दशवैकालिकसूत्रको प्राप्त दोनों चूर्णियोंको मैंने बराबर देखी हैं, किन्तु “चाउलोदणंतं" का कोई उल्लेख उनमें नहीं पाया है और इसका कोई सार्थक सम्बन्ध भी नहीं है । दशवैकालिकसूत्रको अगस्त्यसिंहीया चूर्णिमें तपके निरूपणकी समाप्तिके बाद “चालणेदाणिं" [पत्र १९] ऐसा चूर्णिकारने लिखा है, जिसको आवश्यकचूर्णिकारने "चालणेदाणंतं" वाक्य द्वारा सूचित किया है । इस पाठको बादके विद्वानोंने मूल स्थानस्थित पाठको विना देखे गलत शाब्दिक सुधारा कर बिगाड दिया ऐसा निश्चितरूपसे प्रतीत होता है । अतः मैं इस निर्णय पर आया हूँ कि-- आवश्यकचूर्णिकारनिर्दिष्ट दशवैकालिकचूर्णि अगस्त्यसिहीया चूर्णि ही है। और इसी कारण अगस्त्यसिंहीया चूर्णि आवश्यकचूर्णिके पूर्वकी रचना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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