Book Title: Nandi Sutra
Author(s): Devvachak, Hansraj
Publisher: Nagor

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Page 113
________________ आनंदी-सूत्र ५१ तं विद्या जपते तथा दिने] २ एक सा6 | कला बैते माटे १०८ अपदेवपा वसीकरणादिक पदे अली विद्याते हना सैक मातथा अनेकपिल विद्याअतिसयस्वन जिम तिम प्रानो तर कहे है: कहे अत्तरायं । पक्षिणसमं । तर म पसिलसयं ऋत्तर व सिगा पसिणसिय। तंज हा विद्यालयविनेा वै प्रतिमा अनेराविलविविध विद्याश्करीस हो बोलावी तरदेवश्वा०जि एसोबोलावी अनेक कारनादि वैदम दाइ: बा बोलावृक्तरदेव : उत्तरदेवशः वासे देवता: 69 सिलाई। बाऊपसिला टाग पसिलाई शादी की थकान गरणणं नानागार-सवर्णमानती। विशेष स० साथै संवाद करेला नाकातकरैदेवताः विविचित्तादिना। विश्वंसया। नागवले हिम अनुजोगादेशि सपा तो बेटा विशेष J क संख्याता बब जा || सं सामान्य व कला बरंगिणती वाचना सच्चिदिवा/ सध्याच्या एविद्यति। एहा बागर) रिता वाटाणा) संखेद्य गद्दारा संखिद्यावे लोकप्रशन नाः संध्याता संग्रहणार्थ सं निनिमुक्ततेने विवेक हिनाला चाप्यति । संपाती। पदि एक से मानतदा विधसादिकपंक्तिरूपः - करा विशेष दा। संखिजासिलोगा। संविद्यान संग्रहणीन। संखे छान नितिन /जालना:संखेद्या उपमिवृति सेते अर्थगाथार्थ दामो एकश्रुतस्कं वैतालीस वैतालीस ४५ देशानाकालते सामान्य पैतालीस ४५ स-समुदेशानका लातविशेषाचार्थक हितो .903. संग नबे अर्थनो कहिवोः सेक्ांग६ या ए। दस मेगे। एगे सूयरकंधवणयालीसा अशयला) पलयाली संन देशकाला! q गाथीनीस्व नागाथा शरव ध जाणवोः सं०संध्यातावनी १०१ दानो परमाण सहस्रएतले ५२ ला११८चैत्र स. संख्यातार अमन अनता पर्यवा सागमा दारने पदार्थना १० नंताना सेकस जीवने मादिक जीवः अनंताभावर भवन स्पती सहित बै चली १६ सहस्रः पर्यायाने याली समुदे सण काला। संखेच्या इंपय सहरसा । पयगेले संखे या अकरा अनंतागमा तापच्या परि e पछ

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