Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha

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Page 13
________________ निवेदन अवश्य अवलोकवा जोईए। आ ग्रंथोमांथी जे प्राप्त थया तेमांथी नमस्कारविषयक संदर्भो तारवीने प्रस्तुत ग्रंथमां रजु कर्या छे। ते पैकी उपधानविधि (उवहाणविहिथुत्तं) मां श्री नमस्कार महामंत्रनी वाचना लेवा माटेना उपधाननो व्यवस्थित आम्नाय आपवामां आव्यो छे अने ते मंत्रना उपासकनुं स्थान केटलुं ऊंचुं छे ते सुंदर रीते बताववामां आव्यु छे; श्री नमस्कारनियुक्तिमां (णमोक्कारणिज्जुत्ती) उत्पत्ति, निक्षेप आदि अगियार द्वारथी तेनी विशद विचारणा करवामां आवी छे अने श्री' बृहन्नमस्कारफलमां नमस्कार महामंत्रनो सर्वागी महिमा गावा उपरांत तेनी आराधनाथी प्राप्त थतां विशिष्ट फळोनी विस्तृत नोंध लेवामां आवी छ। उपर्युक्त तात्त्विक बाबतोनी विवेचना करतां स्तोत्रो उपरांत श्री नमस्कार महामंत्रनो भिन्न भिन्न दृष्टिए विविध - उल्लेख करतां, तेर्नु उचित फळ पामेल प्रभावशाली व्यक्तिओनो निर्देश करतां, स्वानुभवने लीधे श्री नमस्कारमंत्रना प्रभावथी उल्लसित थयेल महात्माओनो अहोभाव व्यक्त करतां; अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने साधु भगवंतनुं पृथक् पृथक रीते यशोगान करतां तथा गूढ अने मंत्रगर्भित एवां अनेक स्तोत्रोनो प्रस्तुत ग्रंथमा समावेश करवामां आव्यो छे। . ध्यानविचार, नवकारसारथवण, नमस्कारव्याख्यानटीका आदि कृतिओ आ ग्रंथनी यशकलगीरूप छ। ध्यान. शून्य, कला, ज्योति, बिन्दु, नाद, तारा वगेरे ध्यानना चोवीश मार्गोनुं व्यवस्थित निरूपण 'ध्यानविचार' सिवाय अन्य कोई ग्रंथमां मळतुं नथी। मंत्रगर्भित एवा 'अरिहाणाइथुत्तं' मां ते पारिभाषिक शब्दोनो नामोल्लेख मळे छे, पण तेनुं यथार्थ रहस्य तो 'ध्यानविचार' मां ज स्फुट थाय छे, जो के ध्यानविचारनी रचना पण कोई महान मौलिक ग्रंथने आधारे थई होवी जोईए अने ज्यांसुधी एवो कोई ग्रंथ प्राप्त न थाय त्यांसुघी 'ध्यानविचार' नी संपूर्ण समज मेळववी कठिन पडे। पू. मुनिश्री जंबूविजयजी तथा पू. मुनिश्री तत्त्वानंदविजयजीए करेल परिश्रमने लीधे 'ध्यानविचार' ने सारी रीते गुजरातीमां उतारवार्नु कार्य सफळ थयु छे / आ किंमती कृति अनेक दृष्टिए योगाभ्यासीओने उपकारी थाय तेम होवाथी तेनी एकसो जेटली वधु नकलो अलग प्रकट करीने पोष सुद 1, वि. सं 2017 ना रोज मुमुक्षुवर्गने अध्ययन अध्यापन माटे संस्था तरफथी भेट धरवामां आवी छ। ध्यानविचारनुं रहस्य पामवा जेवो नोंधपात्र प्रयास थयो छे तेवू 'नवकारसारथवण' अने तेना उपरनी विस्तृत 'नमस्कारव्याख्यानटीका'नी बाबतमां कई थई शक्यु नथी। नवकारसारथवणनो गुजराती अनुवाद छापवामां आव्यो हतो, परंतु ए अनुवाद संतोषकारक न होवाथी ते विषयना जाणकार पूज्य गुरुवर्योनी सलाहने मान आपी ज्यांसुधी आवां स्तोत्रो संतोषकारक रीते न समजाय त्यांसुधी तेनुं मूळ मात्र आपq एम नक्की कर्यु। ए रीते प्रस्तुत ग्रंथमां नवकारसारथवण, नमस्कारव्याख्यानटीका अने परमेष्ठयादिपदगर्भितमन्त्रादयः एम त्रण विषयोनो अनुवाद आप्यो नथी। आमांथी नमस्कारने लगता मन्त्रो बिलकुल न ज आपवा एवं एक सूचन हतुं। ज्यांसुधी आवा प्रबळ मन्त्रोनी शुद्धि अंगे छेवटना निर्णयो न लेवाय त्यांसुधी तेने प्रकट करवाथी तेनो हेतु सरतो नथी; परंतु पाछळथी विचारविनिमय करतां पूज्य गुरुवर्योनी संमति मळी के हस्तलिखित प्रतोमा जे स्वरूपे मळ्या ते स्वरूपे मात्र मूळ मंत्रोने अनुवाद कर्या विना आपवामां खास बाध नथी। आवी अनुमति मळतां नमस्कारने लगता महत्त्वना मंत्रोने फरी छापवान नक्की की। पहेलां विषय नं. 17 तरीके मन्त्रोने अनुवाद सहित छापवामां आव्या हता, परंतु ते रद करवानुं नक्की थतां तेनी जगाए नंबर 17 तरीके 'कुवलयमाला' माथी तारवेल नमस्कारविषयक श्लोकोने छाप्या। आ छपाई गया बाद उपर का तेम नमस्कारमन्त्रोने मूळ स्वरूपे आपवानुं जरूरी जणायु अने तेथी तेनो विषय नं. १७अ तरीके समावेश करी लीधो। आम करवाथी बे फर्मा वध्या अने तेने ४५अ तथा ४५ब एम नंबर आपी क्रम जाळवी लीधो। अनुवाद विनानी उपर्युक्त त्रणे कृतिओ हजु ऊंडु संशोधन मागे छे। उपर प्रस्तुत ग्रंथना वस्तु प्रति जे अंगुलिनिर्देश करवामां आव्यो छे ते तो मात्र उपलक परिचय ज छे; तेनुं यथार्थ ज्ञान तो त्यारे ज प्राप्त थाय के ज्यारे आ ग्रंथमांना दरेके दरेक स्तोत्रनो निष्ठापूर्वक स्वाध्याय करवामां 1. प्रस्तुत ग्रंथमां आ स्तोत्र 'पंचनमुक्कारफलथुत्तं' नामे छापायेल छे-जुओ पृष्ठ 363 थी 378.

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