Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha
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________________ नमस्कार स्वाध्याय (18) श्री आत्मकमल लब्धि जैन ज्ञानभंडार, दादर; मुंबई (19) श्री शांतिनाथजी जैन देरासर-श्री सागरगच्छ प्रवचन पूजक सभा, मुंबई (20) श्री महावीर जैन विद्यालय, मुंबई (21) श्री भांडारकर ओरिएन्टल रीसर्च इन्स्टिटयूट, पूना (22) श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर उपर्युक्त संस्थाओना अमे खूब ज ऋणी छीए / आ उपरांत प. मुनिश्री यशोविजयजी, श्री जिनविजयजी, श्री अगरचंदजी नाहटा, स्व. मोहनलाल भगवानदास झवेरीनां विधवा सुधाबहेन वगेरेनो हस्तप्रतो आपवा बदल खास आभार मानीए छीए / तदुपरांत आ विशाळ पाया परना कार्यमा अनेक व्यक्तिओ तरफथी भिन्न भिन्न रीते सहकार मळ्यो छे अने ते बधांनो प्रत्यक्ष नामोल्लेख अहीं न करी शकीए तो पण ते सौनो परोक्ष रीते आभार मानवानी अहीं तक लईए छीए। प्रस्तुत ग्रंथना वस्तु अंगे विचार करतां एटलुं स्पष्ट कही शकाय के अहीं आपेल संग्रहमांथी 'श्री नमस्कार महामंत्र'ने लगती घणी उपयोगी महत्त्वनी विगतो तारवी तेने व्यवस्थित रीते कडीबद्ध सांकळी शकाय। तेमां घणां स्तोत्रो एवां छे के ते प्रत्येक पर विस्तृत विवेचन तैयार करी स्वतंत्र पुस्तिका रूपे प्रकट करी शकाय। अही त प्राकृत भाषामां रचायेल नमस्कारविषयक जे श्रेष्ठ साहित्य मळ्यु छ तेनो संग्रह मात्र करवामां आव्यो छे, परंतु आ विषयना अभ्यासीओ अने आराधको माटे ते अमूल्य सामग्री पूरी पाडे छे। आमां घणी एवी वातो छ के जे वर्षोथी भूलाई जवा पामी छे। विस्मृतिना प्रवाहमा तणाई जती आवी धर्मप्रणालीओने बचावी लई तेनुं पुनरुत्थान करवू अनिवार्य छ / ज्यांसुधी तेनी पारिभाषिकतानुं वैज्ञानिक रीते व्यवहारु निरुपण नहीं करवामां आवे त्यांसुधी आ अचिन्त्य चिंतामणिकल्प अने सर्व महामंत्रो तथा प्रवर विद्याओना परमबीज तरीके वर्णवायेल श्री पंचमंगलमहाश्रुतस्कंधने तेना यथार्थ स्वरूपमां समजी शकाशे नहीं / प्रस्तुत ग्रंथ आवा स्वाध्याय माटे पुष्कळ माहिती पूरी पाडे छे अने संशोधकोने माटे अमूल्य खजानो खुल्लो करे छ। आ परममंत्र केटला अक्षर परिमाणनो छे; तेमां निर्दिष्ट आलापक, संपदा, स्वर, व्यंजन, वर्ण, पद, पदाक्षर, मात्रा, बिंदु वगेरे शुं छे, पंचमंगल एटले शु; आ महामंत्रमा नमस्कार कोने करवामां आवे छे, केवी रीते करवामां आवे •छे अने शा माटे करवामां आवे छे; तेनुं विनयोपधान कई विधिथी सिद्ध थई शके; कयां लक्षणो आराधकनी योग्यता सूचवे छेः कया समये, केवा स्थळे, कोनी पासेथी अने केवी रीते तेनी वाचना लेवी जोईए, तपोपधान केटलुं अने केवी रीते करवु जोईए, सर्व जीवो प्रति आत्मतुल्यतानी दृष्टिने (अत्तसमदरिसित्तं) शा माटे महत्त्व आपवामां आव्यु छ; अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने साधु ए शब्दो शाना द्योतक छे; ए शब्दो व्युत्पत्ति अने व्याख्यानी दृष्टिए केटली रीते विचारी शकाय; तेनो गर्भार्थ एटले के परम रहस्यभूत अर्थ शो छे; ए पांच पदोनो समग्र विश्व साथे संबंध केवी रीते छे; बोधिलाभ शुं छे अने ते केवी रीते सुलभ थाय; मांत्रिक, तांत्रिक अने योगिक दृष्टिए आ महामंत्रनुं स्थान सर्वश्रेष्ठ केवी रीते छे; तेनाथी कई सिद्धिओ, रिद्धिओ अने लब्धिओ प्राप्त थाय छे-वगेरे अनेक प्रश्नो उपस्थित थाय छे अने ते बधा प्रश्नोनी समालोचना करवा माटे आ ग्रंथ अत्यंत अद्भुत माहिती प्रकाशमां लावे छे। श्री महानिशीथसूत्रमा आ विषय अंगे जे पाठ मळ्यो छे ते श्री नमस्कार महामंत्रना आराधको माटे अजोड मार्गदर्शन करावे छ। एमां श्री अरिहंत परमात्मानुं सुंदर वर्णन पण छे। श्री चैत्यवंदनमहाभाष्य उपरनी श्री धर्मकीर्तिसूरिनी टीकामां श्रीमहानिशीथसूत्रना घणा उपयोगी फकराओनी नोंध लेवामां आवी छे, जे तेनी अनेकविध महत्ता स्थापित करे छे। ए टीकामां श्री महानिशीथसूत्र उपरांत नमस्कारपंजिका, सिद्धचक्र, अष्टप्रकाशी, छंदःशास्त्र उपधानविधि, प्रवचनसारोद्धार, बृहन्नमस्कारफल, भगवतीसूत्र, नमस्कारनियुक्ति, प्रत्याख्याननियुक्ति, आवश्यकनियुक्ति छेदसूत्र, राजप्रश्नीयसूत्र वगेरे अनेक ग्रंथोनो उल्लेख करवामां आव्यो छे। श्री नमस्कार महामंत्रना आराधके आ ग्रंथो १.श्रीमहानिशीथसूत्रसंदर्भ', पृ. 36.