Book Title: Nalvilasnatakam Author(s): Ramchandrasuri Publisher: Parshwanath Vidyapith View full book textPage 7
________________ सहधर्मिणी को देता हूँ। यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैंने अपने लेखनकार्य का मार्ग स्वयं प्रशस्त किया है। इसका प्रमुख कारण है कि मैं स्वयं को किसी के द्वारा बाँधी गई सीमा में समेट कर अपने भावों को संकुचित करने तथा 'परोपनीतशब्दार्थाः स्वनाम्ना कृतकीर्तयः' इस कथन से अपने आपको सर्वथा दूर रखना चाहता हूँ। __प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादक पूज्यपाद गुरुवर प्रो. सुरेशचन्द्र पाण्डेय जी, जिन्होंने इसके पूर्ण होने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, उनका मैं अत्यन्त आभारी हैं। साथ ही गुरुवर प्रो. सागरमल जैन जी (निदेशक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी), डॉ. अशोक कुमार सिंह जी और डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय जी (प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी) के प्रति भी कृतज्ञ हूँ, जिनकी सतत् प्रेरणा से यह कार्य यथाशीघ्र सम्पन्न हुआ। मेरा पूरा प्रयास रहा है कि यह प्रथम-संस्करण सर्वातिशायी बने। तथापि प्रमाद, अनवधान, अज्ञान या अन्य किसी कारण से कुछ त्रुटि रह जाना सम्भव है। निर्मत्सर विद्वान् उन्हें सूचित करके अनुगृहीत करें। विनीत धीरेन्द्र मिश्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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