Book Title: Naabhi Humara Kendra Bindu
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 8
________________ २४० ] . निकालें तो उस समय ऐसा ख्याल करें कि हमारे अन्दर से संकल्प, विकल्प, चिन्तायें ये सब बाहर निकली जा रही हैं। यह सुनने मात्र की चीज नहीं है, प्रयोग करने की चीज है । अपनी श्वास को अन्दर और बाहर करते समय उस प्रकार का ख्याल प्रयोगात्मक रूप से करने की बात है । आपने देखा होगा कि जब कोई बच्चा सोता है तो वह बड़ी गहरी श्वांस लेता है । जब वह श्वांस अन्दर की ओर करता है तो उसका पेट फूल जाता है और जब वह श्वांस को बाहर निकालता है तब उसकी नाभि नीचे को दबती हुई दिखती है उस समय वह बच्चा निश्चित दशा में रहता हुआ श्वांस बाहर निकालता है तो उसका पेट खाली हो जाता है और जब । श्वांस को अन्दर की तरफ खींचता है तो उसका पेट घड़े की तरह भर जाता है । लेकिन वही बच्चा जब कुछ बड़ा होता है, नाना प्रकार की चिन्तायें करता है तो उस समय उसके शरीर का क्रम उल्टा हो जाता है याने जब श्वांस लेता है तो पेट खाली होता है और जब श्वांस को बाहर निकालता है तो पेट फूलता है। तभी तो आजकल के बच्चों की ऊँचाई कम हो गई। पहले जमाने में तो ५८० धनुष तक के लोग होते थे पर आजकल तो ६ फुट भी मुश्किल से होते हैं। तो यह किस कारण से हुआ? इस कारण कि जो बच्चे अभी उग सकते थे। उनकी नाभि अभी विकसित हो सकती थी उन बच्चों के ऊपर बचपन से ही स्कूली शिक्षा का भारी बोझ लगा दिया गया और उस बोझ से उन बच्चों के मस्तिष्क पर तनाव आया जिससे उनका विकास रुक गया। उन चिन्ताओं के कारण उनकी ऊँचाई में फर्क आ गया। इसीलिए तो कहा कि जैसे-जैसे चिन्तायें बढ़ती है वैसे ही वैसे बुढ़ापा आता है और जैसेजैसे वुढ़ापा आता जाता है वैसे ही वैसे मानसिक तनाव बढ़ता जाता है जिससे यहाँ अशान्ति, पैनी, परेशानी और भी अधिक ती जाती है । तो उन सारी परेशानियों से बचने के लिए ध्यान की बात यहाँ कही जा रही है। ध्यान के प्रसंग में सबसे पहले नाभि करता की बात चल रही है। अपनी नाभि में एक कमल का ख्याल करें ताकि हमारे भीतर सौर ऊर्जा प्रस्फुटित हो सके। उससे हमारे शरीर में न कोई बीमारी आयगी, न भूख प्यास लगेगी, न गर्मी-सर्दी लगेगी। भूख प्यास आदिक ये सब बीमारी ही तो हैं। आपने देखा होगा कि बुढ़ापे में सर्दी अधिक लगती है और जवानी में कम । जो १८ प्रकार के दोष कहे गए-जन्म, जरा, मरण, निद्रा, भूख, प्यास, गर्मी, सर्दी, आदिक, ये सब बीमारी ही तो हैं। नाभि कमल के विकास के पश्चात् ज्यों-ज्यों वह विकसित होता जाता है त्यों-त्यों रोग दूर होने लगते हैं।

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