Book Title: Munivarsurveli
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ अनुसंधान-१५ .54 (३) ढाल (मृगापुत्रनी) (काई निसान हो-) लाख चउरासी छंडिआजी, हय-गज-रथ नर-कोडि । चउसठिसहस अंतेऊरीजी, नव-निधि रयण विच्छोडि ॥१३॥ नमो भवि भरहो रायरिसी; तस आठ पटिइ केवलीजी, निसुणो तेहनी लीह नमो० ॥१४॥ त्यागी शिर चूडामणीजी, चडीउ भावणि भावि । आपइं आप विचारताजी, तरीओ समता भावि नमो० ॥१५॥ आरीसाघरि केवलीजी, पूरवलाख निरीह । दश सहस-नृपस्युं संयमीजी, विचर्यो मुनिनो सीह नमो० ॥१६॥ (४) ढाल (हविइ तुम नथीअ जिन) ऋषभनो वंश रयणायरो, तस नररयणनां नामो रे । ऊगतिइ दिनकरइ लीजीई, यम सीझसइ[स]वि कामो रे इक्खागवं०॥१७॥ आइच्चजस मुनी केवली, भरथनरेसर-पूतो रे । महायस अतिबल महाबलो, तेजोवीर्य ति पूतो रे इक्खाग० ॥१८॥ कीरत्तिवीर्य ते केवली, दंडवीर्य तिम जाणो रे । आठमु जलवीर्य केवली, इंम ठाणांगि वखाणो रे इक्खाग० ॥१९॥ बंभीअ-सुंदरि बोहिउ, केवली बाहुबलीसो रे । एवमसंख्य ते मुणिवय, ते प्रणमो निसदीसो रे इक्खाग० ॥२०॥ प्रणमीइं सिद्धनी दंडिका, जाव ति अजितनी बीजी रे । सिद्ध-मणुत्तरसुरगती, विणु तिहां गति नही बीजी रे इक्खाग० ॥२१॥ अजित पंचागुंअ गणधरा, मुणिवर एक ज लाखो रे । सकलमुनीसर सुरलता, सेवी तस फल चाखो रे इक्खाग० ॥२२॥ (५) ढाल (सफल संसारनी) राग-गुडी एकशत दोइ जिनसंभवे गणहरा लाख दो मुणवरा सयल पातकहरा । एकशत सोल अभिनंदणे गणहरा लाख तिम तीन मदहीन मुनि शुभकरा ॥२३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14