Book Title: Munivarsurveli
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 13
________________ अनुसंधान-१५.64 साह(हि)अकज्जो तिअगेहि, महिओ अवंतिसुकुमालो ॥१२३।। गाहा एगो गुहाइ हरिणो, बीओ दिट्ठीविसस्स सप्पस्स । तइओ उ कूवफलहे, कोसघरे थूलभद्दमुणी ॥१२४॥ भयवं पि थूलभद्दो, तिक्खे वंकमि(खग्गंमि) [ग]ओ न उण छिनो । अग्गिसिहाए वुत्थो, चाउम्मासं नवि अ दड्डो ॥१२५॥ (२०) ढाल (थावच्चानी) बहु पद पन्नवणा पत्रवणा, निज्जूढा भगवंतिइ । त्रेवीसमो य पटोधर जाणो, सा(सो?)मसूरि गुणवंतिइ ॥१२६।। ___ भविआ प्रणमो भवि उपगारी थिविरावलिइ कह्या जे थेरा ते प्रणमो गणधारी ॥ सीहगिरिना सीस मनोहर, धणगिरि वयर सुसीसा । जे थेरा ते प्रणमो गणधारी अरिहदत्त गुरु सि(स)मितायरिआ, भद्र सुगुप्स मुनीसा॥१२७॥ पढमणुओगि जिणभव चक्की, दसारभद्द चरिआइ । कालयसूरि लोग निमित्तं, कासीसो जगत्ताई ॥१२८॥ अज्जसमुद्द थेर दुबलिया, पुत्तसमं गणधारी । पंचसया तावस पडिबोहग, मुणि समितं उवगारी ॥१२९॥ नहगमणी वेउव्विअलद्धी, जेणि धरी नयऋद्धी । सुयधर चरमो जाइअसरणो, वयरसामि बहु बुद्धि ॥१३०॥ वयरखुड्डगं अणसणसहिअं, लोगपालि रहवत्ते । रहावत्त तेणइ नाम पवत्तो, लस नमि सिरसावत्ते ॥१३१।। वयरीशाखा जेणि पवत्ती, वयरसेणि सुभ जोगो । हीणबुद्धि मुणि कालइ जाणी, चउहा कय अणुओगो ॥१३२|| जेणं सो मुणि अज्जरक्खिओ, सुर-नर-किंनरमहिओ । तह दुब्बलिआ पूसमित्तओ, नव पूरवधर कहिओ ॥१३३।। दुभिक्खे नद्धे अणुओगे, महुराए अणुओगो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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