Book Title: Munivarsurveli
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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________________ अनुसंधान-१५.65 खंदिल आयरिएण पवत्तो, ते जण(जिण)सासण जोगो // 134 // सुअवायण रयणायर गणधर, उवसम-खम-दमभरिओ / खमासमण देवड्डीअ प्रणमो, जिणि आगम उद्धरिओ // 135 // . (21) ढाल (धन्यासी) नरगंधसिंधुरं कंबुवरकंधरं वदनवासंतिका-गंधधारि(रं) / सेज्झ-दयाधर(रं) तह दयेंग(?) सीमंधरं त्रिजगदाधार-जातावतारं // 136 / / रूपगुणसुंदरं विश्वसि(सी)मंधरं विहरमाणादिमानंदकारं / सकलजिणबंधुरं शुचितश्रुतिकंदरं, रचित गीर्वाणगीतोपचारं // 137 // धीधना भो जना ! जपत युगंधरं जिनपबाहु-सुबाहु-सुजातं / स्वामिस्वयंप्रभ नमत ऋषभाननं नंतवीर्य महत सुप्रभातं // 138 // श्रयत सूखभं देवविशालकं वज्रधराभिध(घ) स्मरत यूतं / भजत चन्द्राननं चंप्र(द्र)बाहु(हुं) तथा जिन जगेश्वरं त्रातभूतं // 139 / / नमत नेमिप्रभं वीरसेनं जिनं महाप्रभाव तथा देवयशसं / अजितवीर्यं अमी विहरमाना जिना मंगलं भवतु वो सुप्रशस्तं // 140 // पुक्खरवरदीवड्डे धायइसंडे अ जंबूदीवे अ / भरहेरवयविदेहे धम्माइगरे नमसामि // 141 // उस्सप्प(प्पि)णि(णी)इ चरिमं दुप्पसहं गणहरं च वंदामी(मि) / एए अन्ने य तहा चंदनबालाइ समणीउ // 142 // मुणिएगमंतमालं, सिवयं समायरइ जो सया कालं / सो पावइ य विसालं, पुण्णं पावक्खए मूलं // 143 / / सिरिआणंदविमलगुरुपट्टे सिरिविजयदानगुरुपट्टे / सिरिहीरविजयचंदं वंदइ तं सकलचंदमुणी // 144 // // इति साधुवंदना-मुनिवरसुरवेलि समाप्तः // ग्रंथाग्रं-२००।। संवत् 1682 वर्षे कार्तिक सुदि 15 दिने सुश्राविका मानबाई पठनकृते / / सुभं भवतु // Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org

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