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महोपाध्यायश्रीसकलचंद्रजीगणि विरचित मुनिवरसुरवेली
-सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय
आ मुनिवरसुरवेलीनी रचना सत्तरभेदी पूजाना कर्ता तरीके जगप्रसिद्ध एवा महोपाध्याय श्रीसकलचंद्रजी गणिए करेली छे ।।
नाम प्रमाणे ज आमां २४ तीर्थंकरोना शासनमां थयेल विविध साधुभगवंतो तथा महासतीओनी स्तवना करवामां आवी छ । तेमा मुख्यत्वे ठाणांग, भगवतीसूत्र, ज्ञाताधर्मकथा, अंतगडदसा, इसिभासिआई वगेरे आगमोना आधारे २४ तीर्थंकरोना गणधरो तथा साधुओनी संख्या कही छे; अने ऋषभदेव भगवानना पुत्रो तेमनी परंपरामा मोक्षे तथा अनुत्तरविमाने गयेला असंख्यात राजाओनी अने २३ तीर्थंकरोना शासनमां थयेल घणा उदारचरित साधुभगवंतो, साध्वीजीओ तथा महासतीओनी स्तवना करी छे । तदुपरांत महावीरस्वामीभगवाननी पाट-परम्परामां आवेला श्रीदेवद्धिगणि क्षमाश्रमण सुधीना स्थविर भगवंतोनी स्तवना करी छ ।
छेल्ली ढाळमां २० विहरमान जिनेश्वर भगवंतोने नामपूर्वक वंदना करी छे अने प्रान्ते, पांचमा आराना छेडे थनारा आचार्यश्रीदुप्पसहसूरिमहाराजने वंदना करी सुरवेलीनुं समापन कयुं छे ।
__ वच्चे वच्चे मधुर प्राकृत गाथाओथी मिश्रित आ सुरवेलीमा कुल २१ ढाळो छे, जेमा १४४ कडी छे । छट्ठी ढाळ प्राकृतभाषामां छे अने छेल्ली ढाळ संस्कृतमा छ । प्राकृत गाथाओ १६ छ ।
प्रतिनां कुल ८ पत्रो छे, अने तेनुं लेखन वि. सं. १६८२ ना कार्तिक सुदि १५ना दिवसे थयुं छे तेवू अंते लखेली पुष्पिकाथी जणाय छे ।
मुनिवरसुरवेली
॥ नमः ॥ तुं जिनवदनकमलनी देवी तुं सरसति सुरनरपति सेवी । तुं कविजन-माता सुअदेवी तिइ मुझ निर्मल-प्रतिभा देवी ॥११॥
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अनुसंधान - १५ • 53.
मिई मुनिवर - सुरवेलि करेवी तेणि कारणिई मिदं तु समरेवी । तिहां पूरवमुनिसेणि गणेवी तस गुणगति नित भविक जपेवी ॥२॥ त्रिविधई तस करणीत तुलेवी तिणिदं निज पातक रवोणि हणेवी । ते मुनिवेली कंठि करेवी तेणे भवजलनिधि वेलि तरेवी ॥३॥
(१) ढाल
(राग-कांनडु)
संसारे सुणि जीव अपारे अतिदुर्लभ मानवअवतारे । विवेकदीवो मति अवतारे लाधू गुणठाणुं मम हारे ||४|| आप आप सरूप विचारे जगि दुर्गतिनां दुख संभारे । मिथ्यामतिमत- मोह निवारे एहित सीख सदा अवधारे ॥५॥ ममता माया मान विदारे रमि पुरुषोत्तम - ध्यानाचारे । त्रिभुवनजन - प्रतिबोधागारे नित वंदन करि सम अणगारे ||६|| अशरण सम षट् जीवाधारे समता - सुचि-गुण- पारावारे । निर्जित- दुर्जय- मदनविकारे वंदन करि जिनपति मुनिसारे ||७|| (२) ढाल - सरसति - अमृत
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ऋषभादिक चवीस जिणिदा, जस सेवई नित चउसठि इंदा, प्रणमिइ जस गोविंदा । अट्ठाणवईअ नमि मुणिचंदा, वेअलिअसुअमुअ (मुप) शमकंदा, ऋखभसुआ गोविंदा ॥८॥ पुस्मितालपुरे जिणि सिक्खिआ, पुंडरीकपमुहा जिणि दीक्खिआ भरतपुत्र नमो तस सत्तसई ॥९॥ पुंडरीकपमुहा चउरासी, गणहर तिम मुनि सहस - चउरासी, कलपसूत्र इम भासी ॥१०॥
लबधिवंत गुरु गण - कुलवासी मुनिवंदनि जस मति नवि वासी, तस मति कुमति विणासी ॥ ११ ॥
नाप - गोअसवण (णं) थिविराणऽहो, महफलं भणिअं च गुणावहो, वंदणं नमणं पडिपुच्छणं, बहुलपातकसंततिमुच्छणं ॥१२॥
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अनुसंधान-१५ .54 (३) ढाल (मृगापुत्रनी) (काई निसान हो-) लाख चउरासी छंडिआजी, हय-गज-रथ नर-कोडि । चउसठिसहस अंतेऊरीजी, नव-निधि रयण विच्छोडि ॥१३॥
नमो भवि भरहो रायरिसी; तस आठ पटिइ केवलीजी, निसुणो तेहनी लीह नमो० ॥१४॥ त्यागी शिर चूडामणीजी, चडीउ भावणि भावि । आपइं आप विचारताजी, तरीओ समता भावि नमो० ॥१५॥ आरीसाघरि केवलीजी, पूरवलाख निरीह । दश सहस-नृपस्युं संयमीजी, विचर्यो मुनिनो सीह नमो० ॥१६॥
(४) ढाल (हविइ तुम नथीअ जिन) ऋषभनो वंश रयणायरो, तस नररयणनां नामो रे । ऊगतिइ दिनकरइ लीजीई, यम सीझसइ[स]वि कामो रे इक्खागवं०॥१७॥ आइच्चजस मुनी केवली, भरथनरेसर-पूतो रे । महायस अतिबल महाबलो, तेजोवीर्य ति पूतो रे इक्खाग० ॥१८॥ कीरत्तिवीर्य ते केवली, दंडवीर्य तिम जाणो रे । आठमु जलवीर्य केवली, इंम ठाणांगि वखाणो रे इक्खाग० ॥१९॥ बंभीअ-सुंदरि बोहिउ, केवली बाहुबलीसो रे । एवमसंख्य ते मुणिवय, ते प्रणमो निसदीसो रे इक्खाग० ॥२०॥ प्रणमीइं सिद्धनी दंडिका, जाव ति अजितनी बीजी रे । सिद्ध-मणुत्तरसुरगती, विणु तिहां गति नही बीजी रे इक्खाग० ॥२१॥ अजित पंचागुंअ गणधरा, मुणिवर एक ज लाखो रे । सकलमुनीसर सुरलता, सेवी तस फल चाखो रे इक्खाग० ॥२२॥
(५) ढाल (सफल संसारनी) राग-गुडी एकशत दोइ जिनसंभवे गणहरा लाख दो मुणवरा सयल पातकहरा । एकशत सोल अभिनंदणे गणहरा लाख तिम तीन मदहीन मुनि शुभकरा ॥२३॥
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अनुसंधान-१५.55 सुमतिजिन एकशत मतिधरु गणहरा वीस सहस्सग्गला तीन लखा पुरा । एकशत-सात पऊमप्पहे गणहरा तीस सहस्सग्गला तीन लक्खा घ(व)रा ॥२४|| जिणसुपासस्स पंचाणूंआ गणहरा तीन लक्खा नमो साहू सोहाकरा । सामि चंदप्पहे त्राणुंआ गणहरा अढीअ लक्खा तहा साहू धम्मागरा ॥२५॥ असीअ अटुग्गला सुविहिजिणि गणहरा दोइ लक्खाऽणगारा य मंगलकरा । सीतले नमसुं एकासीआ गणहरा एगलक्ख मुणीणं नमो भविवरा ॥२६।।
(६) ढाल (सामलिआनी) राग-मल्हार अजितजिणिदतित्थं नमो, नमो सगर मुणिदो । नमह मघवं च चक्की मुणिं, सणंकुमर नरिंदो ॥२७॥ संति-कुंथु-अरजिणवरं, पउमं दिरिसेणं । जेहिं मुकं च चक्कित्तणं, नमह तं जयसेणं ॥२८॥ विमलतित्थंमि जं दीक्खिअं, महाबलय मुणीसं । सेठिसुदंसणं तं पुणो, महावीरजिणसीसं ॥२९॥
गाहा अचलं विजयं भदं, वंदे सुप्पभ-सुदंसणं सिद्धं । आणंदनंदणं च, पउमइय अट्ठ बदेवे(वंदेवे ?) ॥३०॥ जेणुग्गतवं तत्तं, अवराहं दटुं नियप(स)रूवस्स | तुंगिअगिरिवरसिहरे, सो राममहामुणी जयउ ||३१||
(७) ढाल (परममुनिनी) राग-सामेरी सामिसेआंस बावत्तरि गणहरा सहस चउरासीआ पवर-जोगीसरा ।
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अनुसंधान-१५.56 वासुपुज्जस्स छासहि वरगणहरा सहसबावत्तरि साहु संतीकरा ॥३२॥ विमल पंचास सत्तग्गला गणहरा सहस अडसट्ठि साहु सुबोहंकरा । . चउदमइणं तिपंचास गणहराऽरया सहसछासट्ठि अणगार भवपारया ॥३३।। धर्मभगवंत त्रेताल वरगणहरा सहसचउसट्ठि वाचंजमा तववरा । संतिजिणनाह छत्तीस गणहारयया सहस बासट्ठि निग्गंथ सीलागरा ॥३४॥ कुंथुजिण पणमि पणतीस वरगणहरा सहस सट्ठी बिसिट्ठि मुणाणंभरा (?) । अरजिणे जाणि तेतीस गणहारया सहसपंचास साहुअ उवगारया ॥३५॥
(८) ढाल (सुणि जिन त्रिभुवनविंदनी ए-ढाल) ज्ञाताधर्मकथांगिइ मल्लिजिणेसरिइं, जातीसमरण पामीआ ए । पडिबुद्धी मुखिराय अंगनरेसर, कोसल-चंपासामीआ ए ॥३६|| संखो रूपीराय अदीणसत्तुअ, छ? जितशत्रु मिल्यो ए । मल्लिजिणेसर पासिई संयम अणुसरी, सुअपूरव पुरुषो कल्यो ए ॥३७॥ षटकेवली मुणिंद सिद्ध(द्धि)वधू वर्या, ते प्रणमो मुनिराजीआ ए । विष्णुकुमारमुणिंद लबधि-तपीसर, जस लबधिइं गुरु गाजीआ ए ॥३८॥ पंचसया एगूण खंदगसीसाण, अंतगडा नवि वीसरई ए । मुणिसुव्वयजिण पासिई कत्तिअसिट्ठिअ, अट्ठसहसस्यूं नीसरई ए ॥३९॥
(९) ढाल (सकल गुणरासिनी) अट्ठवीसं च मल्लिस्स ते गणहरा, सहस्स च्यालीस निग्गंथ सोहाकरा । णमह अट्ठारसं गणहरा सुव्वए, तीस सहसा सुसाहूरया सुव्वए ॥४०॥ सतर शुभ गणहरा नमिजिणे गतमरा, वीस सहसा य वाचंयमा सुअहरा ।
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अनुसंधान-१५ • 57 नेमिनाहमि अट्ठार नमि गणहरा, प्रणमि अट्ठारसहसा य तस मुणिवरा ॥४१॥ घोरउवसग्गि जस नो वि समयावली, वाघिणी-खज्जमाणो वि जो केवली । मुणि स(सु)कोसल तहा कित्तिधरथी मली,
कर्मनी रासि सुग्गिलगिरिइ सिव मली ॥४२|| (१०) ढाल देशाख (वंदो मेरे भाइनी) नेमि समीपिइ दीख गहीनिइ, भरी आउए समरंगि रे । जे यादव सीधा सेत्तुंजिई, ते नमि आठमि अंगिइ रे ॥४३॥ अंधगविष्णि-धारणी पूता, गौतम समुद्रसागरा रे । गंभिरो थमितो अचलाभिध, अक्खोभ कंपिल नागरा रे ॥४४॥ प्रसेन विष्णु कुमारा दसए, आठ तिजी वधू कोडी रे । भिक्खु पडिमा बार वहीनिइं, जेणि भवदुखतति तोडी रे ॥४५।। विष्णि-धारणीना आठ नंदन, अक्खोभ समुद्दसागरा रे । हिमवंतो अचलो अभिचंदो, पूरण धरणा धीवरा रे ॥४६॥ आठ आठ कोडि तिजी रमणीनई, नेमिइ दीख्या दीधला रे । सोल वरीसी पाली दीख्या, सित्तुंजगिरिवरि सीधला रे ॥४७॥ सुलसा-नाग देवकी षट् सुत, अणीअजसादिक तामिला रे । कोडि बत्तीस बत्तीस तिजीनइ, रमणि बत्तीसी वामिला रे ॥४८॥ धारणि वसुदेवा गजसारण, कोडि वधू पंचासो रे । चउद पूरवी मुनिवर सीधा, बोडी भवदुख पासो रे ॥४९॥ गजसुकमाल देवकीनंदन, तिजि दिजकुमरी राजो रे । नेमि दीख एकराई पडिमा, बलीउ लिइ सिवराजो रे ॥५०॥
गाहा तं वंदे रहनेमि चउरो वच्छरसयाई जस्स गिहे । जो वरिसं छठमत्थो पंचसए केवली जो उ ॥५१॥
(११) ढाल - असाउरी (देखण दे) सुमुख दुमुख मुणि कू(रू?)प अणाढिअ, दारुक रामकुमारा रे । तिजि पंचास कोडि तिम रमणी, मुणि सीधा कृतपारा रे ॥५२॥
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अनुसंधान-१५ • 58 जालि मयालि वयालिअ नामा, पुरिस वारिसेण वीरा रे । ए वसुदेव-धारणी जाया, वधू पंचास तिजीया रे ॥५३॥ प्रद्युमनो हरि-रुपणि पूतो, संबो जंबूव तीनो रे। .
अनिरुधो प्रद्युम्नतणो सुत, जायो वैदरभीनो रे ||१४|| सिवा-समुद्रविजयना पूता, सत्यनेमि द्रढनेमी रे । पंचास पंचास तिजी वधू, सीधा दीखित नेमी रे ॥५५॥ पदमावति गोरी गंधारी, सुभलक्खल(म)णा सुसीमा रे | जंबवती सत्यभामा रूपिणि, हरि-वधू आठ सुनामा रे ॥५५|| महामति संबतणी दो धरणी, मूलसिरी मूलदत्ता रे ।। पवेसे वीस वरीसी दिक्खा, पाली सिवसुह-पत्ता रे ॥५६॥ आठमअंगि छठि वरगिई, महावीरजिण पा(भा)सइ रे । ऋद्ध-समृद्ध-मकाई प्रमुखा, सोल गया सिववासिई रे ॥५७॥ सेठि मकाईअ अर्जुनमाली, कमिउ कासव खेमा रे । धृति धीरो कलिसहरि वंदन, वार तिस्यूं गतपेमा रे ॥५८॥ साहु सुदंसण पूरणभद्रो, सुमणभद्र सुपतीठा रे । मेघो अतिमुत्तो अ अलक्खो, सोल अंतगडि दीठा रे ॥१९॥
गाहा
जो वासुदेव पुरओ, पसंसिओ दुक्ख(क)रं करेउ त्ति । सिरिनेमिजिणवरेणं, तं ढंढणरिसिं नमसामि ॥६०॥
(१२) [ ढाल] राग-केदार-गोडी अंतेउरी ए तेर नमो भवि, अंतेउरी ए तेर । श्रेणिकनरपति वालडी रे, मुक्या भवना फेर ।
हा रे जिण मुकी किरिआ तेर नमो रे० ॥६॥ नंदा नंदवती सती रे, नंदुत्तर मरुदेवि । सुमरुत मरुता तह सिवा रे, णंद सेणिआ सेवी ॥६२।। भद्रा सुभद्रा सुसणादेवि, देवि सुजाता वंदि । भूतदिना नमि तेरमी रे, सिद्धिगई चिर नंदि ॥६३।।
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अनुसंधान-१५ .59 श्रेणिकनी अंतेऊरी रे, दस अने(अंते)उरी जाणि । तप उपशमना कुंपला रे, पुहती सवि निर्वाणि ||६४|| काली रयणावलि तपिइं रे, कनकावलीइं सुकालि । कृष्णा महासति महसीहि रे, लघुसीहिंई महाकालिइं ॥६५।। सत्तमीआं प्रतिमा वही रे, कृष्णा देविइ च्यारि । सर्वभद्र लघु-महाकृष्णा रे, वहती पुहनी(ती) पारि ॥६६॥ सर्व थकी महाभद्र करीनई, वीर सुकृष्णा नारि । भद्रा वर प्रतिमा वही रे, राम सुकृष्णा धारि ॥६७|| पितु कृष्णा मुगता वली रे, आंबिल तप वधमान । महसेणा कृष्णा करी रे, लुणी दुखनिदान ॥६८॥
(१३) ढाल (परममुणि झाणनो) तिजीअ बत्तीस वरइब्भकुलबालिको सहसपुरिसेहि सम संजमं पालको । चउदपूरवधरो नेमिजिण-रत्तओ कुमरथावच्चउ सिद्धिसुह पत्तओ ॥६९॥
गाहा सुच्चा जिणं(णि)दवयणं, सच्चं सोअंति पणिओ हरिणा । कि सच्चं ति पव्वुत्तो, चि(चिं)तंतो जाइसरणाउ ॥७०॥ संबुद्धो जो पढम, अज्झयणं सच्चमेव पन्नवइ । कच्छुलनारयरिसिं, तं वंदे सुगइगइपत्तं ॥७१।। नारयरिसिपामुक्खे, वीसं सिरिनेमिनाहतित्थंमि । पन्नरस पासतित्थे, दस सिरिवीरस्स तित्थंमि ॥७२॥ पत्तेअबुद्धसाहू, नमिमो जे भासिऊ(उ) सिवं पत्ता । पणयालीसं इसिभासिआई अज्झयणपवराई ॥७३॥ (१४) ढाल (त्रिभुवन जिनपति वीर नइ) राग-सिंधुओ सहस पुरुषस्यूं संयमी, सिरिथावच्चा गुरु पासिइ रे, पासिइ रे ।
ते पूरव सम अभ्यासीआ रे ७४॥
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अनुसंधान-१५.60 सेत्तुंजगिरि सिरि शुकमुनी, करी अणसणि सोधो रे, सीधो रे ।
तिहां सेलगमुनि शत पांचसूं रे॥५॥ सेलासुत पडिबुद्धो रे, मुनि तिजीअ सरीरो सीधो रे, सीधो रे ।
ते शुभध्यानि विमलाचलिई ॥७६॥ ऊजलगिरि सुरपति नम्यो, बहुवरिससयाइ तवसी रे, मुवसी रे ।
ते सारण केवलि प्रणमीइ रे ॥७७॥ हणिओ पणि दुर्बोधनि, पण-पंडवि पणि थुणिउ रे, सुणिउ रे ।
दमयंत मुणी जगि सो नमो रे ।।७८|| रामसुउ कुंजवालुओ, सो बारवतीमां बलतो रे, [बलतो रे] ।
___कहई चरमशरीरि हूं कह्यो रे ॥७९॥ उपाडी सुरि आणीओ स(सि)रि नेमि तणे ते पासिइ रे, वाम्यो रे ।
सो संयमि केवलसिरि वड्यो ए ८०॥ पंच वि ते मुणि पंडवा सूणी नेमि तणूं निर्वाणूं रे, जाणू रे ।
ते बहु मुनिस्यूं मूगति गया रे ॥८१॥ (१५) ढाल (पियारु ए लयदिइय महम सिवराज) संमिलिआ केसी-गोयम गणहर दोइ । सावत्थी नगरमां अंबर, कौतक बहु सुर जोइ ८२॥ सोल सहस मुनि दस गणधरस्यूं, प्रणमूं अ पासजिणंद तस पावलि सुअ चउनाणी, केसिअ कुमर मुणिंद ॥८३॥ जेणि प्रतिबोध्यो राय पएसी, राजपसेणिअ साखि । वीर तणूं शासन पडिवजिऊ, उत्तराध्ययन इम भाखि ||८|| कालावेसिअ मुनिवर नमिओ, लोकपालि सुर च्यारि । पादोपगमनि खाइ सीआली, मुंगिले गिरि मनि धारि ॥८५॥ कालिअपुत्तं मेहलिथेरं, आणंदरक्खिअथेरा । ए सवि पासावच्चिअथेरा, नमि जस नहीं भव फेरा ॥८६॥
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अनुसंधान-१५ • 61 कालावेसिअपुत्तं आया, सामायिअ मुणि सीद्ध । कुंडरीक भाया पुंडरीओ, उपशमस्यूं व्रत लीध ॥८७||
(१६) ढाल-राग मल्हार ............ .......... वंदति पहु देवानंदा । पीन पयोधर खीर झरंती, मातिन मनि आनंदा रे ॥८८|| समवसरणि गिरि उग्यो देखती, प्रभु मुख पूनमचंदा रे । ऋषभदत्तमाहणस्यूं देखती, गोअममाइ मुणिंदा रे ॥८९॥ एकादश वर गणधर गिरुआ, चउद सहस यतींदा रे । वीर वदइ हम मातपिता ए, दीख भए सुखकंदा रे ॥१०॥ करकंडु दुमहो नमीराया, तह निग्गई (नगगई ?) नरिंदो रे । ए प्रत्येक मुनिवर सवि सीधा, सीधा प्रसन्नचंदा रे ॥११॥ वलकलचीरी अइमुत्तो मुनि, कुमरा केवलि जाया रे । लोहज्झो मुणि खुडुगकुम(मा)रो, केवलि पवयणि गाया रे ॥१२॥ दढपहारि महातवसी सीधो, कूरगडु चउ खवगा रे । पनरससयां तावस मुणि केवल, गोयम बोहिअ सिवगा रे ॥१३॥ प्रणमह तं सिवराय रिसीवर, नमीइं दंसणभद्दा रे । मेतारज अ इलाईअपुत्तो, केवलणाणसमुद्दा रे ॥९४il केवलि इंदनाग मुणि भगवति, मृगापूत सिवपत्ता रे । धर्मरुची महापउमो मुनि वर, महासुक्कि सुर पत्ता रे ॥९५।।
गाहा उवसम-विवेग-संवर-पयचिंतणवज्जदलियपावगिरि । सोढुवसग्गो पत्तो, चिलाइपुत्तो सहस्सारे ॥९६।।
(१७) ढाल-गांठडी तेतलीसुत मुनि केवली, जितशत्रु मुनीस रे । उदगबुद्धि सुधी धीनिधी, तस चरण नमीसि रे ॥१७॥ अद्दकुमारो गयबंधणो, तहा पुत्त पेढाल रे । श्रीसुजातो मुनि केवली, सुदंसण व्रत पाल रे ॥९८॥
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अनुसंधान-१५ • 62 गंगजल विमल गंगेअउ, जिण पालि उसग्गि रे । धर्मरुचि अणाकुट्टिओ, सरवारथि सग्गि रे ॥१९॥ साहु जिणदेव ते केवली, कपिलकेवली जोइए रे । पंचसि चोर ते बोहिआ, सुणइ कौतक होइ रे ॥१००। तपसिहरि केसिउ सुर भज्यो, इखुकार नरिंदो रे । तस घरणी कमलावती, सती सुभगनो कंद(दो)रे ॥१०१॥ भृगुप रोहितजसा भारिया, तस वरसुत दोइ रे । ए षट संयमि केवली, मुगति एकठां होइ रे ॥१०२॥ खित्ति मुणि पडिबोहिओ, मुनी संपतीराय रे । उत्तराध्ययनि मोटूं चरी, सुणिहं कौतुक थाइ रे ॥१०३|| सेणिअसुत अणाथीमुणी, समुदपालिउ सीध रे । जय-विजयघोष साहु हवे, सिवरमणी अ लोध रे ॥१०४॥
(१८) ढाल (जिन त्रिभुवन कीरति विस्तरी) गंगाजल भर विचि केवली, अनिकासुतथि वरइ सिवकली । आज तिहा प्रयाग तीरथ वली, करीउ तिहां महीमा सुर मली ।।१०५|| कटुतुंबी धर्मरुचिं गली, तेणि कर्मतती तिहां बहु दली । देवलासुत रायरिसी गणूं, कुरमासुत दो रयणी तणूं ॥१०६।। मुणि चंडरुद्दसीसो सुणूं, तस खंतिगुणा केता भणूं । निजगुरु जेणे पडिबोहिओ, तेणेई गुरु पणि वर केवल लीओ ॥१०७|| जेणिई वर बत्तीस रमणि तिजी, जेणि उज्झिअभिक्खा भर भजी । सोइ वीरपसंसिअ धण मुणी, सरवारथ सिद्धिइ सो गुणी ॥१०७॥ थुणि सीतलसूरी अ केवली, तस चउ भाणेजा तिम वली । दस सुत विपाक धूरि जाणीई, मुणि दाणि सुबाहु वखाणीई ॥१०८।। नव भद्दनंद पमुहा तहा, रोहा मुणि पिंगलमुणि कहा । एकादशअंगी अ भगवती, कहीउ खंदगतावस यती ॥१०९॥ जिण वीर सीस ती-सय मुणी, बहु वरिस छ? तवसी सुणी । मासं संलेहिअतणूं वरो, जाओ सामाणिअसुरवसे ॥११०॥
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अनुसंधान-१५ • 63 कुरुदत्तसुर बहुतवजुओ, चउबुद्धिनिधी अभड सुउ । तह मेघकुमर सेणिअसुतो, गुणरयणतवो विजए गतो ॥१११॥ सेणिअसुत तव संजमजुअ, विणूवेरा हल्ल-विहल्लया । गुणरयणा एगऽवतारया, विजयंतविमाणे ते गया ॥११२।।
(१९) ढाल-गुडी(अंबरथीति) जिन-गुरु रागिइ ततु, तिजीसरगि गयु सहसारिइ । एक अवतारीअ प्रणमीइं, सार्वनु(सर्वानुभूति अनिगारिइ ।।११३॥ तेजोलेसि-गोसालीइ, बलिउ मुनि सुनक्खित्तो । अच्चुअसरग ते पामी, जिनगुरुभगतिसु जुत्तो ॥११॥ वीरजिनौषधदायगो, धिन सीहो अनगारो । रेवतीगिह पडिलाभीउ, रडिउ रागि अपारो ॥११५।। सालिभद्र धिन धनमुणी, जेहि तजी महारिद्धी । वैभारि अणसण गया, ते सरवारथसिद्धी ॥११६॥ रायरिसी जिन वीरना, चरम उदायी सीसो । केंवल वर मुगति गयु, प्रणमो सो निशिदीसो ॥११७॥ जंबू मुणी नवजोवणो, तिजी नारी बहु कोडी । गुणनिधि चरम ते केवली, मुगति गयु दस तोडी ॥११८॥ प्रभवो गुरु सिज्जंभवो, जसभद्दो संभूती । विजय भद्दबाहु गुरु, चउदसपूर्वी विभूती ॥११९।। शीत सही मुनि सुर थया, भद्रबाहु चुर सीसो । महागिरि गुरु सुहत्थी गुरु, जिनकलपादि जगीसो ॥१२०॥ नारिबत्तीसी अ जो तिजी, नलिणीगुलमविमाणि । कुमर अवंतीअ सुर थयुं, मुणि सीआलिअ खीणि ॥१२॥
उक्तं
च
सोऊण गुणिज्जंतं, सुहत्थिणा नल(लि)णिगुम्ममज्झयणं । तक्कालं पव्वइओ, चइत्तु भज्झाउ बत्तीसं ॥१२२॥ तिहिं जामेहिं सिवाहिं, अवच्चसहियाहिं सहिअउवसग्गो ।
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अनुसंधान-१५.64 साह(हि)अकज्जो तिअगेहि, महिओ अवंतिसुकुमालो ॥१२३।।
गाहा एगो गुहाइ हरिणो, बीओ दिट्ठीविसस्स सप्पस्स । तइओ उ कूवफलहे, कोसघरे थूलभद्दमुणी ॥१२४॥ भयवं पि थूलभद्दो, तिक्खे वंकमि(खग्गंमि) [ग]ओ न उण छिनो । अग्गिसिहाए वुत्थो, चाउम्मासं नवि अ दड्डो ॥१२५॥
(२०) ढाल (थावच्चानी) बहु पद पन्नवणा पत्रवणा, निज्जूढा भगवंतिइ । त्रेवीसमो य पटोधर जाणो, सा(सो?)मसूरि गुणवंतिइ ॥१२६।।
___ भविआ प्रणमो भवि उपगारी थिविरावलिइ कह्या जे थेरा ते प्रणमो गणधारी ॥ सीहगिरिना सीस मनोहर, धणगिरि वयर सुसीसा । जे थेरा ते प्रणमो गणधारी अरिहदत्त गुरु सि(स)मितायरिआ,
भद्र सुगुप्स मुनीसा॥१२७॥ पढमणुओगि जिणभव चक्की, दसारभद्द चरिआइ । कालयसूरि लोग निमित्तं, कासीसो जगत्ताई ॥१२८॥ अज्जसमुद्द थेर दुबलिया, पुत्तसमं गणधारी । पंचसया तावस पडिबोहग, मुणि समितं उवगारी ॥१२९॥ नहगमणी वेउव्विअलद्धी, जेणि धरी नयऋद्धी । सुयधर चरमो जाइअसरणो, वयरसामि बहु बुद्धि ॥१३०॥ वयरखुड्डगं अणसणसहिअं, लोगपालि रहवत्ते । रहावत्त तेणइ नाम पवत्तो, लस नमि सिरसावत्ते ॥१३१।। वयरीशाखा जेणि पवत्ती, वयरसेणि सुभ जोगो । हीणबुद्धि मुणि कालइ जाणी, चउहा कय अणुओगो ॥१३२|| जेणं सो मुणि अज्जरक्खिओ, सुर-नर-किंनरमहिओ । तह दुब्बलिआ पूसमित्तओ, नव पूरवधर कहिओ ॥१३३।। दुभिक्खे नद्धे अणुओगे, महुराए अणुओगो ।
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________________ अनुसंधान-१५.65 खंदिल आयरिएण पवत्तो, ते जण(जिण)सासण जोगो // 134 // सुअवायण रयणायर गणधर, उवसम-खम-दमभरिओ / खमासमण देवड्डीअ प्रणमो, जिणि आगम उद्धरिओ // 135 // . (21) ढाल (धन्यासी) नरगंधसिंधुरं कंबुवरकंधरं वदनवासंतिका-गंधधारि(रं) / सेज्झ-दयाधर(रं) तह दयेंग(?) सीमंधरं त्रिजगदाधार-जातावतारं // 136 / / रूपगुणसुंदरं विश्वसि(सी)मंधरं विहरमाणादिमानंदकारं / सकलजिणबंधुरं शुचितश्रुतिकंदरं, रचित गीर्वाणगीतोपचारं // 137 // धीधना भो जना ! जपत युगंधरं जिनपबाहु-सुबाहु-सुजातं / स्वामिस्वयंप्रभ नमत ऋषभाननं नंतवीर्य महत सुप्रभातं // 138 // श्रयत सूखभं देवविशालकं वज्रधराभिध(घ) स्मरत यूतं / भजत चन्द्राननं चंप्र(द्र)बाहु(हुं) तथा जिन जगेश्वरं त्रातभूतं // 139 / / नमत नेमिप्रभं वीरसेनं जिनं महाप्रभाव तथा देवयशसं / अजितवीर्यं अमी विहरमाना जिना मंगलं भवतु वो सुप्रशस्तं // 140 // पुक्खरवरदीवड्डे धायइसंडे अ जंबूदीवे अ / भरहेरवयविदेहे धम्माइगरे नमसामि // 141 // उस्सप्प(प्पि)णि(णी)इ चरिमं दुप्पसहं गणहरं च वंदामी(मि) / एए अन्ने य तहा चंदनबालाइ समणीउ // 142 // मुणिएगमंतमालं, सिवयं समायरइ जो सया कालं / सो पावइ य विसालं, पुण्णं पावक्खए मूलं // 143 / / सिरिआणंदविमलगुरुपट्टे सिरिविजयदानगुरुपट्टे / सिरिहीरविजयचंदं वंदइ तं सकलचंदमुणी // 144 // // इति साधुवंदना-मुनिवरसुरवेलि समाप्तः // ग्रंथाग्रं-२००।। संवत् 1682 वर्षे कार्तिक सुदि 15 दिने सुश्राविका मानबाई पठनकृते / / सुभं भवतु // .