Book Title: Mumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Manikchand Panachand Johari
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( ५ ) .
पढ़नेसे विदित होगी । जबसे जैन राजाओंने धर्मकी शरण छोड़ी और संसार वासना के वशीभूत हुए तबसे ही उनकी श्रद्धा शिथिल हो गई । इस शिथिलता अवसरको पाकर अजैन धर्मगुरुओंने उन्हें अपना अनुयायी बना लिया और उन्हीं के द्वारा बहुत कुछ जैन धर्मको हानि पहुंचाई गई - राजा के साथ बहुत प्रजा भी अजैन हो गई । उदाहरण - कलचूरी वंशज जैन राजा वज्जालका है जिसको सन् १९६१ - १९८४ के मध्यमें वासव मंत्रीने शिख धर्मी बनाया और लिंगायत पंथ चलाया । इससे लाखों जैनी लिंगायत हो गए देखो टट ११३ || इस कारण बहुतसे जैन मंदिर शिव मंदिर में बदल दिये गए जिसके उदाहरण पुस्तकके पढ़नेसे विदित होंगे । जैन राजागगोंने बहुतसे सुन्दर २ जैन मंदिर निर्मापित कराए और उनके लिये भूमि दान दी ऐसे शिलालेखों का संकेत भी पुस्तक से मिलेगा ।
कादम्ब, कलचूरी, राष्ट्र व गंग तथा होसाल वंशी अनेक राजा जैन धर्म के माननेवाले हुए हैं । राष्ट्रकूट वंशी जैन राजाओंने गुजरात और दक्षिण में बहुत प्रशंसनीय राज्य किया है । गुजरातमें सोलंकी वंशधारी मूलराजसे लेकर कर्णदेव (सन् ९६१ से १३०४) तक जो राजा हुए हैं वे प्रायः सब ही जैन धर्मधारी थे इनमें सिद्धराज और कुमारपाल प्रसिद्ध हुए हैं । हैदराबाद में एलूरा गुफाके जैन मंदिर व वीजापुर में ऐहोली और बादामीकी जैन गुफाएं दर्शनीय हैं - शिल्पकलाका भी उनमें बहुत महत्त्व है ।
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मुसलमानोंने बल पकड़कर कितने जैन मंदिरोंको मसजिदों में बदला यह बात भी पुस्तकसे मालूम पड़ेगी ।

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