Book Title: Mumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Manikchand Panachand Johari

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Page 11
________________ (१० भारतकी यात्रा करते हुए देखते हैं । उन्होंने मालवा प्रांतसे मैसूर प्रांतकी यात्रा की और श्रवणबेल्गुलमें अपना स्थान बनाया । उनके शिष्य चारों ओर धर्मप्रचार करने लगे । आगामी थोड़ी ही शताब्दियोंमें उन्होंने दक्षिण भारतमें जैन धर्मका अच्छा प्रचार कर डाला, अनेक रानाओंको जैनधर्मी बनाया, अनेक द्राविण भाषा ओंको साहित्यका रूप दिया, अनेक विद्यालय और औषधिशालाएं आदि स्थापित कराई । बम्बई प्रांतके प्रायः सभी भागोंमें भद्रबाहुस्वामीके शिष्योंने विहार किया और जैनधर्मकी ज्योति पुनरुद्योतित की। ईसाकी पांचवीं छटवीं शताब्दीमें भी यहां अनेक प्रसिद्ध जैन मंदिर बने थे । इनमेंका एक मंदिर अबतक विद्यमान है। वह है ऐहोलका मेघुती मंदिर । इस मंदिरमें जो लेख मिला है वह शक सं० २५६ का है । उससे बहुतसी ऐतिहासिक वार्ताएं विदित होती हैं । उसका लेखक जैन कवि रविकीर्ति अपनेको कालिदास और भारविकी कोटिमें रखता है । यह लेख इस पुस्तकमें दिया हुआ है। ईसाकी दशवीं शताब्दितक जैन धर्म दक्षिण भारतमें बराबर उत्तरोत्तर उन्नति करता गया। यहांके बंबई प्रांतमें जैन धर्मका कदम्ब, रट्ट, पल्लव, सन्तार, चालुक्य, उन्नति । राष्ट्रकूट, कलचुरि आदि राजवंश जैन धर्मावलम्बी व जैनधर्मके बड़े हितैषी थे। यह बात उस समयके अनेक शिलालेखोंसे सिद्ध है। इन्होंने जैन कवियोंको आश्रय दिया और उत्साह दिलाया । उन्होंने अनेक धार्मिक बाद कराये जिनमें जैन नैयायिकोंने विजय

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