Book Title: Mumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Manikchand Panachand Johari

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Page 10
________________ ( ९ ) बिहार प्रांतको छोड़ अन्य और किसी प्रांतमें बम्बई के बराबर जैनियोंके सिद्धक्षेत्र नहीं हैं। पुराणोंसे विदित होता है कि पूर्वकालमें यह प्रांत करोड़ों जैन मुनियोंकी विहार भूमि थी । बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथके पांचों ही कल्याणक इसी प्रांतमें हुए हैं। उनका मुक्ति स्थान गिरनार आज अनेक जैन मंदिरोंसे अलंकृत हो रहा है जिसकी बन्दना कर प्रतिवर्ष सहस्रों यात्री अपने पापोंका क्षय करते हैं। यह वही ऊर्जयन्त पर्वत है जिसका सुन्दर वर्णन माघ कविने अपने शिशुपाल वध काव्यमें किया है । पावागिरि, तारंगा, शत्रुंजय वा पालीताणा, गजपंथा, मांगीतुंगी, कुंथलगिरि क्षेत्रों को करोड़ों मुनियोंने अपनी तपस्या और केवलज्ञानसे पवित्र किया है । ये स्थान हजारों वर्षोंसे जैनियों द्वारा पूजे जा रहे हैं । इनसे अनेक स्थानोंके मंदिरोंकी कारीगरीने अपनी विलक्षणताने भारतके कला कौशल सम्बंधी इतिहास में चिरस्थायी स्थान प्राप्त कर लिया है । जब कि जैन ग्रन्थोंमें इस प्रांतके विषय में उपर्युक्त समाचार मिलते हैं तब यह प्रश्न उठाना निरइतिहासकार में बंबई प्रांतका र्थक है कि बंबई प्रांत से जैनधर्मका जैन धर्म से सम्बन्ध | संबन्ध कब प्रारंभ हुआ । निस्सन्देह यह संबन्ध इतिहासातीत कालसे चला आरहा है । भारतके प्राचीन इतिहास में मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्तका काल बहुत महत्त्वपूर्ण है । इस देशका वैज्ञानिक इतिहास उन्हींके समयसे प्रारंभ होता है । वैज्ञानिक इतिहासके उस प्रातः कालमें हम जैनाचार्य भद्रबाहुको एक भारी मुनिसंघ सहित उत्तर से दक्षिण

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