Book Title: Mumbai Ke Jain Mandir
Author(s): Bhanvarlal M Jain
Publisher: Gyan Pracharak Mandal

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मंदिर प्रथम शुभाशीर्वाद दाता परमार क्षत्रियोद्वारक प.पू. आचार्य भगवंत श्री विजय इन्द्रदिन्नसूरीश्वरजी महाराज जीवन झलक प्राचीन काल से ही ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक क्षेत्र में अपनी अनोखी पहचानवाले गुजरात क्षेत्र के बडौदा जिले के सालपुरा गाँव में परमार क्षत्रिय वंशमें वि.सं. १९७९ के कार्तिक वदी नवमी को धार्मिक वृत्ति एवं सुसंस्कार वाले श्री रणछोडभाई के यहाँ स्नेहमयी माता श्रीमती बालुबहन की कोख से आपका जन्म हुआ बालक का नाम मोहनभाई रखा। श्री मोहनभाई, धर्म में अटुट श्रद्धा रखने वाले श्री ग्णछोडभाई के परिवार का अत्यन्त ही लाडला बन गया। जिस पर मां की ममता अमृत वर्षा करती रहती थी। पिता स्नेह, सागर की विशालता के तरह दे रहा था। बचपन की अटखेलियो हम उम्र के साथियो के साथ बालक्रीडा में अलमस्त रहनेवाले बालक श्री मोहनभाई ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सालपुरा में आरंभ की। शिक्षण संस्था में अध्ययन करानेवाले शिक्षक भी इस होनहार बालक के हावभाव, आचार, विचार को देखकर आश्चर्य चकित रहते थे। अक्सर बालक श्री मोहनभाई अपने सहपाठियो एवं शिक्षको के साथ त्याग, तपस्या एवं वैराग्य की चर्चा करने में आनन्द की अनुभूति समझता था । यह संस्कार उसके माता पिता की धार्मिक वृत्ति एवं धार्मिक संस्कारों के कारण इनमे विकसित हो रहे थे। अक्सर बालक श्री मोहनभाई के शिक्षक इनके माता पिता के सामने इनके वैराग्य लेने की चर्चा करते रहते थे, परन्तु इनके माता पिता उसे सांसारिक जीवन बिताने की तरफ मोडते रहे। बालक श्री मोहनभाई बचपन के अटखेलियो से अभी बाहर भी नहीं निकल पाया था कि उसकी १० वर्ष की आयु में अचानक माता पिता का स्वर्गवास हो गया। माता पिता के स्वर्गवास के बाद बालक श्री मोहनभाई की परवरिश का भार इनके चाचा श्री सीताभाई के कंधो पर आ गया। श्री मोहनभाई की आगे की शिक्षा के लिये इन्हें जैन संत पन्यास श्री रंगविजयजी म. के पास सालपुरा से २२ किलोमीटर दूर डभोई ले गये । ११ वर्ष की आयु में डभोई मे पंन्यास श्री रंगविजयजी के पास जैन धर्म की प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। इसके पश्चात् बोडेली में पन्यास श्री रंगविजयजी द्वारा परमार क्षत्रिय भाईयो के बच्चो के लिये बनाये ‘कुमार छात्रा वास' में प्रवेश दिला दिया । बस यहाँ रहते इसने व्यावहारिक शिक्षा-ज्ञान प्राप्त करने के साथ आत्मकल्याण हेतु वैराग्य जीवन जीने का मन ही मन नक्की कर लिया था। होनी को कौन टाल सकता हैं। श्री मोहनभाईने संसार के मोहमाया जाल से निकल For Private and Personal Use Only

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