Book Title: Mumbai Ke Jain Mandir
Author(s): Bhanvarlal M Jain
Publisher: Gyan Pracharak Mandal

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 . मुंबई के जैन मंदिर म. के वरद हस्ते आचार्य पद पर अलंकृत हुए थे । आप श्री विनयशीलता - सरलता - परोपकार - दूरदर्शिता आदि गुणो से अलंकृत हैं। पूज्यपाद युगदिवाकर गुरुदेव की कृपा के परम पात्र बने हुए आपश्रीने पूज्य युगदिवाकरश्री की शासन प्रभावना के अंशो का बारसा प्राप्त किया हैं, इसीलिये अंजनशलाका-प्रतिष्ठा - दीक्षाउपधान - उद्यापन - छ'री'पालक संघ, साधर्मिक सेवा केन्द्र, जिनालय, उपाश्रय, आयंबिल भवन, पाठशाला आदि धर्म कार्यो की हारमाला का सर्जन आपश्री के वरद हस्त से हो रहा है। आप श्री की मुख्य प्रेरणा या निश्रा में १९ स्थलो पर प्रतिष्ठा हुई हैं। उसमें भाईन्दर-रथाकार जिनालय और बोरीवली-पूर्व श्री संभवनाथ जिनालय के शानदार अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव विशेष उल्लेखनीय हैं । आपकी प्रेरणा से १४ स्थलों पर 'धर्म विहार' आदि उपाश्रयों आदि का निर्माण हुआ हैं। आपश्री के मेधावी और सिद्धहस्त लेखक शिष्यरत्न पू. मुनिराज श्री राजरत्नविजयजी म. आदि भी आपश्री की शासन प्रभावक धर्मकार्यो की परंपरा का अनुसरण कर रहे हैं। इस प्रकार शासन के अनेक धार्मिक कार्यों में सदैव तत्पर, सदा हसमुखी, अहंकार रहित ऐसे सरल स्वभावी पूज्य गुरुदेव आचार्यदेव श्री विजय सूर्योदयसूरीश्वरजी म. के. संयम यात्रा का ५० वा वर्ष का सुवर्ण महोत्सव श्री पार्श्वनाथ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ घाटकोपर (प.) की तरफ से वि.सं. २०५४ का माह सुदी ११, शनिवार, ता. ७-१-९८ को पारमेश्वरी प्रव्रज्या - उपधान तप मालारोपण प्रसंग पर मनाया गया था, और इसी शुभ दिन को ही 'मुंबई के जैन मन्दिर' (आवृत्ति दूसरी) के मुद्रण के लिए ‘जयन्त प्रिन्टरी' में जाने का शुभ मुहूर्त था। प्रेरक, संशोधक एवं मार्गदर्शक रुपी खेवनहार बनकर इस पुस्तकरुपी नैय्या को पार करानेवाले परम पूज्य गुरुदेव के चरण कमलों में कोटि कोटि वन्दना भी शायद कम होगी। अंतमें मेरी शासनदेव से प्रार्थना हैं कि आपश्री को अधिक से अधिक शासन सेवा के लिये शक्ति एवं आयु प्रदान करे, यही अंतर अभिलाषा हैं। - भंवरलाल एम. जैन-शिवगंज For Private and Personal Use Only

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