Book Title: Mrugank Charitram
Author(s): Ruddhichandra Yati
Publisher: Nirnaysagar Mudranalay

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Page 26
________________ मृगांक चरित्रम्. // 12 // पूर्वरागेण सम्बन्धो मिलितो हि परस्परम् / पात्रदानात्सुखमास-मसुखं तु कुभावतः // 278 // पुनः सुखं हि सद्भावात् संप्राप्तं वसुधाधिप! / देशनामिति श्रुत्वा स धर्म चकार भावतः // 279 // जीर्णोद्धारप्रतिष्ठादि जिनबिम्ब-जिनालयम् / इत्यादिधर्मकृत्यानि चकार धरणीपतिः // 280 // एकस्मिन् समये च्युत्वा द्वादशे हि दिवालये / द्वावपि दुष्टसंसाराद् जग्मतुः सुखहेतवे // 281 // पुनः खर्गात् समागत्य भुक्त्वा च मानुषं भवं / मृगाको मुक्तिगेहे हि मानिन्या सह यास्यति // 282 // एवं विभाव्य भो भव्याः! दानं दत्त सुभावतः / पात्रापात्रे यथा शक्त्या निदानं सुखसन्ततेः॥ 283 // श्रीमत्तपगणगगने गगनमणिविजयसेनसूरीशः / तस्यानुक्रमपट्टे गुरुर्विजयदेवसूरिवरः॥ 284 // तद्गच्छे सततं जयन्तु सुखदाः श्रीभानुचन्द्राश्चिरम् / षण्मासाऽभयदायकाः क्षितिपतिं दिल्लीपतिं पेशलम् // सद्वाग्भिः प्रतिबोध्य शास्त्रजलधेः पारंगता भूतले / तीर्थेशाऽकरकारका गतगदाः प्राग्भारपुण्योत्कराः 285 तस्य वयंपदाम्भोज-शिलीमुखानुकारिणा। सपर्यासक्तचित्तेन ऋधिचन्द्रेण निर्मितम् // 286 // इदं विश्वे प्रसिद्धस्य भावाम्भोरुहभाखतः। सच्चरित्रं मृगाङ्कस्य श्लोकाभ्यासनहेतवे // 287 // पण्डितम्राजकोटीरैरुदयचन्द्रधीधनैः / शुद्धीकृतमिदं सम्यक् चरित्रं चित्तसात्कृतम् // 288 // // इति श्रीमृगाङ्कचरित्रं समाप्तम् / / // 12 //

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