Book Title: Moksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Author(s): Ram Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 9
________________ सुदी १० से वकालत बद करके निवृत्ति ले ली है, और तभी से वे करीब २ अपने सम्पूर्ण समय सोनगढ़ में ही रहते हैं, उनमें सूक्ष्म न्यायों को भी ग्रहण करने की शक्ति, विशालबुद्धि, उदारता और इस संस्था ( श्री दि० जैन स्वाध्याय मंदिर सोनगढ़ ) के प्रति अत्यन्त प्रेम आदिकी प्रशंसा पूज्य महाराज श्री के मुखसे भी अनेक बार मुमुक्षुओंने सुनी है । जो भी मुमुक्षु इस प्रन्थका स्वाध्याय करेंगे उनपर इस प्रकार श्रीयुत् रामजीभाई के प्रखर पांडित्य एवं कठिन श्रमकी छाप पड़े बिना नहीं रह सकती अतः श्री रामजी भाई का समाज पर बहुत उपकार है कि जिन्होंने इस ग्रन्थराजका विषय अनेक ग्रन्थोंमें कहा किस प्रकार आया है। और उसका अभिप्राय क्या है यह सब संकलन करके एक ही जगह इकट्ठा करके हमको दे दिया है । सबसे महान् उपकार तो हम सबके ऊपर परम पूज्य अध्यात्ममूर्ति श्री कानजी स्वामी का है कि जिनकी अमृतवाणीको रुचिपूर्वक श्रवण करने मात्रसे अपने आपको पहिचानने का मार्ग मुमुक्षुको प्राप्त होता है, और जिनकी अध्यात्म सरिताका अमृतमय जलपान करके श्री रामजी भाई एवं श्री पडित हिम्मतलाल जेठालाल शाह जिन्होंने समयसार प्रवचनसार नियमसारकी सुन्दर टीका बनाई ऐसे २ नर रत्न प्रगट हुये हैं । मेरे ऊपर तो परम पूज्य परम उपकारी श्री गुरुदेव कानजी स्वामीका महान् २ उपकार है कि जिनके द्वारा अनेक भवोंमें नहीं प्राप्त किया ऐसा मोक्षमार्गका उपाय साक्षात् प्राप्त हुवा है और भविष्यके लिये यही आन्तरिक भावना है कि पूर्ण पदकी प्राप्ति होने तक आपका उपदेश मेरे हृदय में निरन्तर जयवन्त रहो । - नेमीचन्द पाटनी श्रावण शुक्ला २ वीर नि० सं० २४८० }

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