Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवी संकेत पर संकेत आते थे, परकाय प्रवेश, नजर, डाकिन, भूत या अन्य उपद्रवों की आशंका में लोगों की नजर उन्हीं यतिजी पर पडती थी । जन्मपत्री, मुहूर्त आदि में भी आप कुशल थे। यों तो राजस्थान के प्रायः सभी यति उन सब कामों में कुशल होते हैं। फिरभी रूपचंदजी की योग्यता तो अद्वितीय थी। अधिष्ठायक देव भी साधना के कारण प्रसन्न थे। आपको एक रात्रि में स्वप्न में संकेत मिला, स्वप्न में कोई विनंति कर रहा है और कह रहा है " महाराज ! यह क्षीर से भरा सुवर्ण कलश आप वोहरें-स्वीकार करें!" महाराज जागृत हुए । स्वच्छ हो पंचपरमेष्ठी का ध्यान कर सोचने लगे स्वप्न तो बहुत अच्छा है, पैसे का में आकांक्षी नहीं अन्य चीजों की मुझे आवश्यक्ता नहीं। किंतु इस शुभ स्वप्न के अनुसार तो मुझे कोइ योग्य शिष्य ही मिलना चाहिये। इधर चांदपुर में हमारे चरित्रनायक विद्याध्ययन में आगे बढते जा रहे थे। और आयुभी साथ साथ बढ़ती ही जा रही थी। माता-पिता के भी वे पूरे भक्त थे। मोहन को देख देख दोनों का आत्मा संतुष्ट था। एक बार पंडित बादरमलजी रात्रि में अपनी सुख निद्रा में सोये हुए थे कि उन्हें अेक स्वप्न-दर्शन हुआ-उन्होंने देखा की उन के हाथ में सुवर्ण थाल है। उसमें क्षीरपात्र है और सामने कोई महात्मा-यति खडे है, पंडितजी स्वयं कह रहे हैं “ महाराज ! लीजिये यह स्वीकार कीजिये।” पंडितजी जग पड़े सोचने लगे यह मैंने क्या देखा ? मुझ गरीब के घर में कहां सोने का थाल ओर कहां एसे शांत महात्मा को मेरा दान करना ! देवी स्वप्नद्वारा “ मोहन" के जन्म का संकेत पाना उन्हें याद आया और यह निश्चय कर लिया कि मोहन उनके For Private and Personal Use Only

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