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अनुपम समयज्ञता
सभी विचार में निमग्न थे कि-ऐसी गरमी के टाइम में महाराज का सामैया कहां कहां किस प्रकार धुमाया जाय ? जनता का आना कसा बनेगा ? इतने में तो आकाश बादलों से आच्छादित होने लगा और थोडे ही टाइम में समग्र आकाश-प्रदेश बादलों से छा जाने पर मेघराजा की पधरामणी हुइ और सारी भूमि शांत हो गइ, थोडी ही देर में वर्षा बंध हो गई, फिर क्या कहना था ? संघ के हृदय में आनन्द की लहरें उछलनी शुरु हुइ और सहस्रों संख्या में नागरिक जनता आबालवृद्ध टोळोंबंध महाराजश्री के दर्शनार्थ उमट पडी, हजारों नरनारीयों की उपस्थिति में अहमदाबाद के श्री संघने बड़े ही ठाठ से आपका नगर प्रवेश कराया। संवत् १९५३ का चातुर्मास अहमदाबाद वीरविजयजी के उपाश्रय में किया। संवत् १९५४ का चातुर्मास पाटन-सागर के उपाश्रय में किया ।
चोमासे की पूर्णाहुति होने पर तुरंत ही आपने विहार किया और मेत्राणा तीर्थ की यात्रा कर आप पालणपुर पधारे, वहां कुछ दिन स्थिरता करके फिर पीछे पाटन पधारे वहां से मार्गशीर्ष कृ० १० मी के दिन आपके सदुपदेश से शेठ नगीनचंद सांकल चंदने श्री शंखेश्वरजी तीर्थ का संघ निकाला। संघपति के आग्रह से अपने शिष्यों के साथ चल कर संघजनों के आनन्द में विशेष वृद्धि की। सर्व यात्रियोंने निर्विघ्नतया श्री शंखेश्वर पार्श्वप्रभु की प्राचीन व प्रमावशालि प्रतिमा के दर्शन कर जन्म सफल किया। ___श्री शंखेश्वरजी तीर्थ की यात्रा कर महाराजश्री राधनपुर पधारे, कुछ दिन की स्थिरता बाद पुनः पाटन लौट आये । महाराज श्री दादासाहब श्री जिनदत्तसूरि व श्री जिनकुशलसूरि के
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