Book Title: Mevad praesh ke Prachin Dingal Kavi Author(s): Dev Kothari Publisher: Z_Agarchand_Nahta_Abhinandan_Granth_Part_2_012043.pdf View full book textPage 2
________________ 'गणधर सार्द्धशतक'की सुमतिगणिकी बृहद् वृत्तिमें इन्हें स्पष्टतः ब्राह्मण वंशमें उत्पन्न माना है ।' ये अनेक शास्त्रोंके ज्ञाता और बहुश्रुत विद्वान थे। प्रतिक्रमण अर्थ दीपिकाके आधारपर इनके द्वारा कुल १४४ ग्रन्थ लिखे गये, जिनमेंसे वर्तमानमें छोटी-बड़ी १०० रचनाएँ उपलब्ध हैं। मिणाह चरिउ, धूर्ताख्यान, ललित विस्तरा, सम्बोध प्रकरण, जसहर चरिउ आदि ग्रन्थोंमें अपभ्रंशसे अलग होती हुई तत्कालीन डिंगलका स्वरूप स्पष्ट दिखाई देता है। 'णेमिणाह चरिउ'के प्रकृति वर्णनके निम्न उदाहरणसे इस तथ्यका पता चल सकता है भमरा धावहिं कुमुइणिउ डब्भिबि कमल वणेसु, कस्सव कहिं पडिवधु जगे चिरपरिचिय गणेसु, विरह विहुरिय चक्कमिहुणाई मिलि ऊण साणंद, हुम तुट्ठ भमहि पहियण महियले, कोसिय कुलु एक्कु परिदुहिउ रविहि, आरूढे नहयले । (२) हरिषेण-दिगम्बर मतावलम्बी हरिषेण चित्तौड़ के रहनेवाले थे। धक्कड़ इनकी जाति थी। पिताका नाम गोवर्धन और माताका नाम धनवती था।४ विक्रम सं० १०४४ में इन्होंने 'धम्म परिक्खा' ग्रन्थकी रचना की। इस ग्रन्थमें ११ सन्धियोंमें १०० कथाओंका वर्णन किया गया है। जिनमें २३८ कडवक हैं। राजस्थानमें यह ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध रहा है। इसकी अनेक हस्तलिखित प्रतियां है। 'धम्म परिक्खा'की रचनाका प्रयोजन व उपादेयता बतलाते हुए कवि कहता है कि मणुए-जम्मि बुद्धिए किं किज्जइ । मणहरजाइ कव्वु ण रहज्जइ ॥ तं करत अवियाणिय आरिस । होसु लहहिं भड़ रड़ि गय पोरिसा ॥ अभी तक इस ग्रन्थका प्रकाशन नहीं हुआ है । विस्तृत जानकारीके लिए 'वीरवाणी'का राजस्थान जैन साहित्य सेवी विशेषांक द्रष्टव्य है। (३) जिनवल्लभसूरि-बारहवीं शताब्दीके पूर्वार्द्ध में अर्थात् वि० सं० ११३८के पश्चात् जिनवल्लभ १. श्री रामवल्लभ सोमानी-वीरभूमि चित्तौड़, पृष्ठ ११४ । २. श्री अगरचन्द नाहटा-राजस्थानी साहित्यकी गौरवपूर्ण परम्परा, पृष्ठ २६ । ३. श्री राहुल सांकृत्यायन-हिन्दी काव्य धारा, पृष्ठ ३८४ व ३८६ । ४. श्री रामवल्लभ सोमानी-वीरभूमि चित्तौड़, पृष्ठ १२२ । ५. वही, पृ० १२२। ६. डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थानी जैन सन्तोंकी साहित्य साधना, मुनि हजारोमल स्मृति ग्रन्थमें प्रकाशित लेख, पृ० ७६६ । ७. श्री रामवल्लभ सोमानी-वीरभूमि चित्तौड़, पृ० १२२ । ८. वही, पृ० १२२ । ९. श्री रामवल्लभ सोमानी द्वारा लिखित 'हरिषेण' शीर्षक लेख, 'वीरवाणी' राजस्थान जैन साहित्य सेवी विशेषांक, पु० ५२-५५ । २३० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16