Book Title: Mevad praesh ke Prachin Dingal Kavi
Author(s): Dev Kothari
Publisher: Z_Agarchand_Nahta_Abhinandan_Granth_Part_2_012043.pdf

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Page 8
________________ गीतोंके अलावा नाडोलके सूजा बालेछा (सामंत सिंह चौहानका पुत्र)के शौर्यकी प्रशंसा ६१ छप्पयका एक लघुकाव्य भी इनका मिलता है। इसी प्रकार सीरोहीके राव रायसिंह (वि० सं० १५९०-१६००) के सम्बन्ध में इनके रचे गये फटकर गीत मिलते हैं । सुकविराय-ये संभवतः महाराणा सांगा, विक्रमादित्य और उदयसिंह के समकालीन कवि थे । इनके अबतक ३१ छप्पय प्रकाशमें आये हैं। जिनमें किया गया वर्णन उपरोक्त तीनों महाराणाओंका समसामयिक लगता है । भाषापर इनके अधिकारको देखते हुए अनुसंधान करनेपर और भी इनकी रचनाएँ उपलब्ध हो सकती हैं। (२५) महाराणा प्रतापसिंह-वीर शिरोमणि माहराणा प्रताप (वि०सं० १६२८-१६५३) डिंगलमें कविता करते थे।४ बीकानेरके पृथ्वीराज राठौड़ तथा इनके बीच डिंगलके दोहोंमें जो पत्र व्यवहार हुआ था, वह प्रसिद्ध है। इसके अलावा प्रतापने अपने प्रिय घोड़े चेटककी स्मृतिमें १०० छप्पयोंका एक शोकगीत (Elegy) भी बनाया था। इसकी हस्तलिखित प्रति सोन्याणा (जिला-उदयपुर) निवासी तथा 'प्रताप चरित्र' महाकाव्यके रचयिता केसरीसिंहजी बारहठने राजनगर कस्बेके किसी मालीके पास देखी थी। (२६) गोरधन बोगसा-ये महाराणा प्रतापके समकालीन और डींगरोलवालोंके पुरखे थे ।' इनका रचनाकाल वि० सं० १६३३के आसपास माना जाता है।९ हल्दीघाटीके युद्ध (वि० सं० १६३३)में ये प्रतापके साथ लड़े थे । १० युद्धका आँखों देखा वर्णन इन्होंने फुटकर गीतोंमें किया है। गीत वीररससे परिपूर्ण हैं ।११ (२७) सूरायच टापरिया-टापरिया शाखाके चारण१२ सूरायच भी प्रतापके समकालीन थे। दिल्लीमें पृथ्वीराज राठौड़से इनकी एक बार भेंट हुई थी। पृथ्वीराजने इनकी खूब आवभगत की और बादशाह अकबरसे भी मिलाया । अकबर इनकी कवित्व शक्तिसे बहुत प्रभावित हुआ। सूरायच वीरताका उपासक और राष्ट्रभक्त कवि था। इसके दोहों व सोरठोंकी भाषा ओजपूर्ण व शब्द चयन विषयानुकूल है।४ १. वही, पृ० ५८से ९४ । २. (i) रामनारायण दूगड़ द्वारा सम्पादित मुहणोत नैणसीकी ख्यात, भाग १ पु० १४३ । (ii) डॉ. होरालाल माहेश्वरी-राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ० ३५३ । ३. प्राचीन राजस्थानी गीत, भाग ८, पृ० १से २५ ।। ४. डॉ० महेन्द्र भानावत द्वारा सम्पादित ब्रजराज काव्य माधुरी, डॉ० मोतीलाल मेनारियाकी भूमिका पृ०-७। ५. ओझा-राजपूतानेका इतिहास (उदयपुर राज्यका इतिहास) दूसरी जिल्द, पृ० ७६३-६५ । ६. डॉ० भानावत द्वारा सम्पादित ब्रजराज काव्य माधुरी, डॉ० मोतीलाल मेनारियाकी भूमिका, पृ० ७ । ७. डॉ० हीरालाल माहेश्वरी-राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ० १३८ । ८. प्राचीन राजस्थानी गीत (साहित्य संस्थान प्रकाशन) भाग ३, पृ० ४३ । ९. सीताराम लालस कृत राजस्थानी सबदकोसकी भूमिका, पृ० १३२ । १०. वही, पृ० १३२ । ११. वही, पृ० १३२। १२. वही, पृ० १३२ । १३. डॉ० हीरालाल माहेश्वरी-राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ० १३८ । १४. सीताराम लालसकुत राजस्थानी सबदकोसकी भूमिका, पृ० १३२ । २३६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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