Book Title: Mevad praesh ke Prachin Dingal Kavi
Author(s): Dev Kothari
Publisher: Z_Agarchand_Nahta_Abhinandan_Granth_Part_2_012043.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ समाप्त की। 'धुलेबा ऋषभदेव स्तवन' (वि० सं० १७१०) तथा ऋषभदेव स्तवन (वि० सं० १७३१) नामक दो रचनाएँ जैनियों के प्रसिद्ध तीर्थ ऋषभदेव या केसरियाजी (जिला-उदयपुर)से सम्बन्धित हैं। डॉ ब्रजमोहन जाबलियाके संग्रहमें चैत्र पूर्णिमा छन्द, शनिचर छन्द और 'करेड़ा पार्श्वनाथ स्तवन' नामक तीन रचनाएं और उपलब्ध होती है। कविका स्वर्गवास वि० सं० १७५१के आसपास माना जाता (३६) राव जोगीदास-ये महाराणा जगतसिंह (वि० सं० १६८४-१७०९)के समकालीन गाँव कुंवारियाके रहनेवाले थे। इनके फुटकर गीत मिलते हैं। 'दाखे इम राण जगो देसोतां, कैलपुरो जाणियां कल' नामक पंक्ति वाले गीतमें इन्होंने महाराणा जगतसिंहके समान-उदार व दानी होनेके लिये अन्य राजाओंको उपदेश दिया है। (३७) धर्मसिंह-जैन मतावलम्बी मुनि धर्मसिंहकी एक रचना "शिवजी आचार्य रास' प्राप्त हुई है। इसका रचनाकाल वि० सं० १६९७ और रचना स्थान उदयपुर है। इस समय महाराणा जगतसिंह शासन कर रहे थे। इस रासमें श्वेताम्बर अमूर्ति पूजक आचार्य शिवजीका वर्णन है। लोंकागच्छीय साधुओंमें इस कृतिका ऐतिहासिक महत्त्व है।२।। (३८) भुवनकीर्ति-ये खरतगच्छीय जिनसूरिके आज्ञानुवर्ती थे। इन्होंने वि० सं० १७०६में उदयपुर नगरमें 'अंजना सुदरी रास'की रचना बीकानेरके मंत्री श्री कर्मचन्दके वंशज भागचन्दके लिये की। उन दिनों मेवाड़ में जगतसिंहका राज्य था। इनकी 'गजसुकमाल चउपई' तथा 'जम्बूस्वामी रास' नामक रचनाएं भी मिलती है। (३९) महाराणा राजसिंह-महाराणा जगतसिंहके उत्तराधिकारी महाराणा राजसिंह (वि० सं०१७०९-१७३७) स्वयं कवि और कवियोंके आश्रयदाताके रूपमें प्रसिद्ध हैं। इनके शासन कालमें संस्कृत, डिंगल व पिंगल ग्रन्थ तथा अनेक फुटकर गीत लिखे गये। राजविलास, राजप्रकास, संगत रासो आदि इनके राज्य कालके प्रमुख डिंगल काव्य ग्रन्थ हैं । डॉ० मोतीलाल मेनारियाने इनका बनाया हुआ 'कहाँ राम कहाँ लखण, नाम रहिया रामायण' नामक छप्पय ब्रजराज काव्य माधुरीकी भूमिकामें उद्धृत किया है। (४०) किशोरदास-ये महाराणा राजसिंहके आश्रित गोगुन्दा जाने वाले मार्गपर स्थित चीकलवास गांवके रहने वाले सिसोदिया शाखाके दसौंदी राव थे।५ इनके पिताका नाम दासोजी था। दासोजीके दो पुत्र श्यामलजी और किशोरदास थे। किशोरदासके कोई संतान नहीं थी। श्यामलजीके वंशधर अब भी चीकलवासमें रहते हैं। किशोरदासका लिखा 'राजप्रकास' १३२ छन्दोंका उत्कृष्ट ऐतिहासिक डिंगल काव्य है। इसमें महाराणा राजसिंहके राज्यारोहणके उपरांत वि०सं० १७१४में 'टीका-दौड़ की रस्म पूरी करने के लिये महाराणा द्वारा मालपुराकी लूट तथा उनके गुण गानका वर्णन है । १. प्राचीन राजस्थानी गीत, भाग-३ (साहित्य संस्थान प्रकाशन) पृ० ५२ । २. शान्तिलाल भारद्वाज-मेवाड़में रचित जैन साहित्य, हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, पृ० ८९६ । ३. शान्तिलाल भारद्वाज-मेवाड़में रचित जैन साहित्य, मुनि हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, १०८९७ । ४. ब्रजराज काव्य माधुरी (संपादक-महेन्द्र भानावत) पृ.० ८। ५. वरदा (त्रैमासिक) वर्ष ५ अंक ३में प्रकाशित श्री बिहारीलाल व्यास 'मनोज'का लेख-किशोरदासका परिचय ६. डॉ. मोतीलाल मेनारिया, राजस्थानी भाषा और साहित्य, प.० २१२ । ७. वरदा (त्रैमासिक) वर्ष ५ अंक २ पृ० १८-२६ श्री बिहारीलाल व्यास 'मनोज'का लेख ऐतिहासिक काव्य-राज प्रकास भाषा और साहित्य : २३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16