Book Title: Mevad praesh ke Prachin Dingal Kavi
Author(s): Dev Kothari
Publisher: Z_Agarchand_Nahta_Abhinandan_Granth_Part_2_012043.pdf

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Page 5
________________ जद घर पर जोवती दीठ नागोर धरती। गायत्री संग्रहण देख मन मांहि डरती।' (११) खेंगार मेहडू-महाराणा कुम्भा के समकालीन मेहडू शाखाके चारण कवि खेंगारके कुछ गीत साहित्य संस्थान, उदयपुरके संग्रहालयमें विद्यमान हैं। संभवतः ये कुंभाके आश्रित थे। कुम्भाकी अजेयता एवं वीरताके वर्णनसे युक्त इनके फुटकर गीत मिलते हैं । (१२) टोडरमल छांधड़ा-महाराणा रायमल (वि० सं० १५३०-१५६६) के बड़े पुत्र कुँवर पृथ्वीराज 'डड़ना' द्वारा टोड़ाके लल्ला खाँ पठानको मारनेसे सम्बन्धित इनका एक गीत बड़ा प्रसिद्ध है। टोडरमल महाराणा रायमलके समकालीन थे। इनके गीतोंमें भावोंका अंकन बड़ा सुन्दर हुआ है। (१३) राजशील-ये खरतर गच्छीय साध हर्षके शिष्य थे। इन्होंने वि० सं० १५६३ में मलके शासनकालमें 'विक्रम-खापर चरित चौपई की चित्तौड़में रचना की। यह लोक कथात्मक काव्य विक्रम और खापरिया चोरकी प्रसिद्ध कथापर आधारित है। इनकी तीन रचनाएँ और भी उपलब्ध होती हैं। (१४) जमणाजी बारहठ-जमणाजीको राष्ट्रीय कविके रूपमें याद किया जाता है। ये महाराणा संग्रामसिंहके समकालीन थे। बाबरके साथ हुए युद्ध में महाराणा सांगाको मूर्छा आनेपर राजपूत सरदार उन्हें बसवा ले आये और जब महाराणाकी मूर्छा खुली तब जमणाजीने 'सतबार जरासंघ आगल श्री रंग' नामक प्रथम पंक्ति वाला प्रसिद्ध गीत सुनाकर शत्रुके विरुद्ध पुनः तलवार उठाने के लिए महाराणाको प्रेरित किया था। इनके और भी फुटकर गीत मिलते हैं। (१५) गजेन्द्र प्रमोद-ये तपागच्छीय हेमविमलसूरिकी शिष्य परम्परामें हुए हैं। महाराणा सांगाके समकालीन थे। चित्तौड़ गढ़ चातुर्मास कालमें तत्कालीन डिंगल भाषामें सिखी हई 'चित्तौड़ चेत्य परिपाटी' नामक कृति मिलती है। (१६) केसरिया चारण हरिदास-इनको कवित्व शक्ति और स्वामी भक्तिसे प्रभावित होकर महाराणा सांगाने चित्तौड़का राज्य ही दान कर दिया था। इसपर केसरिया चारण हरिदासने 'मोज समंद मालवत महाबल' तथा 'धन सांगा हात हमीर कलोधर' नामक प्रथम पंक्ति वाले दो गीत बनाकर महाराणा सांगाका यश ही चिरस्थायी बना दिया। इनके और भी फुटकर गीत मिलते हैं। (१७) महपेरा देवल-इनके पूर्वज मारवाड़के धधवाड़ा ग्रामके रहने वाले थे। महपेरा धधवाड़ा छोड़कर चित्तौड़ के महाराणा संग्रामसिंह (सांगा) के पास चला आया। महाराणा इनकी काव्य प्रतिभासे १. वही, पृ० २२२ । २. प्राचीन राजस्थानी गीत, भाग ३, साहित्य संस्थान-उदयपुर प्रकाशन, पृ० २१ । ३. वही, पृ० २७। ४. डॉ० हीरालाल माहेश्वरी-राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ० २५७ । शान्तिलाल भारद्वाज-मेवाड़में रचित जैन साहित्य, मुनि हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, पृ० ८९५ । ६. डॉ० मनोहर शर्मा-राजस्थानी साहित्यकी आवाज, शोध पत्रिका, भाग ३, अंक २, पृ० ८। ७. डॉ. हीरालाल माहेश्वरी-राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ० १३७ । ८. मलसीसर ठाकुर भूरसिंह कृत महाराणा यश प्रकाश, पृ०७०-७१ । ९. मलसीसर ठाकुर भूरसिंह कृत महाराणा यश प्रकाश, पृ० ५८-५९ । भाषा और साहित्य : २३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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