Book Title: Mevad ke Shasak evam Jain Dharm
Author(s): Jaswantlal Mehta
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 4
________________ ३. कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्य : षष्ठ खण्ड अल्लट ने चित्तौड़ किले पर महावीर स्वामी का मन्दिर बनवाया', राजा अल्लट ने आघाटपुर (आयड़) में जिनालय निर्माण कराकर श्री यशोभद्रसूरि द्वारा श्री पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई। रावल अल्लट के समय में श्वेताम्बरों को राज्याश्रय मिला, अल्लट के मन्त्रियों में कई जैन थे जिन्होंने कई मन्दिर बनवाये। अल्लट की राणी हरियादेवी को रेवती दोष था जिसे बलभद्र सूरि ने दूर किया ।२ अल्लट ने सारे राज्य में विशिष्ट दिन जीवहिंसा एवं रात्रिभोजन निषेध कर दिया। राजा अल्लट के बाद वैरिसिंह के समय आयड़ में जैनधर्म के बड़े-बड़े समारोह हुए एवं ५०० प्रमुख जैनाचार्यों की एक महत्त्वपूर्ण संगति आयोजित हुई। राजा जैसिंह एवं तपागच्छ राजा जैत्रसिंह (वि०सं० १२७० से १३०६) के राज्यकाल में आघाटपुर (आयड़) में प्रख्यात जैनाचार्य श्री जगच्चन्द्र सूरि द्वारा १२ वर्षों तक कठोर आयंबिल तपस्या कर कई भट्टारक को जितने से राजा जैत्रसिंह प्रभावित हुए एवं आचार्य श्री जगच्चन्द्र सूरि को विक्रम सं० १२८५ में तपाविरुद दिया जिससे तपागच्छ चला। चित्तौड़ की राज्यसभा में इन्हीं राजा ने जगच्चन्द्र सूरि को 'हिरा' का विरुद दिया, जिससे इनका राम 'हिरला जगच्चन्द्र सुरि प्रख्यात हुआ। राजा कर्णसिंह एवं ओसवाल गोत्रोप्ति विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में मेवाड़ के राजा कर्णसिंह के पुत्र माहप, राहप, श्रवण, सखण हुए जिनसे राणा शाखा निकली। इस समय इस राज्य परिवार से ओसवाल वंश की दो गोत्रों का प्रादुर्भाव हुआ। शिशोदिया सरूपरिया गोत्र मेवाड़ के राजा रावल कर्णसिंह के पुत्र श्रवणजी ने विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में यति श्री यशोभद्रसूरि (शान्तिसूरि) से जैन धर्म एवं श्रावक के बारह व्रत अंगीकार किये तब ही से इनके वंशज जैन मतानुयायी हुए और शिशोदिया गोत्र के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस गोत्र की दो शाखाएं बाद में हुई। एक बेंगू और दूसरी उदयपुर में बस गई । इसी गोत्र में आगे जाकर डूंगरसिंह नामी व्यक्ति हुए जो राणा लाखा के कोठार के काम पर नियुक्त थे, इनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराणा ने सरोपाव एवं सूरपुर गाँव जागीर में दिया, तब से शिशोदिया गोत्र की यह शाखा सूरपुर नाम पर सरूपरिया नाम से विख्यात हुई । डूंगरसिंह ने इन्दौर स्टेट में रामपुरा के पास श्री आदिश्वर का मन्दिर बनवाया। इसी खानदान में दयालदास के नाम के प्रसिद्ध व्यक्ति हुए जिनको राणा राजसिंह ने प्रधानमन्त्री बनाया जिनके द्वारा राजसमुद्र के पास वाली पहाड़ी पर श्री आदिनाथजी का भव्य मन्दिर बनवाया गया जो दयालशाह के देवरे के नाम से प्रसिद्ध है। शिशोदिया मेहता गोत्र मेवाड़ के रावल कर्णसिंह के सबसे छोटे पुत्र सखण ने जैनधर्म अंगीकार किया । सखण के पुत्र सरीपत को राणा राहप ने सात गांव जागीर में दे मेहता पदवी दी, तबसे इनके वंश वाले मेहता (शिशोदिया मेहता) कहलाते हैं। इनकी तीसरी पीढ़ी में हरिसिंह एवं चतुर्भुजजी नामांकित व्यक्ति हुए, जिनको पाँच गाँव के पट्टे मिले, जिनको इन्होंने १. जैन परम्परा नो इतिहास, त्रिपुटि महाराज, पृ०४६२. २. वीरभूमि चित्तौड़, श्री रामवल्लभ सोमानी, पृ० १५७. ३. जैन परम्परा नो इतिहास, त्रिपुटि महाराज, पृ० ४६३. ४. वही. ५. ओसवाल जाति का इतिहास, श्री सुखसम्पतराज, पृ० ३९३. ६. भोसवाल जाति का इतिहास, सुखसम्पतराज भण्डारी, पृ० ३६३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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