Book Title: Merutungasurina Prabandh Chintamani ma Varnit Ketlik Dhyanpatra Babato Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ 112 अनुसंधान-२४ वीतराग छे; तेमनो कोई चमत्कार संसारमा न संभवे. हा, तेमना सेवक एवा संसारी देवोनो प्रभाव जरूर जोवा मळे. चमत्कारप्रेमी वीतराग-भक्तो माटे मनन योग्य जवाब छे. (४) सिद्धराज जयसिंहे मालवा पर जीत प्राप्त कर्या पछी यशोवर्मा राजाने ते पाटण लावेलो. तेनुं आतिथ्य करतां करतां ते तेने सहस्रलिंग सरोवर, त्रिपुरुष प्रासाद इत्यादि धर्मस्थानो जोवा लई गयो अने दर वर्षे पोते ते बधांना निर्वाहार्थे क्रोड रूपियानो सद्व्यय करतो होवार्नु जणावीने पूछ्यु के मारी आ प्रवृत्ति बराबर गणाय के नहि ? जवाबमां यशोवर्माए कह्यु : हुं महान मालवदेशनो धणी, छतां तमाराथी पराजय केम पाम्यो ? तेनुं एक ज कारण छे - देवना धननुं भक्षण. अमारा वडवाओए भगवान महाकालेश्वरने माटे जे देवद्रव्य समर्पलुं छे, तेनुं अमे लोकोए सतत भक्षण कर्या कर्युः तेना कारणे अमे अमारो पराजय नोतर्यो छे. माटे हुं तमने भलामण करुं छु के ज्यां सुधी तमारी गादी पर आवनारा राजाओ आ (एक क्रोड) देवद्रव्य देवखाते अर्पण करी देवानी प्रणालिका जाळवी राखशे त्यां सुधी वांधो नथी; पण तेनो लोप थशे के भक्षण करशे, तो विपत्तिओ तमारां मूळ उखेडी नाखशे. (पृ. ६१) देवद्रव्य-रक्षण-भक्षणना विषयमां के मार्मिक निरीक्षण ! (५) रुद्रमहालयनी प्रतिष्ठा पछी तेना पर ध्वजारोपण थयुं त्यारे सिद्धराजे तमाम जैन मन्दिरो परथी ध्वजा ऊतरावी लीधी. तेणे आदेश को के जेम मालवदेशे महाकालेश्वरना मन्दिर पर ध्वजा फरकती होय त्यारे जैन मन्दिरो ध्वजारहित राखवामां आवे छे, ते प्रमाणे अहीं पण राखवानुं छे. आ पछी ते कोईक प्रसंगवश श्रीनगर महास्थाने (वडनगर) गयो तो त्यां जिनालयो पर पण ध्वजा जोई. तेने न रुच्यु. तेणे ब्राह्मणोने आ विषे पृच्छा करी, तो तेमणे कडं के "महाराज ! स्वयं महादेवे कृतयुगमां आ महास्थाननी स्थापना करी छे. तेमणे जाते ज अहीं ऋषभदेव अने ब्रह्माना प्रासादो निर्मावीने ते पर त्यारे ध्वजारोपण कर्यु हतुं. आ प्रासादोनी ने ध्वजानी परंपरा ४ युग जेटली पुराणी छे. वळी 'नगरपुराण' ना निर्देश प्रमाणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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