Book Title: Meri Jivan Gatha 02
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 5
________________ मेरी जीवन गाथा ने ही अन्तिम रूप दिया था इसलिए यही सोचा गया कि इस कार्यको भी वे ही उत्तम रीति से निभा सकेंगे। पहले तो पण्डित जी ने वर्णी ग्रन्थमाला कार्यालयको यह लिखा कि ग्राजकल हमें बिल्कुल अवकाश नहीं है, गर्मी के दिनोंमें हम यह कार्य कर सकेंगे । किन्तु जब उन्हें यह कार्य शीघ्र ही करनेकी प्रेरणा की गई तो उन्होंने सागर विद्यालयसे प्रतिदिन कुछ समयके लिए अवकाश ले लिया और अपनी एवनम दूसरे ग्रामीको नियुक्त कर दिया । प्रसन्नता है कि उन्होंने उस समयके भीतर बढ़ी लग्नसे इसे संकलित कर दिया। इसके बाद पण्डित जी उक्त सब सामग्री लेकर ईसरी गये और पृज्य वर्णी जीके समक्ष उसका पाठ किया । कुल सामग्री पृज्य वर्णी जीके लिखानका संकलन मात्र तो है ही इसलिए उसमें थोडे बहुत हेर-फेरके सिवा अधिक कुछ भी सशोधन नहीं करना पडा | वही मेरी जीवन गाथाका यह उत्तरार्ध है जिसे श्री गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला वाराणसीकी ओर से प्रकाशित करते हुए हम प्रसन्नताका अनुभव करते हैं । पण्डित जी ने मनोयोग पूर्वक इस कार्यको सम्पन्न किया इसके लिए तो हम उनके आभारी हैं ही। साथ ही उन्होंने रॉची और खरखरी जाकर इस भागकी करीब ८०० प्रतियोंके प्रकाशन खर्च का भार वहन करनेके लिए प्रबन्ध कर दिया इसके लिए हम उनके और भी विशेष आभारी हैं । जिन महानुभावने प्रतियॉ लेना स्वीकार किया उनकी नामावलि इस प्रकार है २ १. श्रीमान् लाला फीरोनीलाल जी सा० दिल्ली २. रायबहादुर सेठ हर्षचन्द्र जी सा० राँची ३. दानवीर स्वर्गीय सेठ चाँदमल जी पॉड्या राँची वालोंकी धर्मपत्नी गुलाबीदेवी जी ४. श्रीमान् बाबू शिखरचन्द जी सा० खरखरी ५. श्रीमान् सेठ जगन्नाथ जी पॉड्या कोडरमा ६. श्रीमान् सेठ विमलप्रसाद जी खरखरी / ५०० प्रति २००१ २५० प्रति २५० १०० ޅ १०० १

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