Book Title: Medpatdesh Tirthmala Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ September-2006 43 २३. २१. पद्य २१ में तारण (तारङ्गा) में कुमारपाल द्वारा निर्मित अजितनाथ भगवान के मन्दिर में श्री धर्मसूरि द्वारा संस्थापित जिनेश्वरों को वन्दन करता है । इसी प्रकार आरास (आरासण-कुम्भारिया), पोसीन (पोसीना), देवेरिका (दिवेर), चैत्र (?) चङ्गापुर (चाङ्ग) आदि में विराजमान जिनेन्द्रों को भी नमस्कार करता है । २२. यह मेदपाट देश जो कि चारों तरफ पर्वतों से आच्छादित है, उसके मध्य भाग में गाव-गाव में विशाल-विशाल अनेक तीर्थंकरों के देव मन्दिर हैं । जो कि ध्वजा पताकाओं और कलशों से शोभित है । इनमें से कई मन्दिरों को मैंने देखा है और कई मन्दिरों को मैं नहीं देख पाया हूँ। उन सब जिनेश्वरों को सम्यक्त्व की वृद्धि के लिए मैं नमस्कार करता हूँ। देश-देश में, नगर-नगर में और ग्राम-ग्राम में जो भी अवल जिनमन्दिर हैं, जिनके मैंने दर्शन किए हैं या नहीं किए हैं उन सब छोटे-बड़े मन्दिरों को मैं नित्य ही वन्दन करता हूँ। साथ ही देव और मनुष्यों द्वारा वन्दित तीन लोक में स्थित शाश्वत या अशाश्वत समस्त तीर्थङ्करों को मैं नमस्कार करता हूँ। २४. इस प्रकार राजगच्छ में उदयगिरि पर सूर्य के समान श्रीधर्मघोषसरि की वंशपरम्परा में हरिकलश यति ने भक्तिपूर्वक तीर्थयात्रा करके अपने नित्यस्मरण के लिए और पुण्य की वृद्धि के लिए प्रमुदित हृदय से तीर्थमाला द्वारा स्तवना की है। इसमें कवि ने जिन-जिन स्थानों का नामोल्लेख किया है उनमें से कतिपय स्थानों के जो आज नाम हैं वे मैंने कोष्ठक में दिए हैं। अन्य स्थलों के नामों के लिए शोध-विद्वानों से यह अपेक्षा है कि वे वर्तमान नाम लिखने की कृपा करें । कवि हरिकलश यति व्याकरण, काव्य, अलङ्कार शास्त्र, छन्दों का तो विद्वान् था ही साथ ही २०वें-२१वें पद्य को देखते हुए यह कह सकते हैं कि वह राग-रागनियों का भी अच्छा जानकार था । इस स्तव माला में प्रयुक्त छन्दों की तालिका इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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