Book Title: Mantra ki Sadhakta Ek Vishleshan Author(s): Nandlal Jain Publisher: Z_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf View full book textPage 2
________________ -चतीन्द्र सूरिस्मारकग्रन्थ - जैन-साधना एवं आचार णमोकार मन्त्र - जैनों में यह मंत्र महामंत्र कहलाता है इस प्रकार इस मंत्र में ऋणात्मक गुणों को नष्ट कर और इसके जप के प्रभावों से न केवल अनेक पौराणिक कथाएँ सकारात्मक गुणों के विकास का गुण है। यह स्पष्ट है कि इसमें जुड़ा हैं, अपितु वर्तमान में भी इससे अनेक कथानक जुड़ते नकारात्मक गुणों के नाश के प्रतीक तीन पद हैं। इसका अर्थ रहते हैं। यह मंत्र अर्थत: अनादि है, पर शब्दतः प्रथम - द्वितीय यह है कि इन गुणों के नाश में बहुत अधिक ऊर्जा लगती है। शती में उद्घाटित हुआ है। यह खारबेल-युगीन द्विपदी से पंचपदी नकारात्मक गुणों में राग-द्वेष, मोह, तनाव, व्याधियाँ, पाप आदि में विकसित हुआ है। इसके विषय में अनेक पुस्तकें लिखी गई माने जाते हैं। सकारात्मक गुण इनके विपरीत और प्रशस्त होते हैं। ३५ अक्षरों वाला यह मंत्र निम्नांकित है - हैं। इस मंत्र की विशेषता यह है कि यह व्यक्ति या दिव्य शक्ति णमो अरिहंताणं आई बो टू एनलाइटेंड्स आधारित नहीं है, यह पुरुषार्थवादी मंत्र है। यह गुण-विशेषित मंत्र है। फलतः यह सार्वदेशिक एवं त्रैकालिक मंत्र है। यह णमो सिद्धाणं आई बो टू साल्वेटेड्स वैज्ञानिक युग के भी अनुरूप है। इस मंत्र का अंग्रेजी-अनुवाद भी णमो आयरियाणं आई बो टू मिनिस्टर्स यहाँ दिया गया है। इसके आधार पर अंग्रेजी के णमोकार मंत्र की णमो उवज्झायाणं आई बो टू प्रीसेप्टर्स साधकता भी विश्लेषित की गई है। णमो लोए सव्व साहणं आई बोट सेन्टस आफ आल दी वर्ल्ड गायत्री मन्त्र - जैनों के णमोकार मंत्र के समान हिन्दओं में गायत्री मंत्र का प्रचलन है। इस मंत्र को मातामंत्र कहा जाता धवला टीका के अनुसार , इसका निम्न अर्थ है - है। यह भक्तिवादी मंत्र है, जिसमें परमात्मा से सद्बुद्धि देने एवं मैं लोक के सभी बोधि प्राप्त पूज्य पुरुषों को नमस्कार करता हूँ। सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने की प्रार्थना की गई है। मुख्यत: मैं लोक के सभी सिद्धि प्राप्त सर्वज्ञों को नमस्कार करता हूँ। पुनरावृत्ति छोड़कर २४ अक्षरों वाले इस मंत्र में २९ वर्ण हैं, जिनके आधार पर इसकी साधकता विश्लेषित की गई है। यह मैं लोक के सभी धर्माचार्यों को नमस्कार करता हूँ। मंत्र निम्नांकित है - मैं लोक के सभी उपाध्यायों (पाठकों) को नमस्कार करता हूँ। ओम् भुर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। मैं लोक के सभी साधुओं (अध्यात्म-मार्ग के पथिकों) को नमस्कार इसका अर्थ निम्नलिखित हैकरता हूँ। मैं उस परमात्मा (शिव) को अंतरंग में धारण करता हूँ, ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल में पाँच की संख्या । जो भू-लोक भुवनलोक एवं स्वर्गलोक में व्याप्त है, जो सूर्य के का बड़ा महत्त्व था। इसीलिए पंचभूत, पंचप्राण, पंचरंग, पंच समान तेजस्वी एवं श्रेष्ठ है और जो देवतास्वरूप है। वह मेरी बुद्धि आचार, पाँच अणु/महाव्रत, पाँच समिति और पाँच आकृतियाँ को सन्मार्ग में लगाए। स्वीकृत किए गए। इनमें से कुछ को णमोकार मंत्र के विविध पदों से सह-सम्बन्धित किया गया है (सारणी -१): गायत्रीपरिवार ने युगनिर्माण योजना के माध्यम से इस मंत्र को अत्यंत लोकप्रियता प्रदान की है। इसको जपने वालों सारणी -१ : णमोकार मंत्र के पदों के अन्य पंचकों से सह-सम्बन्ध की संख्या ३ करोड़ तक बताई जाती है। इस परिवार का मुख्य क्र. पद रंग भूत प्राण आकृति प्रभाव कार्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार में है, जहाँ मंत्र-जप के प्रभावों का १. णमो अरिहंताणं सफेद जल समान अर्धचन्द्र विनाशक । वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। नई पीढ़ी के लिए यह बहुत २. णमो सिद्धाणं लाल अग्नि उदान त्रिकोण संरक्षक बड़ा आकर्षण है। एक जैन-साधु ने णमोकार मंत्र से सम्बन्धित एक आन्दोलन एवं रतलाम के एक सज्जन ने उसके प्रचार का ३. णमो आयरियाणं पीला पृथ्वी व्यान वर्ग विनाशक काम चालू किया था, पर उसकी सफलता के आँकड़े प्रकाशित ४. णमो उवज्झायाणं नीला वायु प्राण षट्कोण निर्मायक नहीं हए हैं। मंत्र-जप की प्रक्रिया को वैज्ञानिकतः प्रभावी बनाने ५, पमोलएसव्वसाहणं धूमकाला आकाश आन कृत विनाशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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