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मन्त्र की साधकता : एक विश्लेषण
नन्दलाल जैन, जैन केन्द्र, रीवा...
न शास्त्रों में मंत्रविद्या विद्यानुप्रवाद एवं प्राणावाय पूर्वो कुछ प्रमुख मन्त्र का महत्त्वपूर्ण अंग रही है। इसका ७२ कलाओं में भी उल्लेख
भारतीय धर्म-परम्परा में मंत्र-जप एक पुण्यकारी अनुष्ठान है। इस विद्या के बल पर ही भूतकाल में अनेक आचार्यों ने
माना जाता है। यद्यपि इनका विकास मुख्यतः आध्यात्मिक जैन-तंत्र को सुरक्षित, संरक्षित एवं संवर्धित किया है। फलतः
और पारलौकिक उद्देश्य से हुआ होगा, पर इनसे आनुषंगिक यह प्राचीन विद्या है, जो महावीर के युग से पूर्व भी लोकप्रिय रही
फल के रूप में इहलौकिक उद्देश्य और भौतिक सिद्धियाँ भी होगी। शास्त्रों में इसका विवरण.११ दृष्टिकोणों और नौ अनुयोग
प्राप्त होती हैं। फलतः प्रमुख उद्देश्य के अनुरूप मंत्र भी अनेक द्वारों से दिया गया है। इसका लक्ष्य आत्मकल्याण और इहलौकिक
प्रकार के होते हैं। कुछ मंत्र आध्यात्मिक होते हैं, कुछ भौतिक कल्याण दोनों है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रारम्भ में यह विद्या
कामनापरक होते हैं और कुछ तांत्रिक (विष दूर करना आदि) गोपनीय रही होगी। इसमें गुरु का अपूर्व महत्त्व था। ऐतिहासिक
होते हैं। अनेक वर्षों के विशिष्ट सामर्थ्य से भी ये तथ्य प्रकट दृष्टि से इस विद्या के उत्थान-पतन के युग आए, पर ७वीं शती
होते हैं। उदाहरणार्थ - 'म' में सिद्धि और संतान का सामर्थ्य के बाद शक्तिवाद और तंत्रविद्या के विकास के साथ इसको
होता है, 'व' एवं 'ब' में रोगादि अनिष्ट-निवारण की क्षमता होती पुनर्जीवन मिला और अब तो यह विद्या वैज्ञानिक युग में योग -
है और 'न और द' आत्म-शक्ति जागृत करते हैं। इन विशिष्ट ध्यान के एक अंग के रूप में प्रतिष्ठित हो रही है और व्यक्तिगत
उद्देश्य वाले मंत्रों की तुलना में, कुछ मंत्र ऐसे होते हैं, जो सभी तथा सार्वजनिक कल्याण की वाहक बनती जा रही है।
प्रकार के उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। इन्हें हम मूल-मंत्र भी कह मंत्र शब्द के अनेक अर्थ हैं। मूलत: यह मन की प्रवृत्तियों सकते हैं। हम इसी कोटि के केवल चार मंत्रों की यहाँ चर्चा को नियंत्रित करता है, उन्हें बहुदिशी के बदले एक-दिशी बनाता करेंगे। है। यह भौतिक और आध्यात्मिक दोनों उद्देश्यों की पूर्ति में ओम-जैनों के अनुसार, यह सभी मंत्रों का मूल है। यह मनोकामना पूर्ति एवं आत्मानुभूति के लिए अन्तः शक्ति जागरण
पंचपरमेष्ठियों के प्रथम अक्षरों के संयोग से बना है, अत: पूज्य में सहायक होता है। मंत्रों का स्वरूप विशिष्ट अक्षर रचना, विन्यास
पुरुषों और उनके गुणों का स्मरण कराता है। यह दर्शन, ज्ञान एवं विशिष्ट ध्वनि-समूह के रूप में होता है, जिसके बारम्बार
तथा चारित्र के त्रिरत्नों का भी प्रतीक है। इसमें तीन अक्षर हैं 'अ, उच्चारण से ऊर्जा का उद्भव और विकास होता है, जो हमारे उ और माये क्रमशः निर्माण, संरक्षण तथा विनाश की प्रक्रियाओं जीवन को सुख और शक्तिमय बनाती है। वस्तुतः मंत्रों की के प्रतीक हैं। यह मंत्र दिव्य ऊर्जा का प्रतीक है। इसे अन्य साधकता के अनेक आयाम होते हैं - (१) ये हमारे अशुभ एवं परम्पराओं में भी माना गया है। 'आमेन' इसका पश्चिमी रूप ऋणात्मक कर्मों का नाश कर उन्हें सकारात्मक या आध्यात्मिक है। यह (१) तीन लोक, (२) सत-चित्-आनन्द की त्रयी, (३) रूप प्रदान करते हैं, (२) ये हमारे भौतिक एवं आध्यात्मिक पथ सत्व-रज-तम की त्रिगुणी, (४) वेदत्रयी, (५) देवत्रयी एवं त्रिको प्रशस्त करते हैं, (३) ये हमारे व्यक्तित्व को विकसित करते ब्रह्मवाद (सर्वव्यापक) आदि का प्रतीक है। यह अनंत और हैं और हमारे चारों ओर के आभा-मण्डल या लेश्या रूपों को शन्य (वृत्त) का भी प्रतीक है। इसके विशिष्ट वर्णों का उच्चारण प्रशस्तता देते हैं और (४) ये हमारे लिए चिकित्सक का काम । सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है और साध्य सिद्धि में उपयोगी कर हमें स्वस्थ बनाते हैं।
होता है।
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-चतीन्द्र सूरिस्मारकग्रन्थ - जैन-साधना एवं आचार णमोकार मन्त्र - जैनों में यह मंत्र महामंत्र कहलाता है इस प्रकार इस मंत्र में ऋणात्मक गुणों को नष्ट कर और इसके जप के प्रभावों से न केवल अनेक पौराणिक कथाएँ सकारात्मक गुणों के विकास का गुण है। यह स्पष्ट है कि इसमें जुड़ा हैं, अपितु वर्तमान में भी इससे अनेक कथानक जुड़ते नकारात्मक गुणों के नाश के प्रतीक तीन पद हैं। इसका अर्थ रहते हैं। यह मंत्र अर्थत: अनादि है, पर शब्दतः प्रथम - द्वितीय यह है कि इन गुणों के नाश में बहुत अधिक ऊर्जा लगती है। शती में उद्घाटित हुआ है। यह खारबेल-युगीन द्विपदी से पंचपदी नकारात्मक गुणों में राग-द्वेष, मोह, तनाव, व्याधियाँ, पाप आदि में विकसित हुआ है। इसके विषय में अनेक पुस्तकें लिखी गई माने जाते हैं। सकारात्मक गुण इनके विपरीत और प्रशस्त होते हैं। ३५ अक्षरों वाला यह मंत्र निम्नांकित है -
हैं। इस मंत्र की विशेषता यह है कि यह व्यक्ति या दिव्य शक्ति णमो अरिहंताणं आई बो टू एनलाइटेंड्स
आधारित नहीं है, यह पुरुषार्थवादी मंत्र है। यह गुण-विशेषित
मंत्र है। फलतः यह सार्वदेशिक एवं त्रैकालिक मंत्र है। यह णमो सिद्धाणं आई बो टू साल्वेटेड्स
वैज्ञानिक युग के भी अनुरूप है। इस मंत्र का अंग्रेजी-अनुवाद भी णमो आयरियाणं आई बो टू मिनिस्टर्स
यहाँ दिया गया है। इसके आधार पर अंग्रेजी के णमोकार मंत्र की णमो उवज्झायाणं आई बो टू प्रीसेप्टर्स
साधकता भी विश्लेषित की गई है। णमो लोए सव्व साहणं आई बोट सेन्टस आफ आल दी वर्ल्ड गायत्री मन्त्र - जैनों के णमोकार मंत्र के समान हिन्दओं
में गायत्री मंत्र का प्रचलन है। इस मंत्र को मातामंत्र कहा जाता धवला टीका के अनुसार , इसका निम्न अर्थ है -
है। यह भक्तिवादी मंत्र है, जिसमें परमात्मा से सद्बुद्धि देने एवं मैं लोक के सभी बोधि प्राप्त पूज्य पुरुषों को नमस्कार करता हूँ। सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने की प्रार्थना की गई है। मुख्यत: मैं लोक के सभी सिद्धि प्राप्त सर्वज्ञों को नमस्कार करता हूँ।
पुनरावृत्ति छोड़कर २४ अक्षरों वाले इस मंत्र में २९ वर्ण हैं,
जिनके आधार पर इसकी साधकता विश्लेषित की गई है। यह मैं लोक के सभी धर्माचार्यों को नमस्कार करता हूँ।
मंत्र निम्नांकित है - मैं लोक के सभी उपाध्यायों (पाठकों) को नमस्कार करता हूँ।
ओम् भुर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। मैं लोक के सभी साधुओं (अध्यात्म-मार्ग के पथिकों) को नमस्कार
इसका अर्थ निम्नलिखित हैकरता हूँ।
मैं उस परमात्मा (शिव) को अंतरंग में धारण करता हूँ, ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल में पाँच की संख्या ।
जो भू-लोक भुवनलोक एवं स्वर्गलोक में व्याप्त है, जो सूर्य के का बड़ा महत्त्व था। इसीलिए पंचभूत, पंचप्राण, पंचरंग, पंच
समान तेजस्वी एवं श्रेष्ठ है और जो देवतास्वरूप है। वह मेरी बुद्धि आचार, पाँच अणु/महाव्रत, पाँच समिति और पाँच आकृतियाँ
को सन्मार्ग में लगाए। स्वीकृत किए गए। इनमें से कुछ को णमोकार मंत्र के विविध पदों से सह-सम्बन्धित किया गया है (सारणी -१):
गायत्रीपरिवार ने युगनिर्माण योजना के माध्यम से इस
मंत्र को अत्यंत लोकप्रियता प्रदान की है। इसको जपने वालों सारणी -१ : णमोकार मंत्र के पदों के अन्य पंचकों से सह-सम्बन्ध
की संख्या ३ करोड़ तक बताई जाती है। इस परिवार का मुख्य क्र. पद रंग भूत प्राण आकृति प्रभाव कार्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार में है, जहाँ मंत्र-जप के प्रभावों का १. णमो अरिहंताणं सफेद जल समान अर्धचन्द्र विनाशक ।
वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। नई पीढ़ी के लिए यह बहुत २. णमो सिद्धाणं लाल अग्नि उदान त्रिकोण संरक्षक
बड़ा आकर्षण है। एक जैन-साधु ने णमोकार मंत्र से सम्बन्धित
एक आन्दोलन एवं रतलाम के एक सज्जन ने उसके प्रचार का ३. णमो आयरियाणं पीला पृथ्वी व्यान वर्ग विनाशक
काम चालू किया था, पर उसकी सफलता के आँकड़े प्रकाशित ४. णमो उवज्झायाणं नीला वायु प्राण षट्कोण निर्मायक नहीं हए हैं। मंत्र-जप की प्रक्रिया को वैज्ञानिकतः प्रभावी बनाने ५, पमोलएसव्वसाहणं धूमकाला आकाश आन कृत विनाशक
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यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ के लिए उन्होंने किसी प्रयोगशाला की स्थापना की भी बात नहीं की है।
यह गायत्री मंत्र दिव्य शक्ति के अस्तित्व पर आधारित है, जो मनोवैज्ञानिकतः सामान्य जन को प्रभावित करता है। इसके विपर्यास में, णमोकार मंत्र अधिक वैज्ञानिक होने पर भी जैनों के क्षेत्र से आगे नहीं बढ़ पाया है।
- मंत्र ध्वनि-ध्वनि ऊर्जा- (प्राण, मन ) - शरीर विद्युत्-नकारात्मकता नाश-प्रशस्तता।
इनकी उच्चारणशक्ति से आकाश में भी, वीचि - तरंग न्याय से, कम्पन उत्पन्न होते हैं, जहाँ इनका विस्तार एवं सूक्ष्मकरण त्रिशरण मन्त्र जैनों और हिन्दुओं के समान बौद्ध धर्म होता है। इन ऊर्जीकृत कम्पनों का पुंज अपने उद्भव केन्द्र पर अनुयायियों का भी एक मंत्र है, जिसे त्रिशरण- मंत्र कहते हैं
बुद्धं शरणं गच्छामि
धम्मं शरणं गच्छामि संघशरणं गच्छामि
लौटने तक पर्याप्त शक्तिशाली हो जाता है और यही शक्ति मंत्र-साधक की शक्ति कहलाती है । हमारे शरीरतंत्र में इस शक्ति के अवशोषण, संग्रहण एवं संचारण की क्षमता होती है। यह शरीरतंत्र की विद्युत् ऊर्जा को प्रवलित करती है। यह शक्ति मनुष्य में भूकम्प - सा ला देती है। इस शक्ति के अनेक रूप सम्भव हैं। योगिजन अपनी दृष्टि, मंत्रोच्चारण, स्पर्श तथा विचारों के माध्यम से इस शक्ति को दूसरों के हिताहित-सम्पादन में संचारित करते हैं।
बुद्ध-संघ की शरण लेता हूँ।
यह भी व्यक्ति विशेषित भक्तिवादी मंत्र है। बौद्धों की विशिष्ट विपश्यना ध्यान पद्धति भी है, जिसमें इस मंत्र का पारायण होता है। बुद्ध को सामान्यतः यथार्थवादी एवं व्यवहारवादी माना जाता है और उसमें भी पुरुषार्थ को महत्त्व दिया गया है, फिर भी यह व्यक्ति - आधारित है और मनोवैज्ञानिकतः प्रभावी है। यहाँ बुद्ध को दिव्यशक्ति-सम्पन्न मान लिया गया है। इसीलिए बुद्धधर्म भी संसार के अनेक भागों में फैला है और अनुयायियों की दृष्टि से यह विश्व में तीसरा धर्म माना जाता है, जबकि हिन्दू धर्म अब चौथे स्थान पर चला गया है। इस मंत्र में २४ वर्ण हैं, जिनके आधार पर इसकी साधकता विश्लेषित की गई है। मन्त्रों की प्रभावकता की व्याख्या
मैं बुद्ध की शरण लेता हूँ।
मैं 'बुद्ध के उपदेशित' धर्म की शरण लेता हूँ।
मंत्र विशिष्ट ध्वनियों एवं वर्णों के समूह हैं। इनके उच्चारण से ध्वनि-शक्ति उत्पन्न होती है। बारम्बार उच्चारण से इस शक्ति में तीव्रता आती है। यह तीव्रता ही अनेक प्रभाव उत्पन्न करती है। इसलिए मंत्रों को ध्वनि-शक्ति की लीला-स्थली ही कहना चाहिए। यह ध्वनि शरीर-तंत्र के अनेक अवयवों, स्वर - तंत्र एवं मन के कार्यकारी होने पर कण्ठ, तालु आदि में होने वाले विशिष्ट कम्पनों के माध्यम से उत्पन्न होकर अभिव्यक्त होती है। अतएव ध्वनि को कम्पन- ऊर्जा भी कहते हैं। जैन शास्त्रों के अनुसार ध्वनि ऊर्जामय सूक्ष्म पौद्गलिक कण हैं, जो अपने उच्चारण के समय तीव्रगामी मन और प्राण से संयोग कर उनकी ही गति प्राप्त कर और भी शक्ति-सम्पन्न हो जाते हैं और
जैन-साधना एवं आचार.
शरीर-विद्युत उत्पन्न करते हैं। यह धनात्मक होती है और तंत्र में विद्यमान ऋणात्मक तत्त्वों को नष्ट कर प्रशस्तता प्रदान करती
मिले की कम ট{२०
ऊर्जा के कम्पनों के अनेक रूप होते हैं- (१) विद्युत्, (२) प्रकाश और रंग, (३) प्राण, (४) नाड़ी, (५) ध्वनि आदि। इनका सामान्य गुण कम्पन होता है। कुछ कम्पन स्वैच्छिक होते हैं और कुछ उत्पन्न किए जाते हैं (वचन, यंत्रवादन आदि) । कुछ सहज ही होते रहते हैं। इन कम्पनों के विषय में भारतीय विद्याओं के 'नादयोग' तंत्र में 'आहत और अनाहत' के रूप में विवरण मिलता है। इसके अनुसार १० प्रकार (मेघ, घंटा, भ्रमरी, तंत्री आदि) की ध्वनियाँ होती हैं। ये ध्वनि कम्पन अपने विशिष्ट तरंग दैर्ध्य एवं आवृत्तियों से पहचाने जाते हैं। ये कम्पन हमारे कान के माध्यम से मस्तिष्कतंत्र में जाते हैं, वहाँ से सारे शरीर में फैलकर सारे वातावरण में विसरित होते रहते हैं। ये कम्पन हमारी मानसिक एवं विद्युत् ऊर्जा को भी प्रभावित करते हैं। मंत्र के माध्यम से उसे संवर्धित एवं एकदिशी बनाते रहते हैं। इन कम्पनों की ऊर्जा हमारी प्रसुप्त या कर्म - आवृत्त ऊर्जा को उत्तेजित करती है और उसे अभिव्यक्ति करने में सहायक होती है। कम्पन- ऊर्जा का प्रहार जितना ही तीव्र होगा, हमारी आंतरिक ऊर्जा की अभिव्यक्ति भी उतनी ही उन्नतिमुखी होगी।
प्रत्येक वर्ण की ध्वनि विशिष्ट होती है, अतः उसके कम्पन भी विशिष्ट होते हैं। ये कम्पन ही वर्ण की ऊर्जा को निरूपित करते हैं, क्योंकि कम्पन ऊर्जा के समानुपाती होते हैं। यही नहीं,
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- यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ - जैन-साधना एवं आचार - मंत्र-शास्त्रियों ने वर्णो-स्वर (१६), व्यंजन (३३) और अर्द्धस्वरों परिवर्तनों का ज्ञान प्रयोगगम्य है और ध्यान की प्रयोगशालाओं को मातृकाक्षर (अ-क्ष) एवं बीजाक्षर (क-ह) के रूप में विभाजित में अनुभव किया जा सकता है। वैज्ञानिक-युग के पूर्व के शास्त्रों किया है। प्रत्येक मंत्र में इन दोनों के अतिरिक्त पल्लव (लिंग, में इन परिवर्तनों का (स्थिरता, भाव, शुद्ध एवं शांति के प्रभावों नमः, स्वाहा आदि) शब्दों का भी समावेश होता है। इस प्रकार के रूप में) परोक्षत: ही उल्लेख माना जा सकता है। प्रत्येक मंत्र इन तीनों प्रकार के घटकों का विशिष्ट समुच्चय
शास्त्रीय युग में मंत्रों के प्रभावों के प्रति विश्वास एवं होता है। प्रत्येक वर्ण की विशिष्ट, अपरिमित तथा दिव्य शक्ति
आकर्षण उत्पन्न करने के लिए यह आवश्यक था कि उनकी होती है। यह प्रशस्त, अप्रशस्त एवं उदासीन - किसी भी कोटि
समग्र शक्ति या प्रभाविता को उनमें विद्यमान वर्गों की समग्र की हो सकती है। इन वर्ण ध्वनियों की शक्ति ही मंत्र में काम
शक्ति के रूप में माना जाए, फलतः प्रत्येक मंत्र की शक्ति का आती है। इस शक्ति का पूर्ण साक्षात्कार ही मंत्र-साधना का
साधना का निर्धारण उसमें विद्यमान वर्णों की शक्ति के आधार पर किया लक्ष्य होता है। यह ध्वनिशक्ति शरीर, मन, विश्व, ग्रह तथा
गया है। अनुभव के आधार पर प्रत्येक वर्ण की विशिष्ट शक्ति अग्नि से अन्योन्य-सम्बन्धित है। यह शक्ति हमारे सात चक्रों
या सामर्थ्य निर्धारित की गई है। यह संकलित शक्ति ही मंत्र की (मूलाधार से सहस्रार तक) और चैतन्य के विविध स्तरों (चेतन,
साधक-क्षमता एवं उद्देश्य-पूर्ण क्षमता को व्यक्त करती है। अवचेतन और अचेतन) को प्रभावित करती है। मंत्र-सम्बन्धी
फलतः वों के शक्ति-उदघाटन के ज्ञान की प्रक्रिया 'मातृका विज्ञान'
मंत्र के प्रत्येक वर्ण की शक्ति का योग = मंत्र की साधक-क्षमता कहलाती है।
इस लेख में वर्णों की शक्ति के आधार पर मंत्रों की मातृका शब्द वस्तुतः 'मात्रा' (उच्चारण के समय का परिमाण) शब्द से व्युत्पन्न है। यह पाया गया है कि यदि स्वर
साधक क्षमता को विश्लेषित करने का प्रयत्न किया गया है। के उच्चारण में 'अ' समय की मात्रा लगती है, तो 'व्यंजन के गोविन्द शास्त्री, नेमिचन्द्र शास्त्री और सुशील मुनि ने विभिन्न उच्चारण में प्राय: 'अ/२' समय की मात्रा लगती है (स्वरों से वर्गों के सामर्थ्य का परम्परा-प्राप्त संकलन दिया है। उसके आधी)। इनके उच्चारण के समय घटाए-बढ़ाए जा सकते हैं - आधार पर सारणी २,३ व ४ तैयार की गई हैं। इनका तुलनात्मक हृस्वध्वनि, दीर्घध्वनि, प्लुतध्वनि, विस्तारित ध्वनि आदि। विश्लेषण सारणी -६ में दिया गया है। इन सारणियों में जैनों के उच्चारण-समयों से कम्पनों की प्रकृति पर अंतर पड़ता है। इसी णमोकार मंत्र, हिन्दुओं के गायत्री मंत्र और बौद्धों के त्रिशरण मंत्र कारण अनेक धर्मशास्त्र शब्दशक्ति को आदिशक्ति ही कहते हैं। तथा ओम् मंत्र को आधार बनाया गया है। साथ ही, यह विश्लेषण
सभी मंत्रों में ३५ अक्षर मानकर किया गया है, जिससे सार्थक मन्त्र की शक्ति का निर्धारण
तुलना हो सके। इस तुलना से एक रोचक और उत्साहवर्द्धक यह विशिष्ट वर्ण-समूहों से निर्मित मंत्रों की ऊर्जा का गुणात्मक तथ्य प्रकट होता है कि यदि पूर्वोक्त मंत्रों में ३५ अक्षर मान विवरण शास्त्रों में पाया जाता है। इस ऊर्जा के अनेक भौतिक लिए जाएँ, तो सभी की साधक-क्षमता लगभग समान होती है।
और आध्यात्मिक लाभ भी वहाँ बताए गए हैं। इस ऊर्जा को हाँ. ओम नामक प्रणव बीज मंत्र इसका अपवाद होगा, पर परिमाणात्मक रूप देना किंचित् दुरूह कार्य है, फिर भी यह तो उसकी क्षमता, उसकी जप-संख्या बढ़ाकर सहज ही बढ़ाई जा माना ही जा सकता है कि मौन या वाचिक मंत्रोच्चारण के सकती है। समय, ध्यान के समान, हमारे मस्तिष्क की तरंगों की प्रकृति में अंग्रेजी में अनूदित मन्त्र की साधकता का विश्लेषण अंतर पड़ता है। वे बीटा-रूप से एल्फा-रूप में परिणत होने
आजकल विभिन्न धर्मों के विश्वीयकरण की चर्चा जोरों लगती हैं, जो मानसिक स्थिरता की प्रतीक हैं। मस्तिष्क के तरंग रूप में परिवर्तन के साथ उसके चारों ओर विद्यमान आभामंडल।
पर है। इसके लिए संस्कृत-प्राकृत भाषा के मंत्रों का अन्य के रंग में भी परिवर्तन होता है, जो काले से सफेद की ओर बढ़ता
भाषान्तरण आवश्यक है। इस हेतु अंग्रेजी सर्वाधिक लोकप्रियता
प्राप्त है। अनेक सत्रों से णमोकार मंत्र का अंग्रेजी-अनुवाद हुआ हुआ प्रशस्त मनोवृत्ति की ओर सूचना देता है। इन दोनों ही andranardnodwebmirrordwordroidroidarbirdwoodword[२१Hiroriridwarararidabraiduirindridward-orditoided
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- यतीन्द्र सूरिस्मारकग्रन्थ - जैन-साधना एवं आचार है, पर वह मंत्र में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दों के समरूप शब्दों सारणी - ५ : णमोकार मंत्र के अंग्रेजी-अनुवाद की की विविधता के कारण अंग्रेजी-मंत्र नहीं माना जा सकता। साधकता का विवरण - लेखक का विचार है कि जब मूल-मंत्र एक है, तो उसका आ धन,आशा आ धन,आशा आ धन,आश आ धन,आशा . भाषान्तरण भी एक ही शब्दावली में होना चाहिए। लेखक ने
. इ मुटुकारीसाधक इ मृदुकारीसाधक इ मुटुकारीसाधक इ मुटुकारीसाधक अंग्रेजी की सरल शब्दावली का उपयोग कर इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयत्न किया है कि अंग्रेजी में मंत्र की साधक-क्षमता ब विघ्न-विनाश ब विघ्न-विनाश ब विन-विनाश ब विघ्न विनाश कैसी होगी? सारणी-५ से पता चलता है कि अंग्रेजी में अनूदित ओ अनुदात्त ओ अनुदात्त ओ अनुदात्त ओ अनुदात्त मंत्र का सामर्थ्य संस्कृत-प्राकृत मंत्रों की तुलना में प्रायः ६० ट अति ट अशति ट अतिट अति प्रतिशत ही आता है। इसका कारण सम्भवतः यह है कि अंग्रेजी
ऊ विघटन ऊ विघटन ऊ विघटन ऊ विघटन में 'ट' (टी), ओ आदि वर्गों के कारण तथा णकार के समान प्रशस्त वर्णों के अभाव के कारण उसमें व्यक्त मंत्रों की वर्णित ए निश्चल स सर्वसाधक म सिद्धि,संतान प सहयोगी साधक-क्षमता में कमी होती है। इस अनुवाद में कुछ शब्दों को न् आत्मसिद्धि आ धन, आशा इ मुटुकारीसाधक र शक्ति, वृद्ध बदलकर (जैसे 'आई बो' के बदले 'बोइंग्स') साधक क्षमता में ल लक्ष्मी कल्याण ल लक्ष्मी, कल्याण न आत्मसिद्धि ई अल्पशक्ति कुछ सुधार सम्भव है, पर इच्छित सामर्थ्य कठिन ही प्रतीत होता .
आ धन,आशा व विघ्न विनाश इ मृदुकारीसाधक स सर्वसाधक है। फलतः यह कमी मंत्र-जप की संख्या को बढ़ाकर ही पूरी की जा सकती है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस मंत्र के समान ही इ मुटुकारीसाधक ए निश्चलस निश्चल ए सर्वसाधक अन्य मंत्रों के अंग्रेजी-अनुवाद की साधक-क्षमता भी इसीट अति ट अति ट अशांति प सहयोगी प्रकार की होगी।
ए निश्चल ए निश्चल र शक्ति, वृद्धि र शक्ति, वृद्धि सारणी -२ : णमोकार मंत्र की साधकता का विवरण न् आत्म सिद्धि ड शति-विरोधी स सर्वसाधक स सर्वसाधक ण शति, शसि ण शांति,शक्ति ण शति,शक्ति ण शति, शक्ति उ शति विरोधी स सर्वसाधक म सिद्धि, संतान म सिद्धि, संतान म सिद्धि, संतान म सिद्धि,संतान सारणी - २ (अविरत) सारणी - ५ (अविरत) ओ अनुदात्त ओ अनुदात्त ओ अनुदात्त ओ अनुदात्त ण शांति, शक्ति
आ धन, आशा अ सर्वशक्ति स सर्वसाधक आ धन,आशा उ अद्भुत शक्ति म सिद्धि. संतान
मृदुकारी साधक र शक्ति, वृद्ध इ मृदुकारीसाधक य शांत, सिद्धि व विपत्ति-निवारक
ओ अनुदात्त
विघ्न-विनाश इ मूदुकारीसाधक द् आत्मशक्ति र शक्ति, वृद्ध ज् रोगनाश,सिद्धि
ल लक्ष्मी, कल्याण
अनुदात्त ह मंगलसाधक ध सहयेगी इ मूदुकारीसाधक झ शक्ति-संचार
ओ अनुदात्त
अशांति न् आत्म शक्ति आ धन, आशा य शक्ति, सिद्धि य शांत, सिद्धि
ए निश्चल
विघटन त सर्वसद्धि ण शति, शक्ति आ धन, आशा आ धन,आशा
स सर्वसाधक
धन, आशा आ धन, आशा म् सिद्धि, संतान ण शति, शक्ति ण शति, शक्ति व् विपत्ति-निवारक
ल लक्ष्मी, कल्याण ण शांत,शति म् सिद्धि, संतान म् सिद्धि,संतान व विपत्ति-निवारक
विपत्ति-निवारक म् सिद्धि,संतान
स सर्वसाधक
शक्ति, वृद्धि आ धन, आशा
ल लक्ष्मी, कल्याण
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RPFNE
यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ - जैन-साधना एवं आचार . ह मंगल-साधक
शांतिविरोधी र शक्ति, वृद्धि
प् सहयोगी ऊ विघटन
सर्वसाधक
व विपत्तिनिवारक र शक्ति, वृद्धि ण शांति, शक्ति
निश्चल र शक्ति वृद्धि
च खण्डशक्ति म् सिद्धि, संतान
आत्मसिद्धि ए निश्चल
ओ अनुदात्त अशांति
ण शांति, शक्ति द आत्मशक्ति सर्वसाधक
य शांति, सिद्धि य शांति, सिद्धि सारणी - ३ : गायत्रीमंत्र की साधकता का विवरण म् सिद्धि, संतान आ धन, आशा ओ अनुदात्त ग साधक
भ सात्विक विरोधी त् सर्व सिद्धि म् सिद्धि, संतान ओ अनुदात्त
र शक्ति, वृद्धि
-- भ् सात्विक विरोधी द आत्मशक्ति ऊ विघटन ए निश्चल
सारणी - 4:त्रिशरण मंत्र की साधकता का विवरण र शक्ति, वृद्धि व विपत्तिनिवारक
ब विपत्तिनिवारक ध सहयोगी स सर्वसाधक भ सात्विक विरोधी स् सर्वसाधक
उ अद्भुत शक्ति म् सिद्धि, संतान म् सिद्धि, संतान उ अद्भुत शक्ति य शांति, सिद्धि
द् आत्मशक्ति म सिद्धि, संतान घ स्तम्भन व विपत्तिनिवारक ध मंगलसाधक
ध सहयोगी म् सिद्धि, संतान म् सिद्धि, संतान ह मंगलसाधक ई अल्प शक्ति
म् सिद्धि संतान स सर्वसाधक म सिद्धि, संतान
श निरर्थक श निरर्थक श निरर्थक व विपत्तिनिवारक ह मंगलसाधक
र शक्ति, वृद्धि र शक्ति, वृद्धि र शक्ति, वृद्धि ह मंगलसाधक इ मृदुकारी साधक
ण शांति, शक्ति ण शांति, शक्ति ण शांति, शक्ति त सर्वसिद्धि ध मंगलसाधक
म् सिद्धि, संतान म् सिद्धि, संतान म् सिद्धि, संतान त् सर्वसिद्धि इ मृदुकारी साधक
ग साधक ग साधक ग साधक स सर्वसाधक य शांति, सिद्धि
च् खण्डशक्ति च् खण्डशक्ति च् खण्डशक्ति व विपत्तिनिवारक ओ अनुदात्त
छ शक्ति, विध्वंस छ शक्ति, विध्वंस छ शक्ति, इ मृदुकारी साधक य शांति, सिद्धि
आ धन, आशा आ धन, आशा आ धन, आशा त सर्वसिद्धि ओ अनुदात्त
म सिद्धि, संतान म सिद्धि, संतान म सिद्धि, संतान उ अद्भुत शक्ति न आत्मसिद्धि
इ मृदुकारी साधक इ मृदुकारी साधकइ मृदुकारी साधक ह मंगलसाधक
రసాయుగురురురురురురురురురురురువారం సాయ
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________________ सन्दर्भ यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ - जैन साधना एवं आचारसारणी-६ : विभिन्न मंत्रों की साधकता का तुलनात्मक विवरण अ. फल णमोकार मंत्र ओम्यंत्र गायत्रीमंत्र त्रिशरण वर्ण / 1. जैन, प्रकाशचन्द्र : जैन शास्त्रों में मंत्रवाद, ज.मो.ला. शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ, प्राकृत अंग्रेजी मंत्र रीवा, 1989 पृष्ठ 198 1. शांति, शक्ति, सामर्थ्य 11 - 1 2. सर्वशक्ति 7 2. शास्त्री, नेमचन्द्र : णमोकार मंत्र, एक अनुशीलन, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली 8 - 1967 पृ.८-१२ 3. सिद्धि, संतान 3. शास्त्री, गोविंद : मंत्रदर्शन, सर्वार्थसिद्धि प्रकाशन, दिल्ली, 1980 4, मंगल साधक 5. लक्ष्मी, कल्याण 4. सरस्वती, ब्रह्मानन्द : नादयोग,आनन्द-आश्रम,मुनरो, अमरीका, 1989 . 6. विघ्न/विपत्तिनिवारक 3 5.------- : गायत्री चालीसा, शांतिकुंज, हरिद्वार, 1990 7. सर्वसिद्धि/साधक 4 6. मुनि, सुशील : सांग आफ दी सोल,सिद्धाचलम् पब्लिशर्स, ब्लेयर्स टाउन, 8. आत्म सिद्धि/शक्ति 2 अमरीका, 1987 9. शक्ति वृद्धि/सर्वशक्ति 2 7.------- : योग विद्या, बिहार योग विद्यालय, मुगेर, 1982-83 के 10. शति/सिद्धि अनेक अंक 11. निश्चल 1 6 - 8. जैन, मू. शांता : लेश्या और मनो विज्ञान, जैन विश्वभारती, लाडनूं, 1996 12. शक्ति संचार/अद्भुतशक्ति 2- 1 9. जैन, एन.एल. : ग्लासरी आव जैन टर्स, जैन इन्टरनेशनल, अहमदाबाद, 13. धन, आशा 3 8 1995 14. मृदशक्तिसहयोगी 1 2 - 1 2 15. शक्ति विध्वंश 16. स्तम्भन योग 3 52 2 51 - 45/47 345 37/57 के मंत्राक्षर 35 ब. विराधक फल 5 W $ 1. अनुदान 2. अशांति 3. विघटन 4, शांतिविरोधी 5. अल्पशक्ति 6. खण्डशक्ति 7. सात्विक विरोधी 8. निरर्थक योग V - - - 3 - + 51-7-04 51-23= 28 47-7= 4057 - 9= 48