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- यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ - जैन-साधना एवं आचार - मंत्र-शास्त्रियों ने वर्णो-स्वर (१६), व्यंजन (३३) और अर्द्धस्वरों परिवर्तनों का ज्ञान प्रयोगगम्य है और ध्यान की प्रयोगशालाओं को मातृकाक्षर (अ-क्ष) एवं बीजाक्षर (क-ह) के रूप में विभाजित में अनुभव किया जा सकता है। वैज्ञानिक-युग के पूर्व के शास्त्रों किया है। प्रत्येक मंत्र में इन दोनों के अतिरिक्त पल्लव (लिंग, में इन परिवर्तनों का (स्थिरता, भाव, शुद्ध एवं शांति के प्रभावों नमः, स्वाहा आदि) शब्दों का भी समावेश होता है। इस प्रकार के रूप में) परोक्षत: ही उल्लेख माना जा सकता है। प्रत्येक मंत्र इन तीनों प्रकार के घटकों का विशिष्ट समुच्चय
शास्त्रीय युग में मंत्रों के प्रभावों के प्रति विश्वास एवं होता है। प्रत्येक वर्ण की विशिष्ट, अपरिमित तथा दिव्य शक्ति
आकर्षण उत्पन्न करने के लिए यह आवश्यक था कि उनकी होती है। यह प्रशस्त, अप्रशस्त एवं उदासीन - किसी भी कोटि
समग्र शक्ति या प्रभाविता को उनमें विद्यमान वर्गों की समग्र की हो सकती है। इन वर्ण ध्वनियों की शक्ति ही मंत्र में काम
शक्ति के रूप में माना जाए, फलतः प्रत्येक मंत्र की शक्ति का आती है। इस शक्ति का पूर्ण साक्षात्कार ही मंत्र-साधना का
साधना का निर्धारण उसमें विद्यमान वर्णों की शक्ति के आधार पर किया लक्ष्य होता है। यह ध्वनिशक्ति शरीर, मन, विश्व, ग्रह तथा
गया है। अनुभव के आधार पर प्रत्येक वर्ण की विशिष्ट शक्ति अग्नि से अन्योन्य-सम्बन्धित है। यह शक्ति हमारे सात चक्रों
या सामर्थ्य निर्धारित की गई है। यह संकलित शक्ति ही मंत्र की (मूलाधार से सहस्रार तक) और चैतन्य के विविध स्तरों (चेतन,
साधक-क्षमता एवं उद्देश्य-पूर्ण क्षमता को व्यक्त करती है। अवचेतन और अचेतन) को प्रभावित करती है। मंत्र-सम्बन्धी
फलतः वों के शक्ति-उदघाटन के ज्ञान की प्रक्रिया 'मातृका विज्ञान'
मंत्र के प्रत्येक वर्ण की शक्ति का योग = मंत्र की साधक-क्षमता कहलाती है।
इस लेख में वर्णों की शक्ति के आधार पर मंत्रों की मातृका शब्द वस्तुतः 'मात्रा' (उच्चारण के समय का परिमाण) शब्द से व्युत्पन्न है। यह पाया गया है कि यदि स्वर
साधक क्षमता को विश्लेषित करने का प्रयत्न किया गया है। के उच्चारण में 'अ' समय की मात्रा लगती है, तो 'व्यंजन के गोविन्द शास्त्री, नेमिचन्द्र शास्त्री और सुशील मुनि ने विभिन्न उच्चारण में प्राय: 'अ/२' समय की मात्रा लगती है (स्वरों से वर्गों के सामर्थ्य का परम्परा-प्राप्त संकलन दिया है। उसके आधी)। इनके उच्चारण के समय घटाए-बढ़ाए जा सकते हैं - आधार पर सारणी २,३ व ४ तैयार की गई हैं। इनका तुलनात्मक हृस्वध्वनि, दीर्घध्वनि, प्लुतध्वनि, विस्तारित ध्वनि आदि। विश्लेषण सारणी -६ में दिया गया है। इन सारणियों में जैनों के उच्चारण-समयों से कम्पनों की प्रकृति पर अंतर पड़ता है। इसी णमोकार मंत्र, हिन्दुओं के गायत्री मंत्र और बौद्धों के त्रिशरण मंत्र कारण अनेक धर्मशास्त्र शब्दशक्ति को आदिशक्ति ही कहते हैं। तथा ओम् मंत्र को आधार बनाया गया है। साथ ही, यह विश्लेषण
सभी मंत्रों में ३५ अक्षर मानकर किया गया है, जिससे सार्थक मन्त्र की शक्ति का निर्धारण
तुलना हो सके। इस तुलना से एक रोचक और उत्साहवर्द्धक यह विशिष्ट वर्ण-समूहों से निर्मित मंत्रों की ऊर्जा का गुणात्मक तथ्य प्रकट होता है कि यदि पूर्वोक्त मंत्रों में ३५ अक्षर मान विवरण शास्त्रों में पाया जाता है। इस ऊर्जा के अनेक भौतिक लिए जाएँ, तो सभी की साधक-क्षमता लगभग समान होती है।
और आध्यात्मिक लाभ भी वहाँ बताए गए हैं। इस ऊर्जा को हाँ. ओम नामक प्रणव बीज मंत्र इसका अपवाद होगा, पर परिमाणात्मक रूप देना किंचित् दुरूह कार्य है, फिर भी यह तो उसकी क्षमता, उसकी जप-संख्या बढ़ाकर सहज ही बढ़ाई जा माना ही जा सकता है कि मौन या वाचिक मंत्रोच्चारण के सकती है। समय, ध्यान के समान, हमारे मस्तिष्क की तरंगों की प्रकृति में अंग्रेजी में अनूदित मन्त्र की साधकता का विश्लेषण अंतर पड़ता है। वे बीटा-रूप से एल्फा-रूप में परिणत होने
आजकल विभिन्न धर्मों के विश्वीयकरण की चर्चा जोरों लगती हैं, जो मानसिक स्थिरता की प्रतीक हैं। मस्तिष्क के तरंग रूप में परिवर्तन के साथ उसके चारों ओर विद्यमान आभामंडल।
पर है। इसके लिए संस्कृत-प्राकृत भाषा के मंत्रों का अन्य के रंग में भी परिवर्तन होता है, जो काले से सफेद की ओर बढ़ता
भाषान्तरण आवश्यक है। इस हेतु अंग्रेजी सर्वाधिक लोकप्रियता
प्राप्त है। अनेक सत्रों से णमोकार मंत्र का अंग्रेजी-अनुवाद हुआ हुआ प्रशस्त मनोवृत्ति की ओर सूचना देता है। इन दोनों ही andranardnodwebmirrordwordroidroidarbirdwoodword[२१Hiroriridwarararidabraiduirindridward-orditoided
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