Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Kalyanvijay Shastra Sangraha Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ [ * ] कर में किन पर्थों में प्रयुक्त होते थे, और कालान्तर में मूल अर्थ भुलाधीरे धीरे किन अर्थों के वाचक बन गये इस विषय का स्पष्टी करण किया गया है, और यह सिद्ध किया गया है कि मांस, पुद्गल, आमिष आदि शब्द अति प्राचीन काल में मच्छे खाद्य पदार्थ के अर्थ में प्रयुक्त होते थे, परन्तु धीरे- धीरे मांस भक्षण का प्रचार बढ़ने के बाद उक्त शब्द केवल प्राय मांस के अर्थ में ही रह गये हैं । ४, चतुर्थ अध्याय में निर्ग्रन्थ जैन श्रमखों का आहार, बिहार दिनचर्या, तप त्याग कैसे हैं, और वे कैसे निरामिषभोजी तथा अहिंसक होते हैं, इन बार्तो का प्रामाणिक निरूपण किया गया है । ५. पंचम अध्याय में वैदिक-परिव्राजक का विस्तृत निरूपण किया है, और बताया है कि वैदिक परिव्राजक कैसे अहिंसक निरामिष भोजी होते थे, प्रसंगवश आरम्भ में ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ आश्रमों के धर्म नियमों का भी दिग्दर्शन कराया है। ६. छट्ठ े अध्याय में मानव-जाति का कुशल चाहने वाले शाक्य भिक्षु (बौद्ध-साधु ) की जीवन-चर्या बौद्ध-सूत्रों के आधार से लिखी है, बौद्ध भिक्षु प्रारम्भ में बहुत ही सादा और मानवजाति के लिए हितकर साधु था, यद्यपि वह गृहस्थ के घर जाकर भोजन कर लेता और बिहार मठ आदि का स्वीकार भी कर लेता था। फिर भी भगवान् बुद्ध के परिनिर्वाण तक बौद्ध भिक्षु संघ में: उतनी दुर्बलता और शिथिलता नहीं घुसी थी, जो बुद्ध के परि निर्वास के बाद आई । यद्यपि बौद्ध भिक्षु के मांस मध्य मह

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 556