Book Title: Man Shakti Swarup aur Sadhna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_2_001685.pdf

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Page 10
________________ 106 : श्रमण/अप्रैल-जून/1995 कामना या इच्छा से प्रसूत समस्त व्यवहार ही नैतिक विवेचना का विषय है। स्मरण रखना चाहिए कि भारतीय दर्शनों में वासना, कामना, कामगुण, इच्छा, आशा, लोभ, तृष्णा, आसक्ति आदि शब्द लगभग समानार्थक रूप में प्रयुक्त हुए है। जिनका सामान्य अर्थ मन और इन्द्रियों की अपने विषयों की चाह" से है। बन्धन का कारण इन्द्रियों का उनके विषयों से होने वाला सम्पर्क या सहज शारीरिक क्रियाएँ नहीं है, वरन् वासना है। नियमसार में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सामान्य व्यक्ति के उठना-बैठना, चलना-फिरना, देखना-जानना आदि क्रियाएँ वासना से युक्त होने के कारण बन्धन का कारण है जबकि केवली ( सर्वज्ञ या जीवन्मुक्त ) की ये सभी क्रियाएँ वासना या इच्छारहित होने के कारण बन्धन का कारण नहीं होती । इच्छा या संकल्प ( परिणाम) पूर्वक किए हुए वचन आदि कार्य ही बन्धन के कारण होते हैं। इच्छारहित कार्य बन्धन के कारण नहीं होते।23 इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि जैन आचार-दर्शन में वासनात्मक तथा ऐच्छिक व्यवहार ही नैतिक निर्णय का प्रमुख आधार है। जैन नैतिक विवेचना की दृष्टि से वासना (इका) को ही समय जीवन के व्यवहार क्षेत्रका चालक तत्त्व कहा जा सकता है। पाश्चात्य आचार-दर्शन में जीक्वृत्ति (want) क्षुधा (Appetite), इच्छा (Desire) अभिलाषा (wish) और संकल्प (will) में अर्थ वैभिन्य एवं क्रम माना गया है। उनके अनुसार इस समग्र क्रम में चेतना की स्पष्टता के आधार पर विभेद किया जा सकता है। जीववृत्ति चेतना के निम्नतम स्तर वनस्पति जगत में पायी जाती है, पशजगत में जीववत्ति के साथ-साथ क्षधा का भी योग होता है लेकिन चेतना के मानवीय स्तर पर आकर तो जीक्वृत्ति से संकल्प तक के सारे ही तत्त्व उपलब्ध होते है। वस्तुतः जीवृत्ति से लेकर संकल्प तक के सारे स्तरों में वासना के मूल तत्त्व में मूलतः कोई अन्तर नहीं है, अन्तर है, केवल चेतना में उसके बोध का। दूसरे शब्दों में, इनमें मात्रात्मक अन्तर है, गुणात्मक अन्तर नहीं है। यही कारण है भारतीय दर्शन में इस क्रम के सम्बन्ध में कोई विवेचना उपलब्ध नहीं होती है। भारतीय साहित्य में वासना, कामना, इच्छा और तृष्णा आदि शब्द तो अवश्य मिलते हैं और वासना की तीव्रता की दृष्टि से इनमें अन्तर भी किया जा सकता है। फिर भी साधारण रूप से समानार्थक रूप में ही उनका प्रयोग हुआ है। भारतीय-दर्शन की दृष्टि से वासना को जीववृत्ति ( want) तथा क्षुधा (Appetite), कामना को इच्छा (Desire), इच्छा को अभिलाषा (Desire ) और तृष्णा को संकल्प (wit) कहा जा सकता है। पाश्चात्य विचारक जहाँ वासना के केवल उस स्पको जिसे हम संकल्प (will ) कहते हैं, नैतिक निर्माण का विषय बनाते हैं, वहीं भारतीय चिन्तन में वासना के वे स्प भी जिनमें वासना की चेतना का स्पष्ट बोध नहीं है, नैतिकता की परिसीमा में आ जाते हैं। चाहे वासना के रूप में अन्ध ऐन्द्रिक अभिवृत्ति हो या मन का विमर्शात्मक संकल्प हो, दोनों के ही मुल में वासना का तत्त्व निहित है और यही वासना प्राणीय व्यवहार की मूलभूत प्रेरक है। व्यवहार की दृष्टि से वासना (जीक्वृत्ति) और तृष्णा (संकल्प) में अन्तर यह है कि पहली स्पष्ट रूप से चेतना के स्तर पर नहीं होने के कारण मात्र अन्ध प्रवृत्ति होती है जबकि दूसरी चेतना के स्तर पर होने के कारण विमर्शात्मक होती है। चेतना में इच्छा के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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