Book Title: Mahavira ka Punarjanma Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 2
________________ महावीर एक मानव, एक दृष्टिकोण, एक सत्य। मानव मरणधर्मा है। वह जन्म लेता है और एक अवधि के बाद दिवंगत हो जाता है। दृष्टिकोण दिशा-दर्शन देता है, जागरण का शंख फूंकता है, बिम्ब और प्रतिबिम्ब के मध्य भेद-रेखा खींचता है। सत्य त्रैकालिक होता है। वह कभी प्रकाशी होता है, कभी बादलों से ढक जाता है और कभी फिर प्रकाशी बन जाता है। महावीर देह के बंधन को छोड़ मुक्त हो गए। अवतारवाद उन्हें मान्य नहीं था। मानव महावीर का पुनर्जन्म संभव नहीं रहा। महावीर के दर्शन और सत्य पर एक सघन आवरण आता हुआ सा दिखाई दिया। युगधारा बदली। वैज्ञानिक युग का प्रवर्तन हो गया। प्रतीत हुआ-महावीर का दर्शन प्रासंगिक हो रहा है। प्रांसगिकता इतनी बढ़ी है कि उसने महावीर के पुनर्जन्म को अनुभूति के स्तर पर रेखांकित कर दिया। वर्तमान अतीत बनता है, यह सामान्य अवधारणा है। वैज्ञानिक अवधारणा यह भी है-अतीत फिर वर्तमान बनता है।Page Navigation
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