Book Title: Mahavira Vani Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 14
________________ अनुक्रम से 12. 13. मंत्र: दिव्य-लोक की कुंजी मंगल व लोकोत्तर की भावना शरणागतिः धर्म का मूल आधार धर्म : स्वभाव में होना अहिंसा : जीवेषणा की मृत्यु संयमः मध्य में रुकना संयम की विधायक दृष्टि तपः ऊर्जा-शरीर का दिशा-परिवर्तन तपः ऊर्जा-शरीर का अनुभव अनशन : मध्य के क्षण का अनुभव ऊणोदरी एवं वृत्ति-संक्षेप रस-परित्याग और काया-क्लेश संलीनता : अंतर-तप का प्रवेश द्वार प्रायश्चित्तः पहला अंतर-तप विनय ः परिणति निरअहंकारिता की वैयावृत्य और स्वाध्याय सामायिकः स्वभाव में ठहर जाना कायोत्सर्ग: शरीर से विदा लेने की क्षमता धर्म : एक मात्र शरण धर्म का मार्गः सत्य का सीधा साक्षात सत्य सदा सार्वभौम है कामवासना है दूसरे की खोज ब्रह्मचर्य ः कामवासना से मुक्ति संग्रह : अंदर के लोभ की झलक अरात्रि-भोजनः शरीर-ऊर्जा का संतुलन विनय शिष्य का लक्षण है मनुष्यत्वः बढ़ते हुए होश की धारा (पंच-नमोकार-सूत्र) (मंगल-भाव-सूत्र) (शरणागति-सूत्र) (धम्म-सूत्र) (धम्म-सूत्र : अहिंसा) (धम्म-सूत्रः संयम-1) (धम्म-सूत्रः संयम-2) (धम्म-सूत्रः तप-1) (धम्म-सूत्रः तप-2) (धम्म-सूत्रः बाह्य-तप-1) (धम्म-सूत्र : बाह्य-तप-2, 3) (धम्म-सूत्रः बाह्य-तप-4,5) (धम्म-सूत्रः बाह्य-तप-6) (धम्म-सूत्र : अंतर-तप-1) (धम्म-सूत्रः अंतर-तप-2) (धम्म-सूत्र : अंतर-तप-3, 4) (धम्म-सूत्रः अंतर-तप-5) (धम्म-सूत्र: अंतर-तप-6) (धम्म-सूत्रः 2) (धम्म-सूत्रः 3) (सत्य-सूत्र) (ब्रह्मचर्य-सूत्रः 1) (ब्रह्मचर्य-सूत्र : 2) (अपरिग्रह-सूत्र) (अरात्रि-भोजन-सूत्र) (विनय-सूत्र) (चतुरंगीय-सूत्र) 37 से 53 से 72 73 से 90 91 से 110 111 से 128 129 से 148 149 से 166 167 से 188 189 से 208 209 से 228 229 से 246 247 से 268 269 से 290 291 से 310 311 से 328 329 से 346 347 से 364 365 से 382 383 से 402 403 से 420 421 से 440 441 से 460 461 से 480 481 से 504 505 से 524 16. 17. 21. 22. 23. 24. 25. 26. XII Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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