Book Title: Mahavira Vani Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 19
________________ मंत्र : दिव्य-लोक की कुंजी की ऊंचाई चौगुनी हो जाएगी, क्योंकि चांद पर चौगुना कम है गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से। अगर हमने कोई और तारे और ग्रह खोज लिये जहां गुरुत्वाकर्षण और कम हो तो ऊंचाई और बड़ी हो जाएगी। इसलिए आज एकदम कथा कह देनी बहुत कठिन है। नमोकार को जैन परंपरा ने महामंत्र कहा है। पृथ्वी पर दस-पांच ऐसे मंत्र हैं जो नमोकार की हैसियत के हैं। असल में प्रत्येक धर्म के पास एक महामंत्र अनिवार्य है, क्योंकि उसके इर्द-गिर्द ही उसकी सारी व्यवस्था, सारा भवन निर्मित होता है। ये महामंत्र करते क्या हैं, इनका प्रयोजन क्या है, इनसे क्या फलित हो सकता है? आज साउंड-इलेक्ट्रानिक्स, ध्वनि-विज्ञान बहुत से नये तथ्यों के करीब पहुंच रहा है। उसमें एक तथ्य यह है कि इस जगत में पैदा की गई कोई भी ध्वनि कभी भी नष्ट नहीं होती - इस अनंत आकाश में संग्रहीत होती चली जाती है। ऐसा समझें कि जैसे आकाश भी रिकार्ड करता है, आकाश पर भी किसी सूक्ष्म तल पर ग्रूव्ज बन जाते हैं। इस पर रूस में इधर पंद्रह वर्षों से बहुत काम हुआ है। उस काम पर दो-तीन बातें खयाल में ले लेंगे तो आसानी हो जाएगी। अगर एक सदभाव से भरा हुआ व्यक्ति, मंगल-कामना से भरा हुआ व्यक्ति आंख बंद करके अपने हाथ में जल से भरी हई एक मटकी ले ले और कुछ क्षण सदभावों से भरा हुआ उस जल की मटकी को हाथ में लिए रहे - तो रूसी वैज्ञानिक कामेनिएव और अमरीकी वैज्ञानिक डा. रुडोल्फ किर, इन दो व्यक्तियों ने बहुत से प्रयोग करके यह प्रमाणित किया है कि वह जल गुणात्मक रूप से परिवर्तित हो जाता है। केमिकली कोई फर्क नहीं होता। उस भली भावनाओं से भरे हुए, मंगल-आकांक्षाओं से भरे हुए व्यक्ति के हाथ में जल का स्पर्श जल में कोई केमिकल, कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं करता, लेकिन उस जल में फिर भी कोई गुणात्मक परिवर्तन हो जाता है। और वह जल अगर बीजों पर छिड़का जाए तो वे जल्दी अंकुरित होते हैं, साधारण जल की बजाय। उनमें बड़े फूल आते हैं, बड़े फल लगते हैं। वे पौधे ज्यादा स्वस्थ होते हैं, साधारण जल की बजाय। कामेनिएव ने साधारण जल भी उन्हीं बीजों पर वैसी ही भूमि में छिड़का है और यह विशेष जल भी। और रुग्ण, विक्षिप्त, निगेटिव-इमोशंस से भरे हुए व्यक्ति, निषेधात्मक-भाव से भरे हुए व्यक्ति, हत्या का विचार करनेवाले, दूसरे को नुकसान पहुंचाने का विचार करनेवाले, अमंगल की भावनाओं से भरे हुए व्यक्ति के हाथ में दिया गया जल भी बीजों पर छिड़का है - या तो वे बीज अंकुरित ही नहीं होते, या अंकुरित होते हैं तो रुग्ण अंकुरित होते हैं। __पंद्रह वर्ष हजारों प्रयोगों के बाद यह निष्पत्ति ली जा सकी कि जल में अब तक हम सोचते थे केमिस्ट्री' ही सब कुछ है, लेकिन 'केमिकली' तो कोई फर्क नहीं होता, रासायनिक रूप से तीनों जलों में कोई फर्क नहीं होता, फिर भी कोई फर्क होता है; वह फर्क क्या है? और वह फर्क जल में कहां से प्रवेश करता है? निश्चित ही वह फर्क, अब तक जो भी हमारे पास उपकरण हैं, उनसे नहीं जांचा जा सकता। लेकिन वह फर्क होता है, यह परिणाम से सिद्ध होता है। क्योंकि तीनों जलों का आत्मिक रूप बदल जाता है। 'केमिकल' रूप तो नहीं बदलता, लेकिन तीनों जलों की आत्मा में कुछ रूपांतरण हो जाता है। अगर जल में यह रूपांतरण हो सकता है तो हमारे चारों ओर फैले हुए आकाश में भी हो सकता है। मंत्र की प्राथमिक आधारशिला यही है। मंगल भावनाओं से भरा हुआ मंत्र, हमारे चारों ओर के आकाश में गुणात्मक अंतर पैदा करता है। 'क्वालिटेटिव ट्रांसफार्मेशन' करता है। और उस मंत्र से भरा हआ व्यक्ति जब आपके पास से भी गुजरता है, तब भी वह अलग तरह के आकाश से गुजरता है। उसके चारों तरफ शरीर के आसपास एक भिन्न तरह का आकाश, ‘ए डिफरेंट क्वालिटी आफ स्पेस' पैदा हो जाती है। - एक दूसरे रूसी वैज्ञानिक किरलियान ने 'हाई फ्रिक्वेंसी फोटोग्राफी' विकसित की है। वह शायद आने वाले भविष्य में सबसे अनूठा प्रयोग सिद्ध होगा। अगर मेरे हाथ का चित्र लिया जाए, 'हाई फ्रिक्वेंसी फोटोग्राफी' से, जो कि बहुत संवेदनशील प्लेट्स पर होती है, तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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