Book Title: Mahavir ki Nirvanbhumi Pava Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_6_001689.pdf View full book textPage 4
________________ ४४ सिद्ध नहीं होती कि महावीर या बुद्ध के काल में पावा नामक नगर तीन थे। जो भी साहित्यिक उल्लेख उपलब्ध हैं वे मल्लों की मध्यदेशीय पावा के ही हैं, अन्य किसी पावा का कोई उल्लेख नहीं है। ___ कुछ विद्वानों ने तीन ‘पावा' की बात तो स्वीकार नहीं की किन्तु मज्झिमा पावा का अर्थ यह लगाया है कि पावा नगर के मध्य में स्थित हस्तिपालराजा की रज्जुक सभा में महावीर का निर्वाण हुआ था, इसी कारण उसे मज्झिमा पावा कहा गया है। प्राकृत व्याकरण की दृष्टि से मज्झिमा पावा का विशेषण है, उसका अर्थ मध्यमा अर्थात् बीच की पावा या मध्यदेशीय पावा ऐसा होगा, किन्तु पावा के मध्य में ऐसा नहीं। क्योंकि यदि लेखक को यह बात कहनी होती तो वह ‘पावाए मज्झे' इन शब्दों का प्रयोग करता न कि 'मज्झिमापावा' का दूसरे महावीर जब भी चातुर्मास करते थे तो गाँव या नगर के मध्य में न करके गाँव या नगर के बाहर ही किसी उद्यान, चैत्य आदि पर ही करते थे - अत: उन्होंने यह चातुर्मास पावा नगर के मध्य में किया होगा, यह बात सिद्ध नहीं होती। रज्जूक सभा का अर्थ भी यह बताता है कि वह स्थान हस्तिपाल राजा के नाप तौल विभाग का सभा स्थल रहा होगा। किन्तु यह सभाभवन के नगर के मध्य में हो, यह सम्भावना कम ही है। ज्ञातव्य है कि जैन परम्परा में नाप के लिए रज्जु शब्द का प्रयोग मिलता है। सामान्य रूप से रज्जक वे राजकीय कर्मचारी थे जो रस्सी लेकर भमि या खेतों का माप करते थे। ये कर्मचारी वर्तमान काल के पटवारियों के समान ही थे। राज्य में प्रत्येक गांव का एक रज्जुक होता होगा और एक छोटे से राज्य में भी हजारों गाँव होते थे अत: राज्य कर्मचारियों में रज्जुकों की संख्या सर्वाधिक होती थी। सम्भव है उनकी सभा हेतु कोई विशाल भवन रहा हो। महावीर ने यह स्थल चातुर्मास के लिए इस कारण से चुना होगा कि इसमें विशाल सभागार रहा होगा। ऐसा सभागार महावीर के विशाल संघ के चातुर्मास का उपयुक्त स्थल हो सकता था, किन्तु यह नगर के मध्य हो, यह सम्भावना कम ही है। इस प्रकार मज्झिमा का अर्थ न तो मध्यवर्ती पावा होगा और न पावा के मध्य में ऐसा होगा। अब हम 'मज्झिमा' शब्द के तीसरे अर्थ मध्यदेशीय पावा की ओर आते हैं। तीसरे अर्थ के अनुसार इसका तात्पर्य यह होगा कि वह पावा नगर मध्यदेश में स्थित था। ज्ञातव्य है कि पालि त्रिपिटक और बुद्धकालीन भूगोल में मध्यदेश की सीमाएँ इस प्रकार थीं - मध्यदेश के पूर्व में विदेह पश्चिम में कौशल, उत्तर में शाक्य/मौरिय (नेपाल का तराई क्षेत्र) तथा दक्षिण में काशी देश स्थित थे। इसका अर्थ है कि मज्झिमापावा मध्यदेश में स्थित थी, जबकि वर्तमान में मान्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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