Book Title: Mahavir ki Nirvanbhumi Pava Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_6_001689.pdf View full book textPage 6
________________ ४६ खेतान की पुस्तक की भूमिका में उनके मत का समर्थन करते हुए मेरा झुकाव भी पड़रौना को पावा मानने के पक्ष में था। किन्तु निम्न तीन कारणों से अब मुझे अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करना पड़ रहा है - १. पड़रौना के 'पावा' होने के पक्ष में आज तक कोई भी ठोस साहित्यिक और पुरातात्त्विक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। आदरणीय भगवतीप्रसाद खेतान द्वारा दिये गये तर्कों और साक्ष्यों से यह तो सिद्ध होता है कि राजगृह के समीपवर्ती पावा वास्तविक पावा नहीं है, किन्तु पडरौना का सिद्धवा स्थान ही पावा है, यह पूर्णतया सिद्ध नहीं होता । २. दूसरे, पडरौना राजगृह- वैशाली - कुशीनारा के सीधे या सरल मार्ग पर स्थित नहीं है, राजगृह या वैशाली से पडरौना होकर कुशीनारा आना एक चक्करदार रास्ता है। भगवान बुद्ध की इस यात्रा का लक्ष्य कुशीनारा था अतः उत्तर में जाकर पुनः दक्षिण में आने वाले मार्ग का चयन उचित नहीं था । ३. जैन व्याख्या साहित्य के अनुसार भगवान महावीर ने अपने कैवल्य स्थल से बारह योजन चलकर पावा में अपने धर्म तीर्थ की स्थापना की थी | मेरी दृष्टि में वर्तमान जमुई के समीपवर्ती लछवाड़ महावीर का जन्म स्थल न होकर कैवल्यज्ञान स्थल है। वहाँ से सीधे मार्ग से पावा की दूरी लगभग १९० किलोमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। पडरौना को पावा मानने पर यह दूरी लगभग २५० से अधिक हो जाती है। अतः पडरौना को पावा मानने में अनेक कठिनाईयाँ हैं । कुशीनगर से दक्षिण पूर्व में पावा को मानने के सम्बन्ध में भी अब हमारे सामने दो विकल्प हैं? प्रथम फाजिलनगर सठियांव और दूसरा उसमानपुरवीरभारी । यद्यपि कार्लाइल आदि विद्वानों ने फाजिलनगर सठियांव को पावा मानने के पक्ष में अपना मत दिया था। उसके परिणामस्वरूप गोरखपुर, देवरिया आदि के कुछ दिगम्बर जैनों ने और कुछ प्रबुद्ध वर्ग ने उसे महावीर की निर्वाण भूमि मानकर मन्दिर धर्मशाला आदि भी बनवाये हैं। किन्तु श्री ओमप्रकाशलाल का कहना है कि वहाँ से जो मृणमुद्रा मिली है, उससे वह स्थल श्रेष्ठिग्राम सिद्ध होता है, पावा नहीं। पुनः वह स्थल भी कुशीनारा से १८-२० मील पूर्व में ही है, दक्षिण पूर्व में नहीं है । इस दृष्टि से उसमानपुर वीरभारी को पावा मानने का पक्ष अधिक सबल प्रतीत होता है। इस सम्बन्ध में सबसे महत्त्वपूर्ण साक्ष्य वहाँ से 'प (1)वानारा' के उल्लेख युक्त मृणमुद्रा का प्राप्त होना है। जिस प्रकार प्राप्त मृणमुद्राओं के आधार पर उन-उन ग्राम या नगरों की पहचान पूर्व में इतिहासकारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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