Book Title: Mahavir ki Nirvanbhumi Pava
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_6_001689.pdf

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Page 3
________________ एक पुनर्विचार उसमें सम्मिलित हो सके। किन्तु यह तर्क समुचित नहीं है, क्योंकि प्रथम तो नन्दिवर्धन महावीर की दाह क्रिया में सम्मिलित हुए थे, ऐसा कोई प्राचीन उल्लेख नहीं है। यदि यह मानें कि १८ गणराजाओं में नन्दिवर्धन भी थे, तो वे तो पौषध के निमित्त पूर्व से ही वहाँ उपस्थित थे । पुनः वैशाली के निकटवर्ती क्षत्रिय 'कुण्डग्राम से भी उसमानपुर वीरभारी या फाजिल नगर के निकट सठियाँव के समीप स्थित पावा की दूरी भी लगभग १०० मील से अधिक नहीं है, घोड़े पर एक दिन में इतनी दूरी पार करना भी कठिन नहीं है। क्योंकि अच्छा घोड़ा एक घण्टे में १० मील की यात्रा आसानी से कर लेता है। भगवान महावीर की निर्वाणभूमि पावा कुशीनगर - पुन: एक विचारणीय प्रश्न यह है कि आगमों में महावीर के परिनिर्वाण स्थल को 'मज्झिमा पावा' कहा गया है। 'मज्झिमा' शब्द की व्याख्या विद्वानों ने अनेक दृष्टि से की है। कुछ विद्वानों के अनुसार मज्झिमा का अर्थ है- मध्यवर्ती पावा अर्थात् उनके अनुसार उस काल में तीन पावा रही होगी। उन तीन पावाओं में मध्यवर्ती पावा को ही मज्झिमा पावा कहा गया है। वर्तमान चर्चाओं के आधार पर यदि हम राजगृह के समीपवर्ती पावा और पड़रौना समीप स्थित पावा की कल्पना को सही मानें तो इनके मध्यवर्ती फाजिल नगर या वीरभारी की पावा को मध्यवर्ती पावा माना जा सकता है। पड़रौना (पावा) : ४३ फाजिलनगर ( सठियाँव) उसमानपुर (वीरभारी) १५ किलो मीटर राजगृह के समीपवर्ती वर्तमान पावा किन्तु उस काल में ऐसी तीन पावा थी, इसका कोई भी प्रमाण जैनागमों और त्रिपिटक में नहीं मिलता। यद्यपि इस कल्पना की एक फलश्रुति अवश्य है, वह यह कि राजगृह के समीपवर्ती पावा चाहे उस युग में रही भी हो, किन्तु वह मध्यवर्ती पावा (मज्झिमा पावा) नहीं हो सकती है अतः उसे महावीर की निर्वाण भूमि नहीं माना जा सकता है। वह मध्यवर्ती पावा न होकर दक्षिण या अन्त्य पावा ही सिद्ध होगी। क्योंकि उसके दक्षिण या पूर्व दिशा में किसी अन्य पावा के कोई भी संकेत नहीं मिले हैं। इस तीन पावा नगरों की कल्पना को स्वीकार करने में सबसे बड़ी बाधा यह भी है कि पुरातात्त्विक और साहित्यिक साक्ष्यों से यह बात www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International

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