Book Title: Mahavir ki Dharmatattva Deshna Author(s): Bansidhar Pandit Publisher: Z_Bansidhar_Pandit_Abhinandan_Granth_012047.pdf View full book textPage 1
________________ तीर्थंकर महावीरकी धर्मतत्व-देशना आगम और आगमाभास की परिभाषा परीक्षामुखसूत्र ग्रन्थके तृतीय समुद्देश में आगमकी परिभाषा निम्न प्रकार बतलायी गयी हैआप्तवचनादिनिबन्धनमर्थज्ञानमागमः | ३ - ९९| अर्थ- आप्त के वचन आदिके आधारपर जो पदार्थ-ज्ञान हमें होता है वह आगम है । सूत्र में 'वचन' शब्द के आगे पठित 'आदि' शब्दका अभिप्राय सूत्रकी टीका प्रमेयरत्नमालामें अंगुलि आदिके संकेतोंके रूपमें ग्रहण किया गया है । अतः जिस प्रकार आप्तके वचनोंके आधारपर हमें होने वाला पदार्थ - ज्ञान आगम है उसी प्रकार उसकी अंगुल्यादिके संकेतोंके आधारपर हमें होनेवाला पदार्थ - ज्ञान भी आगम है। यह परिभाषा भावात्मक आगमकी है । लेकिन सूत्रका यह भी आशय है कि हमें उपर्युक्त प्रकारसे होनेवाले ज्ञानरूप भावात्मक आगमके उद्भव में निमित्तभूत आप्तके वचनों और उसकी अंगुलि आदिके संकेतोंको द्रव्यात्मक आगम जानना चाहिए। स्वामी समन्तभद्रने वचनरूप द्रव्यात्मक आगमकी रत्नकरण्ड श्रावकाचार में निम्न लिखित परिभाषा बतलाई है आप्तोपज्ञ मनुल्लंघ्यमदृष्टेष्ट विरोधकम् । तत्त्वोपदेशकृत् सार्व शास्त्रं कापथघट्टनम् ||९|| अर्थ - शास्त्र ( वचनरूप द्रव्यात्मक - आगम) वह है, जो आप्तके द्वारा कहा गया हो, अन्य मतों द्वारा अकाट्य हो, दृष्ट (प्रत्यक्ष ) और इष्ट (अनुमान) द्वारा अबाधित हो, तत्त्व ( तथ्यात्मक व सत्यात्मक प्रयोभूत वस्तु) का प्रतिपादक हो, सम्पूर्ण जीवोंके लिए हितकर हो और कुमार्ग ( जीवोंके लिए अहितकर मार्ग ) का निषेध करने वाला हो । स्वामी समन्तभद्रने उक्त परिभाषामें आगमका प्रत्यक्ष और अनुमानसे समर्थित होना न बतलाकर जो " अदृष्टेष्टविरोधकम्" पद द्वारा प्रत्यक्ष और अनुमानसे अबाधित होना बतलाया है, इसका अभिप्राय यह हैं कि आप्तके वचनरूप सम्पूर्ण द्रव्यात्मक - आगमका हमारे प्रत्यक्ष और अनुमानसे अल्पज्ञ होनेके कारण समर्थित होना सम्भव नहीं है, लेकिन अबाधित होना अवश्य सम्भव है -- इस तरह आप्तके वचनरूप जो द्रव्यात्मकआगम हमारे प्रत्यक्ष और अनुमानसे समर्थित हो, वह तो आगम है ही, लेकिन आप्तके वचनरूप जो द्रव्यात्मकआगम हमारे प्रत्यक्ष और अनुमानसे अबाधित हो, उसे भी आगम जान लेना चाहिए । परीक्षामुखसूत्र ग्रन्थके उक्त सूत्रमें व रत्नकरण्ड श्रावकाचारके उक्त पद्यमें पठित 'आप्त' शब्दसे यह भी निर्णीत होता है कि पुरुष आप्त और अनास के भेदसे दो प्रकार के होते हैं । उनमेंसे आप्तके वचन व उसकी अंगुल आदि संकेतही आगम हैं, अनाप्तके वचन और उसकी अंगुलि आदिके संकेत आगम नहीं हैं । अतः अनात के वचन व उसकी अंगुलि आदिके संकेतोंको आगमाभास जानना चाहिए । Jain Education International १. आदिशब्देनांगुल्यादिसंज्ञापरिग्रहः । २. परनिरपेक्ष (स्वतः सिद्ध) वस्तुस्थितिरूप | ३. परसापेक्ष वस्तुस्थितिरूप । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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