Book Title: Mahavir ka Mukhtsar Jivan
Author(s): Sahir Ludhiyanvi
Publisher: Sahir Ludhiyanvi

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Page 2
________________ चलती रही जो तेग, दो-दम अढ़ाई सौ बरस, मासूमीयत ने खाए जुल्म अढ़ाई सौ बरस। 3 कुदरत के जबरो-सबर का, सागर छलक गया, गोया फल्क की आंख से, आंसू छलक गया। मगमु कायनात फिर, मसरूर हो गई। जुल्मों सितम की आग भी, काफूर हो गई। ऐसी छिपी कि आंख से, मसतूर हो गई। तावारिख शब्वे गुनाह की, पुरनूर हो गई। 4 गोया जहां के दर्द का, सब नाश हो गया, भगवान वर्धमान का, प्रकाश हो गया। बचपन में आप ने, करिश्मा दिखा दिया, मेरू गिरि पहाड़ को, छू कर हिला दिया। हैरत में देवता को, इक बुत बना दिया। इन्द्र के दिल में खौफ का, सिक्का बिठा दिया, तजवीज उसने नाम, महावीर कर दिया। 5 दोनों इल्मे फन का, हुआ सिलसिला रवां, खुश्बू के जिन गुलों की, महक उठा गुल्स्तिां । हर वाक पे था आपकी, इक फलसफानुमा, माहर थे आप चौदह, जुबां के बेगुमा। 6 हर इल्मे फन पर, आप को हासिल अबूर था, रूहानियत का आपके, सीने में नूर था। तालीम खत्म करके, हुआ फर्ज का ख्याल, खू बेगुनाह का देख कर, दिल हो गया निढाल। माता पिता से कर दिया, इक रोज ये सवाल, शाही की जिंदगी हुई, जां के लिए बवाल। 7 रूखस्त अता हो, देश की सेवा करूंगा मैं,

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