Book Title: Mahavir ka Mukhtsar Jivan Author(s): Sahir Ludhiyanvi Publisher: Sahir Ludhiyanvi View full book textPage 5
________________ हाजिर हुए हजूर में, जी शान ताजदार। 16 जाल्मि ने नामे जुल्म को, खुद ही मिट दिया, मगरूर सिर को आपके, आगे झुका दिया। गफलत शार नींद से, बेदार हो गया। जुल्मों सितम से वो, बेजार हो गया। 17 जब जैन मत का दहर, में प्रचार हो गया, भगवान खुद जहां से, निर्वाण हो गए, मुरदों में रूह फूंक कर, बेजान हो गए। प्रार्थना : ऐ वर्धमान ! मंजिल रफा के रहनुमा, अवतार के शान्ति के, अहिंसा के देवता। फिर सर जमीने हिंद से, इक हशर है वपा मासूमीयत की रूह, तड़पती है बरबला। पैरू तेरे जहां में रहे, सितम हैं अब, आहों-फगां जुबां पे है, वक्फे आलम है अब। पैगाम आ के आज, अहिंसा का फिर सुना, मकरों-रया की आग को, इक बार फिर बुझा। ऐ रहनुमा ऐ कौम ! हकीकत की राह दिखा, हस्ती सितम शार की, फिर खाक में मिला। 18 'दिलशाद' कर दे फिर से, गुलामों को हिंद में, आजाद कर दे फिर से गुलामों को हिंद में।Page Navigation
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