Book Title: Mahavir Jivan aur Darshan
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

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Page 7
________________ कान्त, आदि सभी विरोधी एकान्तबादों का जब है। अतः अहिंसा का ही एक नाम अनेकान्त और समन्वय संभव है तब कौनसी समस्या इसके द्वारा हल स्याद्वाद है यदि ऐसा कहा जाये तो कोई अत्युक्ति नहीं नहीं की जा सकती। किन्तु उसका प्रयोग करने की है। इसे हम सत्याग्रह भी कह सकते हैं क्योंकि अनेकान्ती आवश्यकता है। इसके लिये मूल में महावीर की सत्य के प्रति आग्रही होता है। जो सत्य है वह अनेअहिंसक भावना होना आवश्यक है। अहिंसक भावना कान्त रूप है और जो अनेकान्त रूप है वही सत्य है। की ही देन अनेकान्त और स्याद्वाद है / विचार के क्षेत्र अनेकान्त दृष्टि के बिनासत्य तक पहुँचना संभव नहीं में जो हिंसा का ताण्डव होता था उसे मिटाने के लिये है। अतः सत्य के खोजी को अनेकान्त दृष्टि से सम्पन्न ही अनेकान्त और स्याद्वाद का सर्जन हुआ। इनके बिना होना चाहिये तभी वह सत्य इष्टा हो सकता है। विचार के क्षेत्र में प्रवर्तित हिंसा का मिटना अशक्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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