Book Title: Mahavir Darshan Mahajivan Katha
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 40
________________ [12] सघुप्रति महावीर हर्शन. हुथा अपम्वा (P). सारहशमां डठिन हर्मोने बेहनाश हितमानां उत्पात... ला शासशीर्ष आम्‌मां ध्यान-सीन अलुने त्रिपृष्ठना लवनी सपमानित श छुट्पूतना व्यंतरीना शीत-व्यसर्ग (संत सोडावधिज्ञान प्रडरावनाश) અને ગોવાળ દ્વારા કાનમાં છ માસ ૨૨ના 1252 वृक्षना धारहार "" श्रीसानु होडy.....! " (F): ध्यानस्थ प्रतुनां परगोमा सुलरोज अगर बस सग्जि‌नवाजा तो उसमें हुन् गोशाद्वारा छोडायला भेलश्या ! (M)/रह तथा पाखंडी क्योतिषीनो हलय संग..... (F) प्रलु-माहिमानी सहुने प्रतीति दुरायधाना हेतु धी धन्द्र द्वारा सामुहिक निमित्त इस पुष्यनी सहायता "(m) सायां वो अनेक प्रसंगों, उपसर्ग- उत्पातो, परिषहो ने तपश्चर्यातो! परंतु जघुन शुप्त-सम्राट, सडोडी - ससंग मौन सात्म ध्यानपूर्वनु, स्वयंनी न सहाय लक्ष्लु ...! 1। (F) अन्य डोधनीय सहाय डुं साधारनी आवश्यकता (साधारण सूप) szi हती जे स्व-निर्लर पुरुष-सिंह- पूर्ण पुरुष-पुराण पुरुष नेक बनी स्वयंनी सात्मशक्ति न हती सत्याजाध, सरसीम, जनत.... ! मंत्र-सूत्र घोष(ल) : "अहो ! अनंत वीर्यमयम् आत्मा !"(3) પ્રકા૮) આત્માની આ અનંત શક્તિ પર જ તો સ્થિર થવાનું ચિત્ર-વિકસિત અને મસુરિત થવાનું હતું 'महाकर हर्शन', निर्भय हर्शन प्रभु सर्वोदय तीर्थक्षय महाशासन...! या अतुल ताथ-प्रवर्तन-धर्मचक्रप्रव ! नी ४ तो गुरुगान गायाना हता सुरासुर, इन्द्र- महेन्द्र, सुधन- अनुधवन (गान पडिल) जिस त्रिलुपनना समस्त प्राणी गए। 'भुवनेश्वर है ! मोचन करी, बंधन शु मोचन करी है ! 'तु सा गनिडरतां - - (रवीन्द्र सात) श्लोगान (F) "वीर : सर्व सुरासुरेन्द्र महितो, वीरं बुधा संश्रिताः । पीरेणाभिहतः स्वकर्मनिचयो, वीराय नित्यं नमः ॥ पीरात तीर्थमिदम् प्रवृत्तमतुलं, वीरस्य धोरं तपो । वीरे श्री धृति-कांर्ति कान्ति-निचय: श्री वीर भद्रं दिश ।" પ્રવકતા ૮). પ્રભુ વીરે પોતાની અપરિમિત આત્મસામર્થ્ય અને દૃઢ આત્મસંકલ્પના जनधी सहन दुरेला रसनेडनिड उपसर्गोमा ~ प्रवस्तारला मध्यम हुझानों उयसर्ग हतो गोवाज द्वारा अन्‌मां होडायला जीसानो नेछछ मास सुधी डानमा ४ रहीने प्रतुने पीडतो रह्यो भने चैध द्वारा शस्य दूर उराती येणाचे धयेली असा पेहनाथी अलुमुजमांधी पर नरडुजी, उयिली es लयंडर यास |

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