Book Title: Mahavir Darshan Mahajivan Katha
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation
View full book text
________________
समुप्रति
महावीर हर्शन. या
छ
जानहगान
....खान मास.
सतत सेन संयराग, जे ४ स्मराग, जे न हर्शन- आत्ममहेशषु, शुध्द्धादेव -प्रहशन, सिद्धात्य महेशनं हर्शन, आनंद हर्शन, से हिव्य प्रदेशमा पहल આનંદગંગાનું અહીં વસતા પોતાના આદેશમાં અવતરણ- जानमनुगा pls/ch खानहगान : " साथ मारा मात्मप्रदेश जानंहगंगा उससी रे; ज्ञानभ्योति प्रगटी सर्वांगे, दृष्टि-संधता विएससी रे... અદ્ભુત આન્ત-સ્વરૂપ નીહાળ્યું, દેહ-દેવળથી ભિન્ન રે सात्म स्वरूपमा नगत निराज्य, छये हृप्य लित लिभर सोहान्ते अतु सिद्ध निहाण्या, सुखसंपत्ति लार के सिद्ध समान स्वरूप मा, विन संपत्ति अधिकार रे... समान मा. सहगुरू सहतनेह प्रताये धन्य-धन्य यह साथ रे, अनुलपगान दुरे धनसारी, पानी जात्मस्वराबरे.
साथ मारा.
〃
साथ मारा.
[- जात्मज्ञा माताक धनस्थान, श्रीमह् रामचंहु সদঝ: পगर (1-4] प्रवडता लाए खादा जातिर मौनभव ज्ञानंह सोडनी जानहं गंगामा स्नान इरेला सवे अनंतानंत यात्मवल पामला मनुं को अनुभवगम्य- जयस्तव्य मौन हर्शन साथ विजज्ञानाले क्यारे मस्य यत्र मुजरित थपा सायु प्यारे १ (Sivae Insti.mune) Hotell (F)......(cue) साडा-जार वर्षोना गएन-गंभीर ध्यानमय प्रलुनु से महामौन जाने 'मौन'मांधी माह मां सने नाहमांशी शमा इपातरित - परिवर्तित थवा साग्यं राज्होनो ग्स हिव्यध्वनि ীমাহAনৗSসাণ (M): "गंभीर तारश्च पूरित दिग्विभागस्
दिव्यध्वनिर् भवति ते विशदार्थ सर्प, भाषा स्वभाव परिणाम गुणैः प्रयोज्य प्रपडताEV से हिशासने लरी हता से गलर स्वर मलु
[ श्री भक्तामर स्तोम
पोतानी जमेर हरानामा प्राश्युं - समयव्यु:
....
सूत्र घोष (ल) "कुशुंछे? सव शुछे? सात्मा, धर्म जने उर्महज सरल शुंं १... सोडा सोनु स्वाइप उषु छ ? पुष्य मने पाय शु ? सत्य याने असत्य थे ?.... साव-संवर अर्थात् १ भने जहां, निर्नश ने मोझ अर्थात् शु?
"
"एगो मे सासओं अया, नाण दुसण संजुज, सेसा मे बाहिश भाषा, सच्चे संजोग लक्खणा
"
-
- ज्ञानदर्शन युक्त शत आत्मा मारी छे, शेष तो सर्व बाह्यलाय छे, जे परिस्थिति - भन्य छे. अवस्तारF) सर्वज्ञ प्रलुनी प्रक्रिति दो-समझनी प्रथम देशना शिक्षण, लोक महो
EX

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54