Book Title: Mahavir Charitram
Author(s): Gunchandra
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीगुणचंद महावीरच०
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सत्तुंजयपमुहसमत्थतित्थजत्ता पर्यट्टिया जेण । पढमं चिय तस्स कवडसेडिगो को समो होज ? ॥ ७३ ॥ पुरिसत्थकरणनिरयस्स जणागस्स विस्सुयजसस्स । अस्थि जिणधम्मनिरया कलत्तमिह सुंदरी नाम ॥ ७४ ॥ जाओ तीसे सुंदरविचित्तलक्खणविराइयसरीरो । जेडो सिट्टो पुत्तो बीओ पुण वीरनामोति ॥ ७५ ॥ कोसि दाणविन्नाणबुद्धिसुविसुद्धधम्मगेहाण । निउणोऽवि गुणलवंपि हु होज समत्यो पवित्थरिडं ? ॥ ७६ ॥ नागो इव पिंडिज बंभंडकरंडए अमायंतो । जस्स जसोहो सारयनिसिच्छणमयलंछणच्छाओ ॥ ७७ ॥ जिणबिंब सुपसत्य तित्थजत्ताइधम्मकरणेण । धम्मियजणाण मज्झे जेहि य पत्ता पढमरेहा ॥ ७८ ॥ अन्नाणतण्हसमणी सुयनाणपवा पयट्टिया जेहिं । सयलागमपोत्थयलेहणेण निचंपि भव्वाण ॥ ७९ ॥ तेहिं तित्याहिवपरमभत्तिसव्वस्समुब्वहंतेहिं । वीरजिणचरियमेयं कारवियं मुद्धबोहकरं ॥ ८० ॥ जमजुत्तमेत्थ भणियं नियमइदुब्बलओ मए किंपि । तं साहंतु गुणड्डा ओच्छाइयमच्छरा विउसा ॥ ८१ ॥ छत्तावलिपुरीए मुणिअंबेसरगिहंमि रइयमिमं । लिहियं च लेहएणं माह्वनामेण गुणनिहिणा ॥ ८२ ॥ नंदसिहिरुद्दसंखे (११३९)वोक्ते विक्कमाओ कालंमि । जेस्स सुद्धतइयातिर्हिमि सोमे समत्तमिमं ॥ ८३ ॥ विन्धं चैतच्चरित्रं छत्रावल्यां श्रीमद्भिः स्थितिं दधद्भिः, मानं चास्य द्वादश सहस्राणि श्लोकानां ॥ चरित्रे चात्र विचक्षणानां विलोकनार्हाणि बहूनि स्थानानि, विशेषेण चेमानि
विट्ठा को डिपुरिसवोज्झा महासिला - मोत्तूर्ण कोडिसिलं, पत्रे ५९, अत्र कोटीशिलेति शिला क्कास्तीति प्रश्ने निश्चितं तस्या मगधविषये स्थानमिति
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उपोद्वात.
॥५॥
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