Book Title: Mahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Megh Prakashan

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Page 9
________________ 1282 श्री आचार्य के 36 गुण द्वादश तप दश धर्म जुत, पालै पंचाचार | षट् आवश्यक त्रिगुप्ति गुण, आचारज पद सार ॥ अनशन ऊनोदर करें व्रत संख्या रस छोर । विविक्त शयन आसन धरें, काय क्लेश सुठौर ॥ प्रायश्चित घर विनय जुत, वैयाव्रत स्वाध्याय । पुनि उत्सर्ग विचार के, धरें ध्यान मन लाय ॥ छिमा मारदव आरजव, सत्य वचन चित पाग । संजम तप त्यागी सरव, आकिंचन तिय त्याग ॥ समता धर वन्दन करें, नाना थुति बनाय । प्रतिक्रमण स्वाध्याय जुत, कार्योत्मर्ग लगाय ॥ दर्शन ज्ञान चरित्र तप, वीरज पचाचार । गोप मन वच काय को, गिन छत्तीस गुण सार ॥ श्री उपाध्याय के 25 गुण चौदह पूरब को धरें, ग्यारह अंग सुजान । उपाध्याय पच्चीस गुण, पढ़ें पढ़ावें ज्ञान ॥ प्रथमहि आचारांग गनि, दूजो सूत्रकृतांग | ठाण अंग तीज़ो सुभग, चौथो समवायांग !! व्याख्या पण्णति पंचमी, ज्ञातृकथा षट् आन । पुनि उपासकाध्ययन है, अन्तःकृत दश ठान ॥ अनुत्तरण उत्पाददश है, सूत्र विपाक पिचान । बहुरि प्रश्नव्याकरणजुत, ग्यारह अंग प्रमान ॥ उत्पाद पूर्व अग्रायणी, तीजो वीरजवाद । अस्ति नास्ति परमाद पुनि, पंचम ज्ञान प्रवाद ॥ छट्टो कर्म प्रवाद है, सत प्रवाद पहिचान । अष्टम आत्मप्रवाद पुनि, नवमों प्रत्याख्यान ॥ विद्यानुवाद पूरब दशम, पूर्वकल्याण महंत । प्राणवाद किरिया बहुल, लोकबिन्दु है अन्त ॥ श्री सर्व 'साधु के 28 मूल गुण पंचमहाव्रत समिति पंच, पंचेन्द्रिय का रोध । षट् आवश्यक साधुगुण, सात शेष अवबोध ॥

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