Book Title: Mahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Megh Prakashan

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Page 8
________________ 273 श्री अरिहंत के 46 मूलगुण चौंतीसों अतिशय सहित, प्रातिहार्य पुनि आठ। अनन्त चतुष्टय गुण सहित, छीयालीसों पाठ॥ अतिशय रूप सुगंध तन, नाहिं पसेव निहार । प्रियहित वचन अतुल्य बल, रुधिर श्वेत आकार ।। लक्षण, सहस अरु आठ तन, समचतुष्क संठान । वजवृषभनाराच जुत, ये जनमत दश जान ॥ योजन शत इक में सुभिक्ष, गगन गमन मुख चार । नहिं अदया उपसर्ग नहि, नाहीं कवलाहार ॥ सब विद्या ईश्वरपनों, नाहिं बढ़े नख केश । अनिमिषदृग छाया रहित, दश केवल के वेश ॥ देव रचित हैं चार दश, अर्द्धमागधी भाष । आपस मांहीं मित्रता निर्मल विश आकाश ॥ होत फूल फल ऋतु सबै, पृथ्वी कांच समान । चरण कमल तल कमल है, नभ ते जय जय बान । मंद सुगंध बयार पुनि, गंधोदक की वृष्टि । भूमि विष कंटक नहि, हर्षमयी सब सृष्टि । .धर्म चक्र आगे रहे, पुनि वसु मंगलसार। अतिशय श्री अरिहंत के, ये चौंतीस प्रकार ॥ तरु अशोक के निकट में, सिंहासन छविदार। तीन छत्र सिर पर लसें, भामंडल पिछवार । दिव्य ध्वनि मुखतें खिरै, पुष्टवृष्टि सुर होय । ढारै चौसठि चमर जख, बाजै दुंदुभि जोय ।। ज्ञान अनन्त-अनन्त सुख, दरस अनन्त प्रमान । बल अनन्त अरिहंत सो इष्ट देव पहिचान ॥ जनम जरा तिरसा क्षुधा, विस्मय आरत खेद । रोग शोक मद मोह भय, निद्रा चिता स्वेद ॥ रागद्वेष अरु मरण युत, ये अष्टादश दोष । नाहि होत अरिहन्त के, सो छवि लायक मोष ॥ श्री सिद्ध के 8 गुण समकित दरशन ज्ञान, अगुर लघू अवगाहना। सूच्छम वीरजवान, निराबाध गुण सिद्ध के

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