Book Title: Mahakavi Samay Sundar aur unka Chattisi Sahitya Author(s): Satyanarayan Swami Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 8
________________ ३३२ ] (३) क्षमा छत्तीसी प्रस्तुत छत्तीसी में पूरे छत्तीस पद्य हैं जो नागोर, १ में लिखे गये । क्षमा का महत्व और क्रोध के दुष्परिणामों का प्रदर्शन करना ही इसमें कवि का प्रमुख उद्देश्य रहा है। प्रारम्भ में ही कवि अपने जीव को समझता है वर्ण्य विषय अपने इसी कथन ( कृति के प्रमुख उद्देश्य) को और स्पष्ट करने के लिये कवि ने यहां अनेक से प्रसिद्ध महान पुरुषों का स्मरण किया है जिन्होंने क्षमा गुग के द्वारा अपना उद्धार किया और अनेक ऐसे दुष्टात्माओं की गर्हणा भी की है जिन्होंने क्रोध के वशीभूत हो अनेक दुष्कृत्य किये और अंततः पाप के भागी हु । इनके नाम इस प्रकार हैं- सोमल ससुर और गजसुकुमाल, कोणिक और वेश्या, स्वर्णकार और मेतार्य ऋषि, खंघकसूरि के शिष्य, सुकोशल साधु, ब्रह्मदत्त, चंडरुद्र, सागरचंद, चंदना, मृगावती, सांबप्रद्युमन, भरत - बाहुबली, प्रसन्नचंद्र ऋषि, स्थूलिभद्र प्रादि । दो-तीन प्रसंग इस प्रकार है: - श्रादर जीव क्षमा गुण आदर, म करि राग नइ द्वेष जी । समता ये शिव सुख पामीजे, क्रोधे कुगति विशेष जी ॥१॥ ध्यानवस्थित गजसुकुमाल के चारों ओर मिट्टी की पाल बांधकर उसके ससुर सोमल ने अग्नि द्वारा उसका सिर जला दिया था किंतु गजसुकुमाल हिला तक नहीं और अंत में इस क्षमा के परिणामस्वरूप मृत्यूपरांत उसे मुक्ति की प्राप्ति हुई सोमल ससरे सीस प्रजात्यउ, गज सुकुमाल क्षमा मन घरतउ, सत्यनारायण स्वामी प्रेम. ओ. १. क्षमामूर्ति मृगावती पर उसकी गुरुनी चंदना ने उसके भगवान के दर्शरण करके रात्रि में जरा देर से आने के कारण क्रोध किया था, उसकी भर्त्सना की थी किंतु मृगावती ने बिना टस से मस हुये सब कुछ सहन कर लिया । इसी क्षमाशीलता के प्रभाव से मृगावती को केवल ज्ञान हुआ और तदनंतर मोक्षप्राप्ति भी । Jain Education International बांधी माटीनी पाल जी । मुगति गयउ तत्काल जी ॥४॥ क्रोधावेश में क्षमा जादू का सा प्रभाव ला देती है यह भरत और बाहुबली के चरित्र से भी जाना जा सकता है । किंतु जो क्रोधपूर्वक ही अपना जीवन व्यतीत करता है उसके पूर्वसंचित शुभ कर्मों का ह्रास होने लगता है । मुनि स्थूलभद्र ने श्रेक चातुर्मास में कोश्या को दीक्षित किया जिससे उनके गुरु ने उन्हें तीन बार धन्यवाद दिया जब कि अन्य शिष्यों को श्र ेक ही बार । इससे के शिष्य को, जिसने उक्त चातुर्मास क सिंह की गुफा पर बिताया था, स्थूलिभद्र पर क्रोध आ गया । उसने भी विशेष धन्यवाद पाने की नगर मांहि नागोर नगीनउ, जिहां जिनवर श्रावक लोग वसइ अति सुखिया, धर्म तराइ क्षमा छतीसी खांते कीवी, आत्मा पर सांभलतां श्रावक पण समस्या, उपसम धर्यउ ( स. कृ. कु. पृ० ५२६ ) For Private & Personal Use Only प्रासाद जी । परसाद जी ||३४|| उपगार जी । अपार जी ।। ३५ ।। www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14